मजबूरी बन गया खेती करना सोयाबीन के भाव नही होंने से किसान परेशान बीते कही सालो से घाटे की खेती में किसान।
सरकार के एमएसपी दामों में नहीं बिक रही सोयाबीन, आर्थिक स्थिति खराब वही हर साल मंहगाई बढ़ने से लागत नही निकल पा रही है।

आशीष यादव, धार
आज देश मे सभी जगह उन्नति किसान व किसानों की आय बढ़ाने की बात होती है मगर जमीनीस्तर पर इस ओर किसी सरकार में ध्यान नही दिया और बस कागजों में ही किसानों की आय बढ़ती हुई नजर आती हे। बता देकि देश मे उन्नीसवीं सदी में पूर्वी एशिया के चीन से जब सोयाबीन के बीज जब भारत आए तो उन्हें सबसे पहले मध्यप्रदेश की जमीन पर लगाया गया और देखते ही देखते यहां के किसानों ने सोयाबीन को दोनों हाथों से अपना लिया। खेती-बाड़ी के मामलों में आज इस प्रदेश को सोयाप्रदेश पुकारा जाता है। ओर केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार इसे पुरस्कृत भी किया जाता है। मगर यहां के किसानों की स्थिति दयनी है। क्योंकि देश में यहां सोयाबीन सबसे ज्यादा पैदा होता है लेकिन आज मप्र में सोयाबीन के कई किसान अब इसे छोड़ने तक की बात करने लगे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि सोयाबीन वापस अब दस साल पुराने भाव पर हैं। दलहन की इस अहम फसल को लेकर किसान कई तरह की परेशानियों का सामना कर रहे हैं। सबसे पहली परेशानी है कि सोयाबीन की लागत और मंडी में मिल रहे भाव में लगातार बढ़ रहा अंतर और दूसरी परेशानी है सोयाबीन की उपज में लग रहे कीट जो उत्पादन को लगातार प्रभावित कर रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में सोयाबीन का उत्पादन गिरा है। इसकी वजह मौसम के बदलाव, किसानों में कम जागरुकता, कम गुणवत्ता के बीज और खाद भी हैं।
मण्डी में नहीं मिल भाव:
इन दिनों क्षेत्रो में किसान मंडियों में सोयाबीन की उपज नही बचने जा रहे है वही क्षेत्रो के कई इलाकों में किसान सोयाबीन की अपनी फसल को उखाड़कर फेंक रहे हैं। वे अब 15 दिन बाद आने वाले सोयाबीन के अगले सीजन का इंतजार भी नहीं कर रहे हैं क्योंकि उन्हें अपनी पिछले साल की रखी हुई फसल के दाम भी एमएसपी से करीब डेढ़ हजार रुपए तक कम मिल रहे हैं। किसान सोयाबीन निकाल कर आने वाली फसलों मटर व लहसुन की तैयारी में जुट गए हैं वहीं कहीं किसानों ने अभी खेतों में लहसुन की फसल लगा दी है। तो कही किसानों में मटर लगाकर एक महीने में फसल लेकर फिर से गेंहू की फसल लगा देंगे।
2014 में जो भाव थे वह आज भी है:
सोयाबीन के कम दाम को लेकर किसानों की नाराजगी को गलत नहीं कहा जा सकता है क्योंकि किसान को सोयाबीन के जो दाम आज मिल रहे हैं वह दस साल पहले भी मिल रहे थे। साल 2014 में मंडियों में सोयाबीन अधिकतम 4300 रुपए प्रति क्विंटल के दाम पर बिक रहा था। आज की स्थिति में जिले में ज्यादातर मंडियों में सोयाबीन के भाव करीब 3400 रुपए से 4300 रुपए प्रति क्विंटल के बीच ही झूल रहे हैं। ऐसे में यह तथ्य भी दिलचस्प है कि केंद्र सरकार ने खरीफ विपणन सत्र 2025-26 के लिए सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 5328 रुपए हे जो पिछली बार 4,892 रुपए प्रति क्विंटल तय किया है। जो 436 रुपए ज्यादा हे मगर मंडियों में एमएसपी दामों पर फसल नहीं बिक रही हे। आज भी जिले में किसान एमएसपी से काफी कम दाम पर सोयाबीन बेचने को मजबूर हैं।
विशेषज्ञों की सोयाबीन पर राय:
विशेषज्ञ के रणजीत सिंह व गोपाल भाकर के अनुसार, सोयाबीन के दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार के रुझानों पर निर्भर करते हैं। यदि अंतरराष्ट्रीय कीमतें गिरती हैं, तो भारत में भी दाम कम होते हैं। यह स्थिति वैश्विक किसानों के लिए भी एक चुनौती है। दिक्कत ये है कि किसानों को एमएसपी नहीं मिल रही है जो उनका हक है। किसान को बाजार के हाल पर छोड़ दिया है। जानकारी व किसान कहते हैं, “भारत सरकार सोयाबीन के तेल का आयात लगातार बढ़ा रही है, जिससे स्थानीय स्तर पर सोयाबीन की मांग कम हो रही है और उसका परिणाम है कि आज बाजार में दाम कम है।” जिसे सोयाबीन भाव नही बढ़ रहा है। किसानों का कहना है कि भारतीय सरकार ने ‘पाम ऑयल’ के आयात पर शुल्क हटा दिया है; जिसके परिणामस्वरूप भारत में सस्ता ‘पाम ऑयल’ उपलब्ध हो रहा है। उसका असर सोयाबीन खाद्य तेल उद्योग पर नकारात्मक रूप से पड़ा है। पाम ऑयल (ताड़ का तेल) की अधिक उपलब्धता और सोयाबीन जैसे खाद्य तेलों में उसके मिश्रण का बढ़ता उपयोग भारत में सोयाबीन की खपत को प्रभावित कर रहा है।
एक बीघा का खर्च और उत्पादन का गणित:
*बीज का खर्च: एक बीघा में 20 किलो सोयाबीन के बीज की लागत 1700 से 2200 रुपये तक होती है।
*भूमि की तैयारी: खेत की दो से तीन बार जुताई के लिए 450 रुपये प्रति बीघा के हिसाब से कुल खर्च 1350 रुपये आता है।
*बोवनी: एक बार बोवनी का खर्च 450 रुपये है रासायनिक दवाईयाँ: खरपतवार नाशक पर 800 रुपये, कीटनाशक पर 3000 रुपये, और फफूंदनाशक पर 850 रुपये खर्च होता है।
*मजदूरी: एक बार की निराई का खर्च 250 रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से होता है।
*कटाई: सोयाबीन की कटाई का खर्च 1200 रुपये प्रति बीघा है।
*मंडी और परिवहन: मंडी शुल्क और बोरियों का खर्च 100 रुपये, और डीजल खर्च 1000 रुपये तक आता है। साथ ही अन्य खर्च एक हजार रुपए इन सब खर्चों को मिलाकर, एक बीघा की लागत लगभग 15000 रुपये तक पहुँच जाती है।किसान इस दौरान उनकी खुद की और परिवार की मजदूरी नहीं जोड़ी जाती है।
घाटे का सौदा हो गई खेती:
सोयाबीन किसान वर्तमान में आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं। मौसम की मार, घटते दाम, और सरकार की नीतियाँ उनकी स्थिति को और कठिन बना रही हैं। किसानों को बेहतर दाम और समर्थन की आवश्यकता है, अन्यथा वे सोयाबीन की बजाय अन्य फसलों की ओर रुख कर सकते हैं। सरकार ने जो एमएसपी तय कर रखा उसपर ही खरीदी करे तो किसान को दाम सही मिल जायेगा।
आत्माराम यादव किसान सकतली
पुरानी सोयाबीन रखी हुई है
किसानों के पास पिछले दो तीन सालों से सोयाबीन की फसल रखी हुई है कि भाव अच्छा मिलेगा, मगर अब तक उचित मूल्य नहीं मिल पाया है। वर्तमान में, सोयाबीन के भाव में गिरावट आई है। लगातार सोयाबीन बोवनी से नुकसान ही हो रहा है। हर साल खर्च बढ़ रहा मगर भाव नहीं तेज हो है।
नारायण सिंह सोलंकी किसान अनारद