दिमाग के प्लाट पर बर्फ, जुबान पर शुगर और हृदय पर लव फैक्ट्री खोलें तो जिंदगी हो जाएगी मालामाल

इंदौर, । राष्ट्रसंत महोपाध्याय ललितप्रभ सागर म.सा. ने आज खेल प्रशाल स्थित लाभ मंडपम में आयोजित आध्यात्मिक प्रवचन माला के समापन प्रसंग पर मौजूद धर्मालुओं का आव्हान किया कि वे अपनी जिंदगी में तीन फैक्ट्रियां खोल लें, तो उनकी जिंदगी मालामाल हो जाएगी। इनमें पहली है – अपने माथे या दिमाग के प्लाट पर आईस फैक्ट्री, दूसरी अपनी जुबान के प्लाट पर शुगर फैक्ट्री और तीसरी फैक्ट्री का प्लाट हृदय है, जिस पर लव फैक्ट्री खोली जाए। दिमाग में खोली बर्फ फैक्ट्री के मालिक बनकर आप हमेशा कूल-कूल रहें, जुबान पर खोली गई शुगर फैक्ट्री से हमेशा मीठे और मधुर बोल बोले तथा हृदय के प्लाट पर प्रेम या लब की फैक्ट्री खोलकर सबसे प्रेम करें। जो व्यक्ति इन तीन फैक्ट्रियों का मलिक बन जाता है, उसकी पूरी जिंदगी प्रेम, माधुर्य और आनंद से भर जाती है।
संत प्रवर ने आध्यात्मिक प्रवचन समिति द्वारा आयोजित इस तीन दिवसीय प्रवचन माला के समापन पर लाभ मंडपम में शहर के सैकड़ों श्रद्धालु भाई-बहनों की मौजूदगी में अपना 59वां जन्मोत्सव भी मनाया। धर्मसभा का शुभारंभ आयोजन समिति की महिला विंग एवं अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। सांसद शंकर लालवानी ने इस सत्संग को शहर के लिए वरदान बताया। सत्संग में जब श्रद्धालुओं ने अपने-अपने मोबाइल की टार्च जलाकर गुरुदेव की आरती की तो पूरा लाभ मंडपम जगमगा उठा। राष्ट्रसंत ने इस मौके पर जरूरतमंद भाई-बहनों को राशन सामग्री भी समर्पित करवाई।
संत प्रवर ने कहा कि एक-दूसरे को सुधारने की जंग छोड़कर व्यक्ति को पहले स्वयं में सुधार लाना चाहिए। नम्र स्वभाव हमारी कमजोरी नहीं, बल्कि हमारी ऊंची सोच और अच्छे संस्कारों का परिचायक होता है। आदमी की पहली भूल यही होती है कि वह दूसरे को सुधारने में लगा रहता है। सुधारने की बात सबसे पहले स्वयं से शुरू होना चाहिए। व्यक्ति को अपने गुस्से पर सातों दिन काबू रखना चाहिए। सोमवार को गुस्सा आए तो उस दिन को पहला दिन मानकर गुस्सा न करें। मंगलवार को आए तो मैं अमंगल नहीं बनाऊंगा सोचकर और बुधवार को गुस्सा आए तो बुध के दिन युद्ध नहीं कहकर शांत रहे। गुरुवार को क्रोध आ जाए गुरूदेव का वार मानकर, शुक्रवार को शुकराना और धन्यवाद अदा करने का दिन मानकर गुस्सा न करें। शनिवार को शनि हावी हो जाएंगे, यह जानकर और रविवार को गुस्से की छुट्टी का दिन मानकर प्रसन्नता से रहें। उन्होंने कहा कि क्रोध में रहेंगे और जिएंगे तो संसार में डूबे रहेंगे। घर के माहौल को आनंदमय बनाने के लिए जीवन में इस बात को अपना लें कि हम जैसा व्यवहार अतिथियों से करते हैं, वैसा ही व्यवहार अपने घरवालों से भी करें। घर में कलह हो तो कहें – गलती होना हमारी प्रकृति है पर गलती को न सुधारना या स्वीकार नहीं करना यह हमारी विकृति है। क्षमा या सॉरी हमारे भारत की संस्कृति है। क्षमा का परिणाम हमेशा मीठा होता है। प्रेम से बोलेंगे तो बिगड़े हुए रिश्ते भी बन जाएंगे और टेड़ा या तीखा बोलेंगे तो बने हुए रिश्ते भी बिगड़ जाएंगे। हृदय में हमेशा सबके लिए प्रेम होना चाहिए। जीवन से प्रेम निकल जाएगा तो इंसान और जानवर में कोई फर्क नहीं रहेगा। धर्मसभा को पूर्वार्ध में डॉ. मुनिश्री शांतिप्रिय सागर म.सा. ने भी संबोधित किया और गुरू की महिमा बताते हुए राष्ट्रसंत को जन्मदिन की शुभकामनाएं समर्पित कीं।