
सेंधवा: हमारा जीवन अस्थिर है, हमारी आयु को कोई भरोसा नहीं है इसलिए चिता जलने से पहले चेतना को जगा लो ओर भीतर की जागृति को बढ़ा लो। जब तक जीवन में जागृति नहीं आयेगी तब भीतर में धर्म भी उतरने वाला नहीं है।
उक्त उद्गार प्रवर्तक जिनेंद्र मुनि जी की अज्ञानुवर्तनी पूज्य श्री सुव्रताजी म.सा. ने जैन स्थानक में कहें। आपने कहा कि सत्ता -संपत्ती – परिवार ये सब अस्थाई है , कैलेंडर का पन्ना प्रतिदिन पलटते जा रहा है क्योंकि समय प्रवाहमान है इसलिए स्वयं की आत्मा को जागृत बना लो। जिस प्रकार कंकड पत्थर बिना मुल्य के उपलब्ध है किंतु हीरे जवाहरात की किमत अमुल्य है उसी प्रकार यह मनुष्य जन्म भी अमुल्य है, हम चिंतन मनन करे कि यदि हमने अभी भी साधना – आराधना नहीं की तो फिर इस अमूल्य मनुष्य जन्म पाकर भी हमें भटकना पड़ेगा।
आपने कहा कि जब तक बुढ़ापा ना आ जाए, हमारी इंद्रियां शिथिल ना पड जाये उसके पहले तक शुद्ध धर्म का पालन करके अपनी आत्मा को जागृत कर लो, ये मोह माया ओर तेरे मेरे के चक्कर में हम जीवन को व्यर्थ ना करें। हम स्वयं यह चिंतन करें कि हमने अभी तक अपने आत्मकल्याण के लिए क्या किया है ?
आज धर्म सभा मे बी.एल.जैन, छोटेलाल जोगड, नंदलाल बुरड़, चंद्रकांत सेठ, एच डी वैष्णव, महेश मित्तल, पवन अग्रवाल, अशोक सखलेचा, राजेंद्र कांकरिया, प्रकाश सुराणा, महावीर सुराणा, गुलाब खोना, विजय जैन, तेजस शाह, मनिष बुरड, भुषण जैन, गौरव जोगड, चिरायु सुराणा सहित बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाएं उपस्थित थे।