
सेंधवा; जीवन परिवर्तनशील है और समय प्रवाहमान और इस प्रवाहमान जीवन में धर्म ही हमारा सहायक है। हमें आत्मा को धर्म से जोडना है ऐसा ना हो कि हम बिना धर्म से जुड़े चले जाए क्योंकि उम्र बीत रही है। उक्त उद्गार प्रवर्तक जिनेंद्र मुनि जी की अज्ञानुवर्तनी पूज्य श्री सुव्रताजी म.सा. ने जैन स्थानक में कहें।
आपने कहा कि कर्म से कोई नहीं बच सकता, चाहे राजा हो या रंक कोई अपने किए हुए कर्म से नहीं भाग सकता है। हमारे शुभ एवं अशुभ कर्मों के कारण हम कर्मसत्ता के अधीन होकर परिणाम को भुगतते हैं। इसलिए धर्म की शरण में चले जाएंगे तो हम इस भव ओर परभव दोनों में सुखी हो सकते हैं।
इसके पूर्व शीतल जी महाराज साहब ने फरमाया कि धन के साथ तो हमने बहुत मैत्री की है पर धर्म के साथ जब मैत्री कर लेंगे तो हमारा कल्याण हो जायेगा। आज फोन तो स्मार्ट हो गये है ओर छोटे छोटे बच्चों के पास स्मार्ट फोन हो गये है पर इस मोबाइल के चक्कर में क्या नुकसान हो रहा है इसका चिंतन करना चाहिए। आज अनेकों उदाहरण हम देख रहे हैं कि इस मोबाइल के कारण बच्चे अपना जीवन तक का अंत कर लेते हैं । यदि हम अपने बच्चों से मैत्री करके उन्हें मार्गदर्शन करेंगे तो इन घटनाओं से बच सकते हैं। आपने कहा कि जो उत्तम पुरुष होते हैं उनका क्रोध क्षणिक होता है और जो मध्यम पुरुष होते हैं उनका क्रोध कुछ समय के लिए होता है पर जो नीच पुरुष होते हैं उनका क्रोध जीवन भर चलता है वह क्रोध की अग्नि में जलते रहते हैं पर ध्यान रखना ये क्रोध व्यक्ति को कहां से कहां ले जाकर पटक देता है ।
आज धर्म सभा मे घेवरचंद बुरड, बी.एल.जैन, छोटेलाल जोगड, नंदलाल बुरड़, चंद्रकांत सेठ, महेश मित्तल, पवन अग्रवाल, अशोक सखलेचा, राजेंद्र कांकरिया, प्रकाश सुराणा, डॉ एम के जैन, महावीर सुराणा, गुलाब खोना, तेजस शाह, मनिष बुरड, गौरव जोगड, डा अश्विन जैन, वैभव जैन सहित बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाएं उपस्थित थे