सेंधवा। स्वयं को जानने का संदेश: पूज्य सुव्रताजी म.सा. ने दिए आत्मचिंतन के प्रेरणादायक विचार
जैन स्थानक में धर्मसभा आयोजित, श्रावक-श्राविकाओं ने सुनीं जीवन परिवर्तनकारी सीखें

सेंधवा। आज व्यक्ति को दूसरा क्या कर रहा है, क्यों कर रहा है, कैसे कर रहा है यह जानने में ही आनंद आता है स्वयं क्या कर रहा है यह समझ नहीं आता है। सिर्फ दूसरों को जानने के चक्कर में स्वयं क्या है वह भूल जाता है। हमें स्वयं की आत्मा का चिंतन करना चाहिए।
उक्त उद्गार प्रवर्तक जिनेंद्र मुनि जी की अज्ञानुवर्तनी पूज्य श्री सुव्रताजी म.सा. ने जैन स्थानक में कहें। आपने कहा कि व्यक्ति जैसे कर्म करेगा उसे वैसे परिणाम मिलने ही वाला है। हस हस कर हम जो अशुभ कर्म का बंध करते हैं वे रो रो कर भोगना ही पड़ते हैं। अशुभ कर्म उदय में आए तो उन्हें सहनशीलता के साथ भोग लो ओर नये अशुभ कर्म से बचों। ज्ञानीजन फरमाते हैं कि कर्म की परिणति कौ समझो ओर जब भी जीवन में अशुभ कर्म के उदय से कष्ट आये तो सहनशील बनकर सहन कर लो। आपने कहा कि गुरु हमें बार-बार समझाते हैं कि बुराई को तज ओर भलाई कर क्योंकि एक दिन यहां से जाना है ओर जाने के पहले भलाई करके आत्मकल्याण कर लो।
आज धर्म सभा में घेवरचंद बुरड, बी.एल.जैन, छोटेलाल जोगड, नंदलाल बुरड़, महेश मित्तल, अशोक सखलेचा, राजेंद्र कांकरिया, प्रकाश सुराणा, महावीर सुराणा, कमल कांकरिया, परेश सेठिया, मनिष बुरड, भुषण जैन, डॉ प्रतीक चोपड़ा, गौरव जोगड, चिरायु सुराणा सहित बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाएं उपस्थित थे।