
सेंधवा। जैन समाज का प्रमुख पर्व पर्युषण सेंधवा में आध्यात्मिक उत्साह के साथ प्रारंभ हुआ। जैन स्थानक में आयोजित धर्मसभा में प्रवर्तक जिनेंद्र मुनि महाराज साहब की आज्ञानुवरती सुव्रता जी महाराज साहब ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि
“पर्युषण कर्मों की निर्जरा और आत्मगुणों के अविष्कार का पर्व है। हमें विकारों का बहिष्कार और पाप कर्म का तिरस्कार करना चाहिए।” उन्होंने आगे कहा कि यदि हम “कम खाना, गम खाना और नम जाना” सीख जाएं तो जीवन सफल और सुखमय हो सकता है।
धर्मसभा को संबोधित करते हुए शीतल जी महाराज साहब ने कहा कि “आज का पाप भविष्य के दुख का रिजर्वेशन है। आवश्यक जीवन निर्वाह के लिए कुछ कर्मों में पाप हो सकता है, लेकिन अनावश्यक और व्यर्थ के पाप सबसे अधिक दुखदायी होते हैं।” उन्होंने कहा कि पाप ऐसा प्रोडक्ट है जो लेने में सस्ता लगता है लेकिन उसका भुगतान जन्मों-जन्म तक करना पड़ता है। त्याग ही पाप से बचने का सर्वोत्तम उपाय है और मर्यादित जीवन अपनाने से पाप कर्म क्षय होते हैं।
इस अवसर पर श्रीसंघ अध्यक्ष अशोक सकलेचा ने जानकारी दी कि आठ दिवसीय पर्युषण पर्व की शुरुआत के साथ ही उपवास और तपस्याएं भी आरंभ हुईं। आज रिषभ सुराणा ने केवल गर्म जल पर आधारित 24 उपवास का पच्खान लिया, वहीं नीता बैन खोना ने 23 उपवास का पच्खान किया। शांति ओस्तवाल, नुतन बोकड़िया और सोनल ओस्तवाल ने सिद्धी तप आराधना के अंतर्गत सात उपवास का पच्खान लिया। इसके अलावा कई तपस्याएं गतिमान हैं।
गुप्त धर्मसभा में घेवरचंद बुरड, बी.एल. जैन, चंद्रकांत सेठ, नंदलाल बुरड़, प्रकाश सुराणा, महेश मित्तल, श्याम गोयल, पवन अग्रवाल, राजेंद्र कांकरिया, चंद्रकांत बागरेचा, डॉ. एम.के. जैन, महावीर सुराणा, परेश सेठिया, तेजस शाह सहित बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं मौजूद रहे