
सेंधवा।
हमें स्वयं की भूलों को सुधारना है। दुसरांे की भूलों को याद ना करें, यदि हमें कोई अपनी ग़लती या भूल बताता है तो हम या तो केवल अपना बचाव करते हैं या सामने वाले को प्रतिउत्तर देकर चुप कर देते हैं, लेकिन ज्ञानीजन फ़रमाते हैं कि हमें अपनी ग़लती को समझना है और उसमें सुधार करने का प्रयास करना चाहिए।
उक्त उद्गार समरथ गच्छाधिपति उत्तमचन्दजी म.सा. की सुशिष्या कैलाशकंवरजी म.सा. ने जैन स्थानक में कहे। आपने कहा कि जीवन में विनय प्रकृति अवश्य होना चाहिए। जो विनीत होता है वह सभी को प्रिय होता है। विनय गुण से हमारे जीवन में सदैव प्रसन्नता बनी रहती है। आपने कहा कि लाख खोया हजार पाया ऐसे कमाने से क्या, क्षमापना पर्व के दिन शुद्ध नहीं हुआ, 10 बिखेरा 1 जमाया तो ऐसे जमाने से भी क्या। अर्थात हम चातुर्मास के समाप्ति के अवसर पर भी यदि स्वयं के व्यवहार को देखकर उसमें सुधार नहीं किया तो क्या अर्थ है।
बैर की गांठ मन में ना रखे-
आपने कहां कि मन में यदि किसी के प्रति बैर की गांठ रखेंगे ओर मन में कचरा भर कर रखेंगे तो ना आराधना होगी ना ही यह अनमोल मनुष्य जीवन सफल होगा। हमें बैर की गांठ की परंपरा को बिल्कुल नहीं बढ़ाना है। यह बैर की गांठ हमारा एक भव नहीं अनेकों भव बिगाड देगी। इसलिए जीवन में नम्रता व लघुता को लाना है और सरल बनना है। हम जितना सरल बनेंगे साधना उतनी चुस्त होगी।