मध्यप्रदेश की नगरपालिकाओं में वित्तीय अधिकारों पर विवाद, विपक्ष ने जताई चिंता, बड़वानी से उठी आवाज

नगर परिषद अध्यक्षों की बढ़ती शक्तियों को लेकर बड़वानी से उठी आवाज ने पूरे प्रदेश में नई बहस छेड़ दी है। विपक्ष ने मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपकर पार्षदों की भूमिका बहाल करने की मांग की है।
मध्यप्रदेश की नगरपालिकाओं में वित्तीय और प्रशासकीय अधिकारों को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। बड़वानी नगरपालिका परिषद से शुरू हुआ मुद्दा अब प्रदेशभर की नगर परिषदों का बड़ा सवाल बन गया है। विपक्ष का कहना है कि अध्यक्षों को मिले अत्यधिक अधिकारों से पार्षदों की भूमिका लगभग समाप्त हो गई है और जनहित कार्य बाधित हो रहे हैं। बड़वानी नगरपालिका परिषद में नेता प्रतिपक्ष राकेश सिंह जाधव ने बुधवार को कलेक्टर के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में अध्यक्षों की मनमानी और तानाशाही पर गंभीर सवाल उठाए गए। इसमें कहा गया कि पार्षद सीधे जनता से चुने जाते हैं और उन्हीं के मतों से अध्यक्ष व उपाध्यक्ष का निर्वाचन होता है, लेकिन वर्तमान व्यवस्था में परिषद की शक्तियां अध्यक्ष केंद्रित हो चुकी हैं।

ज्ञापन के अनुसार, नगरीय विकास एवं आवास विभाग के आदेश दिनांक 27 सितंबर 2025 से परिषद की समस्त वित्तीय और प्रशासकीय शक्तियां ‘प्रेसीडेन्ट-इन-काउंसिल’ को दे दी गई हैं। विपक्ष का आरोप है कि अध्यक्ष अपनी मर्जी से किसी भी सदस्य को हटा या नियुक्त कर सकते हैं, जिससे परिषद केवल अध्यक्ष की कठपुतली बनकर रह गई है।
इसके अलावा, शासन ने अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की शर्तें भी कठिन कर दी हैं। अब यह प्रस्ताव दो वर्ष के स्थान पर तीन वर्ष बाद ही लाया जा सकता है और इसके लिए 3 चौथाई बहुमत जरूरी होगा। विपक्ष का कहना है कि यह बदलाव अध्यक्षों को तानाशाही की ओर धकेल रहा है।
विपक्ष ने आरोप लगाया कि साधारण सभा बुलाए बिना ही निर्णय लिए जाते हैं और पार्षदों की राय पर ध्यान नहीं दिया जाता। नतीजतन, क्षेत्रीय विकास कार्य ठप हो रहे हैं और पार्षदों को जनता की नाराज़गी झेलनी पड़ रही है। ज्ञापन में मांग की गई कि पूर्व की भांति परिषद को वित्तीय और प्रशासकीय अधिकार दिए जाएं, ताकि निर्वाचित पार्षद प्रदेश के नगर विकास में सक्रिय भूमिका निभा सकें।