विषाद को प्रसाद में बदलने का ग्रंथ है गीता – शंकराचार्य
गीता भवन में चल रहे अ.भा. गीता जयंती महोत्सव में आज आएंगे जगदगुरू वल्लभाचार्य गोस्वामी वल्लभराय महाराज

इंदौर, । गीता का प्रत्येक मंत्र अनुशीलन योग्य है। सृष्टि में ज्ञान को ही सर्वोपरि माना गया है। जैसे शरीर के अन्य अंगों को भी अलग-अलग पदार्थों से तृप्ति मिलती है, वैसे ही आत्मा को भी ज्ञान से ही तृप्ति मिलती है। जीव ही कर्म उपासना करता है, इसलिए जीव को सबसे ऊपर माना गया है। गीता के छठे अध्याय में स्पष्ट कहा गया है कि हम दूसरों से जैसा व्यवहार चाहते हैं, हमें भी उनके साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए। एक हिंसक भी दूसरे से अपने प्रति अहिंसा की अपेक्षा रखता है। समाज के प्रत्येक वर्ग में यह आम बात है कि लुटेरे और चोर भी चाहते हैं कि उनके साथ वैसा व्यवहार नहीं हो, जैसा वे दूसरों के साथ करते हैं। गीता कर्म योग का सबसे उत्कृष्ट उदाहरण है। गीता विषाद को प्रसाद में बदलने का ग्रंथ है। हम कहते हैं अधर्म का नाश हो, जबकि होना चाहिए अधर्मी का नाश।
ये प्रेरक विचार हैं जगदगुरु शंकराचार्य, पुरी पीठाधीश्वर स्वामी निश्चलानंद सरस्वती के, जो उन्होंने गुरुवार शाम गीता भवन में चल रहे 67वें अ.भा. गीता जयंती महोत्सव की महती धर्मसभा में व्यक्त किए। शंकराचार्यजी के गीता भवन आगमन पर आज भी ट्रस्ट मंडल की ओर से वैदिक मंगलाचरण के बीच ट्रस्ट के अध्यक्ष राम ऐरन, मंत्री रामविलास राठी, कोषाध्यक्ष मनोहर बाहेती, ट्रस्ट मंडल के महेशचंद्र शास्त्री, प्रेमचंद गोयल, टीकमचंद गर्ग, दिनेश मित्तल, हरीश माहेश्वरी, पवन सिंघानिया, राजेश गर्ग केटी, संजीव कोहली, विष्णु बिंदल आदि ने पादुका पूजन किया। अध्यक्षता अंतर्राष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के आचार्य जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज ने की। गीता भवन में प्रतिदिन भक्तों का सैलाब बढ़ता जा रहा है। बाहर से आए संतों के लिए शनि उपासक मंडल के प्रदीप अग्रवाल एवं उनकी टीम द्वारा गीता भवन से जुड़े भक्तों के सहयोग से भंडारे की व्यवस्था पहले दिन से ही की जा रही है। आचार्य पं. कल्याणदत्त शास्त्री के निर्देशन में श्री विष्णु महायज्ञ का दिव्य अनुष्ठान भी जारी है। समापन अवसर पर संध्या को खरगोन जिले के तपोनिष्ट संत जय सियाराम बाबा और गीता भवन के संरक्षक ट्रस्टी गोपालदास मित्तल के चित्र पर पुष्पांजलि समर्पित कर संतों एवं भक्तों ने श्रद्धांजलि भी अर्पित की।
किसने क्या कहा – अध्यक्षीय उदबोधन में जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज ने कहा कि जिसके जीवन में नहीं है गीता, उसका जीवन बिल्कुल रीता। जो भोजन करता है उसे भजन भी करना चाहिए और जो भोजन देता है उसके लिए भी भजन करना चाहिए। गीता में क्या है, ऐसा पूछने वालों से मैं पूछना चाहता हूं कि गीता में क्या नहीं है, ज्ञान, ध्यान और भगवान ये तीनों ही गीता में उपलब्ध हैं। जोधपुर से संत हरिराम शास्त्री रामस्नेही ने कहा कि गीता का मनन और मथन हमारे विश्वास को दृढ़ता प्रदान करता है। गीता धर्म का ग्रंथ है। हम जितना गीता का मनन करेंगे, हमारा जीवन उतना ही धर्म और अध्यात्म के प्रति श्रद्धावान होता जाएगा। श्रद्धा के बिना की गई भक्ति निरर्थक होती है। उज्जैन से आए स्वामी रामकृष्णाचार्य ने कहा कि जिस तरह पानी के ऊपर जमी काई के कारण अंदर का दृश्य नहीं दिखाई देता उसी तरह हमारे पाप कर्मो कें कारण अपना वास्तविक चरित्र सामने नहीं आ पाता। अपने पाप दूर होने के बाद ही हमें अपने मूल स्वरूप का ज्ञान होगा। निष्काम कर्म पर गीता में जोर दिया गया है। निष्काम कर्म का उपदेश देना आसान है लेकिन अमल करना बहुत कठिन है। *वृंदावन से आए स्वामी वृंदावनदास * ने कहा कि सत्संग में वहीं लोग आ पाते हैं, जिन पर भगवान की कृपा होती है। संसार के सुख एवं वैभव के साधन तभी तक है, जब तक हमारी सांस हैं। परीक्षित ने भी भागवत कथा श्रवण कर अपनी चिंता का समाधान प्राप्त किया। भदौही से आए पं. सुरेश शरण ने कहा कि सदकर्म के साथ अनेक दोष भी जुड़ जाते हैं। कर्ता में अहंकार का भाव आ जाता है। अहंकार ऐसा बाधक बनता है कि हम हंस भी नहीं सकते। सदकर्म को यदि हमने ईश्वर की प्रीति और प्रेरणा से जोड़ दिया तो वह सदकर्म ही कर्मयोग बन जाएगा। भदौही के ही पं. पीयूष माहाराज ने कहा कि कर्मयोग ही भक्ति योग है। यदि हमने ईश्वर के प्रति अपने कर्म समर्पित कर दिए तो वे कर्म सदकर्म हो जाएंगे। भक्ति योग बन गया तो अंतःकरण भी शुद्ध हो जाएगा। अंतःकरण शुद्ध हुआ तो ज्ञान का प्रवेश भी स्वतः हो जाएगा। आगरा से आए स्वामी हरि योगी ने कहा कि माया हमारे कर्मों में सबसे बड़ी बाधा है। मैं और मेरा माया के ही रूप हैं। ओंकारेश्वर से आए स्वामी रामकिशोर दास महाराज ने कहा कि माया से मुक्त होने के लिए भक्ति जरूरी है। ज्ञान तर्क करता है। अकेले ज्ञान से परमात्मा तक पहुंचना संभव नहीं है। ज्ञान के साथ भक्ति भी जरूरी है। सुबह के सत्र में डाकोर से आए वेदांताचार्य स्वामी देवकीनंदनदास ने भी धर्म ग्रंथों का महत्व भी बताया और सत्संग सत्र का संचालन भी किया। संध्या को सागर जिले के गड़ाकोटा से आए दिव्यांग कलाकारों ने भगवान कृष्ण के जीवन पर आधारित नृत्य नाटिका का मनोहारी मंचन प्रस्तुत किया। निर्देशक डॉ. उमेश कुमार वैद्य एवं अन्य कलाकारों का स्वागत ट्रस्ट के पदाधिकारियों ने किया।
आज के कार्यक्रम – अ.भा. गीता जयंती महोत्सव के छठे दिन शुक्रवार को दोपहर 1 बजे से स्वामी देवकीनंदन दास, 1.15 बजे से वृंदावन से आए स्वामी केशवाचार्य महाराज, 1.45 बजे से उज्जैन से आए परमानंद महाराज, 2.15 बजे से भीकनगांव से आए पं. पीयूष महाराज, 2.45 बजे से ऋषिकेश परमार्थ निकेतन से आए शंकर चैतन्य महाराज, 3.15 बजे से हरिद्वार से आए स्वामी सर्वेश चैतन्य महाराज, 4 बजे से जगदगुरू वल्लभाचार्य गोस्वामी वल्लभ राय महाराज सूरत के आशीर्वचन तथा सांय 5 बजे युग तुलसी स्वामी रामकिंकर महाराज की शिष्या दीदी मां मंदाकिनी देवी के प्रवचन होंगे। सांय 5.45 बजे से जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज अध्यक्षीय आशीर्वचन देंगे।