संशय में दिव्य दृष्टि प्रदान करती है गीता – शंकराचार्य

इंदौर, । भारतीय संस्कृति ज्ञान के साथ विज्ञान सम्मत भी है। गीता जैसे दिव्य ग्रंथ मानव मात्र के लिए हर युग में मार्ग दर्शक है। मनुष्य को यदि आत्म निरीक्षण, आत्म कल्याण और आत्म मंथन करना है तो गीता का आश्रय लेना चाहिए, क्योंकि यह वह अदभुत और अनुपम सृजन है जो विज्ञान की कसौटी पर भी खरा उतरा है। तमोगुण की अधिकता से ही विनाश का मार्ग प्रशस्त होता है। वेदों और उपनिषदों का भी निचोड़ है-गीता। गीता मनुष्य को कुरुक्षेत्र के मैदान में खड़े अर्जुन की तरह हर संशय के मौके पर दिव्य दृष्टि प्रदान करती है। गीता के श्रवण, मनन, मंथन और चिंतन से मनुष्य अहंकार मुक्त हो सकता है।
जगदगुरु शंकराचार्य, पुरी पीठाधीश्वर स्वामी निश्चलानंद सरस्वती के, जो उन्होंने स गीता भवन में चल रहे 65वें अ.भा. गीता जयंती महोत्सव की महती धर्मसभा में व्यक्त किए। शंकराचार्यजी के गीता भवन आगमन पर ट्रस्ट मंडल की ओर से वैदिक मंगलाचरण के बीच ट्रस्ट के अध्यक्ष राम ऐरन, मंत्री रामविलास राठी, कोषाध्यक्ष मनोहर बाहेती, संरक्षक ट्रस्टी गोपालदास मित्तल तथा ट्रस्ट मंडल के महेशचंद्र शास्त्री, प्रेमचंद गोयल, टीकमचंद गर्ग, दिनेश मित्तल, हरीश माहेश्वरी, पवन सिंघानिया, राजेश गर्ग केटी, सोमनाथ कोहली, विष्णु बिंदल एवं गीता भवन हास्पिटल के डायरेक्टर डॉ. आर.के.गौर ने शंकराचार्यजी का पादुका पूजन किया। इसके पूर्व सुबह मोक्षदा एकादशी के उपलक्ष्य में हजारों भक्तों ने गीता के 18 अध्यायों का जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज की अध्यक्षता में सामूहिक पाठ किया। बड़ी संख्या में भक्तों ने अपने सामर्थ्य के अनुसार दान का पुण्य लाभ भी उठाया। सामूहिक पाठ का समापन गीताजी की महाआरती के साथ हुआ। दोपहर के सत्र में डाकोर से आए स्वामी देवकी नंदनदास, उज्जैन के स्वामी रामकृष्ण आचार्य, भदौही के पं. पीयूष महाराज, चिन्मय मिशन इंदौर के प्रमुख स्वामी प्रबुद्धानंद सरस्वती, गोवर्धननाथ मंदिर इंदौर के युवा वैष्णवाचार्य गोस्वामी दिव्येश कुमार महाराज, महामंडलेश्वर स्वामी प्रणवानंद सरस्वती, उज्जैन के स्वामी वीतरागानंद के भी प्रवचन हुए। जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज ने कहा कि कुरुक्षेत्र के मैदान में जन्म लेने वाली गीता केवल एक किताब या ग्रंथ नहीं, समूची मानवता को धर्म, अध्यात्म, संस्कृति और कर्म से जोड़ने का अदभुत माध्यम है। यह कुंठित लोगों के मन की गांठ खोलती है। हम सबके जीवन में भी धृतराष्ट्र की तरह किसी न किसी कारण से अनेक गांठे बंधी हुई है। सदकर्म जीवन काल में ही हो सकते है, मृत्यु के बाद नहीं। गीता विषाद को प्रसाद में बदलती है।
गीता जयंती पर हुई सामूहिक महाआरती – गीता जंयती के मुख्य महापर्व पर आज सुबह आचार्य पं. कल्याणदत्त शास्त्री के निर्देशन में विद्वानों द्वारा भगवान शालिग्राम के विग्रह पर विष्णु सहस्त्रनाम के पाठ से सहस्त्रार्चन किया गया। देश के विभिन्न तीर्थ स्थलों से आए संत, विद्वानों के साथ हजारों भक्तों ने एक साथ बैठकर गीता के 18 अध्यायों का सामूहिक पाठ किया और महाआरती में भी भाग लिया। मोक्षदा एकादशी पर दान की महत्ता को देखते हुए भक्तों ने फल, वस्त्र एवं अन्य वस्तुएं दान की।
महामंडलेश्वर स्वामी प्रणवानंद सरस्वती ने कहा कि गीता राष्ट्रीय धर्मग्रंथ है। संसार का प्रत्येक जीव शांति चाहता है। दुनिया में सुख बहुत हैं, शांति की कमी है। शरीर की इंद्रियों को भी देखने-सुनने, खाने-पीने आदि की भूख रहती है। तृप्ति का आनंद तभी मिलेगा, जब प्यास बढ़ रही हो। सत्ता और ऐश्वर्य की भूख कभी खत्म नहीं होती। संसार के साधनों से शांति नहीं मिलेगी। शांति के लिए अंतःकरण की पवित्रता जरूरी है। चिन्मय मिशन इंदौर के स्वामी प्रबुद्धानंद सरस्वती ने कहा कि हमारी ही दृष्टि नहीं बदलेगी तो हम दूसरों को सही रास्ता कैसे दिखा सकते हैं। एक अंधा दूसरे अंधे को रास्ता नहीं बता सकता। गीता और कुछ करे या न करे, हमारी दृष्टि को बदलने का आव्हान जरूर करती है। नजरें बदल जाएंगी तो नजारे भी बदल जाएंगे। युवा वैष्णवाचार्य गोस्वमी दिव्येशकुमार महाराज ने कहा कि हमें अपने परमात्मा के प्रति दृढ़ विश्वास होना चाहिए। अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठा और विश्वास ही सफलता के मार्ग पर बढ़ा सकते हैं। गीता विषम स्थितियों में भी एकाग्रता का संदेश देती है। अर्जन के विषाद को युद्ध के मैदान में भगवान ने प्रसाद में बदलकर उसका मोह नष्ट किया था। मोह को नष्ट किए बिना कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ना संभव नहीं होता। गीता परिवार, समाज और राष्ट्र को जोड़ने वाला ग्रंथ है। गीता में प्रसाद नहीं महाप्रसाद का भंडार भरा हुआ है। उज्जैन के स्वामी रामकृष्ण आचार्य ने कहा कि गीता विलक्षण ग्रंथ है, जो बिना किसी भेदभाव के सबको मुक्ति प्रदान करता है। बार-बार जन्म लेने और बार-बार मरने से मुक्ति दिलाने का एकमात्र ग्रंथ गीता ही है। भदौही से आए पंडित पीयूष महाराज ने कहा कि परमात्मा की निष्ठापूर्ण शरणागति के बिना मनुष्य को अपनी मंजिल आसानी से नहीं मिलती। श्रद्धा और धैर्य रखें बिना किसी भी साधना का फल नहीं मिलेगा। कलियुग में हर व्यक्ति रातोंरात भक्त और धनवान बनने की कामनाएं रखता है। जगदगुरू शंकराचार्य ने कहा कि गीता का प्रत्येक मंत्र अनुशीलन योग्य है। बुद्धिमानों की सफलता इसी बात में निहित है कि वे अपनी बुद्धि एवं मन को सर्वेश्वर में समाहित करें और भगवान की कृपा की अनुभूति करें। उपनिषदो के आधार पर हम सच्चिदानंद के अत्यधिक निकट पहुंच सकते हैं, बल्कि काम, क्रोध, लोभ, मोह, जैसे मनोविकार भी क्षीण होकर हमें दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से मुक्ति दिला सकते हैं। गीता के प्रत्येक अध्याय में अणु और परमाणु से भी अधिक शक्ति है।