इंदौर

पश्चिम में विवाह सौदा या अनुबंध, हमारे यहां संस्कारों पर आधारित – स्वामी नलिनानंद

इंदौर,  । भारतीय संस्कृति विश्व में सबसे श्रेष्ठ और उजली संस्कृति है। विवाह हमारे यहां अनुबंध या सौदा नहीं, बल्कि संस्कार माना गया है। रुक्मणी का विवाह नारी के मंगल का प्रतीक है। भगवान तो हम सबके मंगल के लिए ही अवतार लेते हैं, लेकिन हम थोड़े से दुख में ही विचलित होकर जीवन संग्राम सं पलायन कर जाते हैं। हमारे संचित पुण्य कर्मों का प्रारब्ध ही हमें अच्छे या बुरे कर्मों में निमित्त बनाता है। विवाह जैसा संस्कार भारतीय संस्कृति को लांघकर अब विदेशों तक जा पहुंचा है।  और अनेक विदेशी जोड़े भारत भूमि पर आकर अथवा भारतीय पद्धति से विवाह कर रहे हैं, यह हमारे लिए गौरव की बात है।

ये दिव्य विचार हैं वाशिंगटन (अमेरिका) से आए, इटरनल वॉइस के संस्थापक भारतीय मूल के स्वामी नलिनानंद गिरि महाराज के, जो उन्होंने  आज एम.आर. 10 रोड, रेडिसन चौराहा के पास स्थित दिव्य शक्तिपीठ पर चल रहे श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ एवं सत्संग में रुक्मणी विवाह प्रसंग की व्याख्या के दौरान व्यक्त किए। कथा में विवाह का उत्सव भी मनाया गया। कृष्ण एवं रुकमणी पर भक्तों ने टोकनी भरकर फूलों से वर्षा की और नाचते गाते हुए खुशियां मनाई। कथा शुभारंभ के पूर्व पूर्व डॉ. दिव्या-सुनील गुप्ता, दिनेश मित्तल, अशोक ऐरन, विनोद सिंघल, अमित सर्राफ, अजय सुरेशचंद्र अग्रवाल, राजेश कस्तूरी, श्याम सिंघल, राजेश कुंजीलाल गोयल आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। आज भी कथा में मनोहारी भजनों का जादू श्रोताओं को मंत्रमुग्ध बनाए रखने में कामयाब रहा। शहनाई और तबले की संगत भी भक्तों को आल्हादित करती रही। आज भी कथा स्थल पर भक्तों का सैलाब पूरे समय बना रहा। हिन्दी और पंजाबी भजनों की प्रस्तुतियों ने इस उत्सव को और प्रभावी एवं मनमोहक बनाए रखा।

स्वामी नलिदानंद ने कहा कि जब सृष्टि में पत्ता भी भगवान की मर्जी से हिलता है तो अच्छे कर्मों का श्रेय लेने वाले हम कौन होते हैं। हमें तो स्वयं को निमित्त ही मानना चाहिए। अब मातृशक्ति हर क्षेत्र में आगे आ रही है, लेकिन द्वापर युग में महिलाओं को सम्मान देकर भगवान कृष्ण ने संदेश दिया है कि भारतीय समाज में विवाह सात जन्मों तक निभाया जाने वाला अटूट संस्कार है। पश्चिम और पूरब की संस्कृति में यही अंतर है कि वहां विवाह अनुबंध के आधार पर होता है और हमारे यहां संस्कार के आधार पर। हम सात वर्षों के लिए नहीं, बल्कि सात जन्मों के लिए अग्नि की साक्षी में सात फेरे लेते हैं। भारतीय संस्कृति को इसीलिए पूरे विश्व में सर्वश्रेष्ठ और उजली संस्कृति माना जाता है।

Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!