लोक माता ने कभी भी मालवा के लिए नहीं सोचा, उन्होंने हमेशा पूरे देश के लिए सोचा है।
अभ्यास मंडल में कैप्टन मीरा दवे

*देवी अहिल्या का नेतृत्व मालवा ही नहीं पूरे देश में विश्वास का प्रतीक था*
*अभ्यास मंडल में कैप्टन मीरा दवे ने कहा*
इंदौर। कैप्टन मीरा दवे ने कहा है कि मालवा की शासक लोकमाता देवी अहिल्याबाई होल्कर का नेतृत्व केवल मालवांचल नहीं बल्कि पूरे देश में नागरिकों के बीच विश्वास का प्रतीक था। लोक माता ने कभी भी मालवा के लिए नहीं सोचा, उन्होंने हमेशा पूरे देश के लिए सोचा है।
वे आज यहां अभ्यास मंडल की 65वीं वार्षिक व्याख्यानमाला में नारी नेतृत्व से बढ़ता नागरिक विश्वास विषय पर संबोधित कर रही थी। उन्होंने कहा कि एक बार लोकमाता अहिल्याबाई उत्तराखंड के रूप में वर्तमान में पहचाने जाने वाले क्षेत्र में भ्रमण कर रही थीं। उस समय उन्होंने देखा कि एक ग्रामीण व्यक्ति एक गाय को बुरी तरह से प्रताड़ित कर रहा है। इस स्थिति को देखकर लोकमाता ने तत्काल उस व्यक्ति को रोका और उसका कारण पूछा तो उस व्यक्ति ने कहा कि इस गाय ने मेरी पूरी फसल बर्बाद कर दी है इसलिए मैं गुस्से में हूं । यह सुनकर लोकमाता अहिल्याबाई ने उस व्यक्ति को दो सोने की मोहर दी और कहा कि इससे तुम अपने परिवार का पालन कर लेना लेकिन गाय को प्रताड़ित मत करों। इसके बाद जब लोक माता आगे गई तो पूरे गांव के लोग अपने पशु लेकर आ गए थे और उन्होंने भी परिवार के पालन के लिए लोकमाता से मदद मांगी। यह नारी नेतृत्व था जो की स्थिति को समझ गया। लोक माता ने गांव के सभी लोगों को सोने की मोहर दी लेकिन उन लोगों से वचन ले लिया कि अब इस गांव में खेती की पूरी जमीन मवेशियों के चरने के लिए होगी। गांव के नागरिकों ने यह वचन दिया। इसके बाद में इस गांव का नाम गोचर हो गया। आज भी यह गांव मौजूद है और पिछले साल इस गांव में लोकमाता अहिल्याबाई की प्रतिमा लगाई गई तथा अहिल्या द्वार का लोकार्पण हुआ है।
उन्होंने कहा कि हमारे देश की सभ्यता में ही अर्धनारीश्वर के रूप में एक स्वरूप पूजा में है। एक समय स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि भारत उड़ान तब भर सकता है जब उसके दोनों पंख मजबूत होंगे। यहां पर दोनों पंख के रूप में स्त्री और पुरुष के स्वस्थ, सकुशल और मजबूत होने की बात कही गई थी। हमारे देश में चौथी सदी में प्रभावती गुप्त के रूप में पहली नारी नेतृत्व कर्ता हुई थीं। इसके बाद में इतिहास में उभमा भारती का भी नाम आता है। जब आदि शंकराचार्य भारत के भ्रमण पर निकले थे तब उन्होंने एक शास्त्रार्थ किया था जिसमें निर्णायक के रूप में मंडन मिश्र की पत्नी उभमा भारती को बैठाया गया था। उस समय पर निर्णायक का दायित्व निभाते हुए उन्होंने शास्त्रार्थ को सुना और उसका परिणाम दिया। इस परिणाम में उन्होंने निर्णय देते हुए अपने पति को इस शास्त्रार्थ में पराजित घोषित किया। नारी के नेतृत्व की जब बात की जाती है तो झांसी की रानी से लेकर जीजाबाई, झलकारी बाई की विस्तार से चर्चा करते हुए उन्होंने कई उदाहरण दिए।
उन्होंने कहा कि किसी भी राष्ट्र के निर्माण के लिए ज्ञान, सेना और पैसा जरूरी होता है। इसमें ज्ञान देवी सरस्वती देती है, सेना यानी शक्ति मां दुर्गा देती है और पैसा मां लक्ष्मी से मिलता है। महिला के हाथ में जहां चूड़ी पहनी होती है तो वह उसी हाथ से रॉकेट लांचर भी उड़ाती है और एके-47 भी चलाती है। पायल और चूड़ी को नारी के बंधन के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। एक नारी जिस तरह से आभूषण धारण करती है इस तरह से शस्त्र भी धारण करती है। हमारे देश में बहुत सारी नारी ग्रहणी होती है। इसका मतलब होता है कि पूरा ग्रह यानि कि घर उनका रिडी है। हाल ही में जब भारत में ऑपरेशन सिंदूर किया था तो उस ऑपरेशन की मीडिया ब्रीफिंग की जिम्मेदारी भी दो महिला अधिकारियों को दी गई थी। इसके साथ ही इस ऑपरेशन में पठानकोट से जो विंग काम कर रही थी इसका नेतृत्व भी एक नारी कर रही थी। फाइटर पायलट भी महिला है। महिला के नेतृत्व के प्रति नागरिक विश्वास भी बढ़ रहा है। कार्यक्रम की अध्यक्षता अशोक बडजात्या ने की। कार्यक्रम के प्रारंभ वक्ता का स्वागत प्रणिता दीक्षित और ग्रीष्मा त्रिवेदी ने किया। कार्यक्रम का संचालन वैशाली खरे ने किया। अतिथि को स्मृति चिन्ह ओपी जोशी ने भेंट किया।
*आज का व्याख्यान*
अभ्यास मंडल की व्याख्यान माला में कल अवधेश कुमार 24 नवंबर को वरिष्ठ पत्रकार एवं विचारक अवधेश कुमार का व्याख्यान होगा। उनके विषय है समाजवाद का स्वप्न और संभावनाएं। यह व्याख्यान शाम 6:00 बजे जाल सभागृह में होगा।



