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आजकल 60 वर्ष की उम्र वाले धनाढ्य लोग बड़ी-बड़ी होटलों में लाखों रुपए खर्च कर पार्टी मनाते हैं- – पं. प्रभुजी नागर

सेवा और पुण्य के साथ मन में भक्ति का भी उदय होना चाहिए – पं. प्रभुजी नागर

सेवा और पुण्य के साथ मन में भक्ति का भी उदय होना चाहिए – पं. प्रभुजी नागर

अन्नपूर्णा मंदिर के मैदान पर चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में बताया भ्रष्टाचार के खात्मे का मंत्र – आज दोपहर कथा के पश्चात होगा समापन

इंदौर,। जीवन में यदि 20 वर्ष की उम्र तक बुद्धि नहीं आती तो माता-पिता की नजरों में, 30 वर्ष में धन नहीं कमाना शुरू किया तो समाज की नजरों में और 60 वर्ष की आयु में पुण्य नहीं कमाया तो भगवन की नजरों में गिर जाएँगे। आजकल 60 वर्ष की उम्र वाले धनाढ्य लोग बड़ी-बड़ी होटलों में लाखों रुपए खर्च कर पार्टी मनाते हैं। उनकी कमाई का पैसा वे जहाँ कहीं खर्च करें उनकी मर्जी लेकिन यह भी याद रखें कि आपके जीवन पर भगवान का भी अधिकार है। यदि अपने धन का कुछ हिस्सा हम भागवत, गौसेवा, कन्याओं को भोजन और दान-पुण्य में खर्च करें तो यह भी सेवा का ही कार्य होगा लेकिन ध्यान रखें कि सेवा और पुण्य के साथ हमारे मन में भक्ति का भी उदय होना चाहिए। आजकल सरकारी अधिकारीयों के बारे में रोज सुनने को मिलता है कि पैसा मांगकर काम करते हैं और रंगे हाथों पकड़े भी जाते हैं। यदि सही में ऊपर से नीचे तक हमको भ्रष्टाचार का खात्मा करना ही है तो पत्नी और बच्चों को उनसे कहना पड़ेगा कि हमें चिकनी-चुपड़ी रोटी के बजाय ईमानदारी के धन की सूखी रोटी ही चाहिए, उसी दिन सूर्यास्त के पहले भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा। माता-पिता की चरण सेवा कर लेंगे तो गिरिराज परिक्रमा पूरी हो जाएगी। माता-पिता की सेवा ही लक्ष्मीनारायण की सेवा है।
माँ सरस्वती के वरद पुत्र और प्रदेश में 200 से अधिक गौशालाओं के संचालक संत कमलकिशोर नागर के सुपुत्र तथा प्रख्यात भागवत मर्मज्ञ संत प्रभुजी नागर ने अन्नपूर्णा मंदिर परिसर में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ के दौरान कृष्ण रुक्मणी विवाह, गोपीगीत एवं भागवत से जुड़े विभिन्न प्रसंगों की व्याख्या के दौरान उपस्थित जन सैलाब को आशीर्वचन देते हुए व्यक्त किए। अन्नपूर्णा आश्रम ओंकारेश्वर के महामंडलेश्वर स्वामी सच्चिदानंद गिरि, स्वामी जयेंद्रानंद गिरि सहित अनेक संतों ने आज भी कथा श्रवण की। कथा शुभारंभ के पूर्व मुख्य यजमान सुरेश अग्रवाल के साथ पूर्व सांसद कृष्णमुरारी मोघे, विधायक मधु वर्मा, लक्ष्मी देवी अग्रवाल, अनिता अग्रवाल, अलका गोयल, कांतादेवी अग्रवाल, इंदिरा अग्रवाल, इंदुमती जैन, किरणदेवी बंसल, कृष्णा कुमारी अग्रवाल (मुंबई), चित्रा अग्रवाल (दाहोद), नारायणलाल सपोटरा, अनिल मोदी, आशीष अग्रवाल, श्रीमती सुरभि अग्रवाल, रामबाबू–श्यामबाबू अग्रवाल, राजेश अग्रवाल, दिनेश बंसल, ओमप्रकाश बंसल, हेमंत गर्ग आदि ने संतश्री की अगवानी की। अन्नपूर्णा के इस परिसर में पं. प्रभुजी की गत 6 नवंबर से चल रही भागवत कथा का विराम बुधवार 12 नवंबर को दोपहर 12 बजे से हरि इच्छा तक चलने वाली अमृतवर्षा के साथ होगा।
पं. नागर ने भक्तों को कृष्ण रुक्मणी विवाह की बधाई देते हुए अनेक प्रेरक प्रसंग सुनाए। उन्होंने कहा कि नवविवाहित दंपत्ति को यदि 5 वर्ष बाद भी संतान की प्राप्ति न हो तो ज़माने भर में दौड़-धूप कर जगह-जगह माथा टेंककर मन्नतें मांगते फिरते हैं पर कभी यह भी चिंतन कर लेना चाहिए कि 60 वर्ष की उम्र हो जाने पर भी अब तक भक्ति का उदय क्यों नहीं हुआ। इसके लिए हमने कभी पछतावा और प्रायश्चित नहीं किया। भागवत भक्ति के उदय की ही कथा है। लक्ष्मी के तीन वाहन है- गरुड़, हाथी और उल्लू। अनीति का धन अर्थात जब लक्ष्मी हम जैसों के घर आती है तो उल्लू पर बैठकर आती है। वे जब नारायण के साथ होती हैं तो गरुड़ पर और जब अकेले निकलती हैं तो हाथी पर सवार होकर आती हैं। कुबेर की सवारी मनुष्य के माथे पर रहती है। ज्यादा धन कमा लेने वाले का दिमाग इसीलिए ख़राब हो जाता है कि उन्होंने खूब पैसा कमाकर अहंकार को माथे पर बैठा रखा है। उन्हें भागवत कथा और गौसेवा जैसे पुण्यकर्म करना चाहिए। भागवत की शोभा यात्रा में पोथी को माथे पर इसीलिए रखा जाता है कि व्यक्ति का अहंकार उतर जाए। श्रीमंत और श्रीमान वही हो सकता है जो अपने धन का उपयोग परोपकारी सेवा कार्यों में करे तो उनके घर भी लक्ष्मी गरुड़ पर बैठकर आएगी। भगवान की कृपा हो तो दिव्यांग भी पहाड़ लांघ सकते हैं और भागवत कथा के मंच पर चढ़कर भजनों पर भी नाच सकते हैं।
पं. नागर ने कहा कि भगवान का कोई रंग नहीं होता, उनका रंग तो “स्किन कलर” है। अमेरिका वाले की चमड़ी का रंग गोरा और अफ्रीका वाले का रंग काला होता है। एक उदाहरण देकर उन्होंने समझाया कि अमेरिका वाले का गोरा रंग, अफ्रीका वाले के काले रंग से अलग स्किन वाला रंग है। अमेरिका की दुकान पर स्किन कलर गोरा होगा और अफ्रीका में काला। इसलिए यह मानकर चलें कि भगवान का रंग हर जगह, हर रूप में अलग-अलग स्किन कलर वाला होता है। उनका रंग तो हमारी भक्ति के रंग के साथ जुड़ा हुआ है। हम उन्हें जैसे रंग में देखना चाहें, अपनी दृष्टि से उन्हें वैसे ही रंग में देख सकते हैं। हमारी भक्ति का रंग ही ईश्वर की भक्ति का रंग है, उनका रंग तो अद्भुत और अनुपम है जिसकी तुलना संसार की किसी स्किन से नहीं हो सकती। भगवान को रामचरितमानस की प्रथम कथा माँ अन्नपूर्णा ने ही काशी में सुनाई। यह संयोग ही है कि आज हम भी अन्नपूर्णा के आंगन में यह कथा सुन रहे हैं। हमारे स्वर में भी ईश्वर है। स्वर से ही हमारे पैर उठते हैं। भगवान को हम कर्मकांड और श्लोक से नहीं, मधुर भजनों से ही रिझा सकते हैं। भगवान जैसे परमतत्व को पाने के लिए गोपियों की तरह मन में विरह की व्याकुलता भी होना चाहिए।
भ्रष्टाचार ऐसे खत्म होगा – उन्होंने कहा कि हम भगवान की बजाय संसार को रिझाने में लगे हुए हैं और यही पाप की जड़ है। घर में सुख सुविधा के लिए हम अनीति की कमाई की होड़ में जुटे हुए हैं। जिस दिन हमारे पत्नी और बच्चे हमसे बोल देंगे कि हमें अनीति के धन की घी चुपड़ी रोटी नहीं, हम तो सूखी रोटी से भी पेट भर लेंगे, उस दिन इस देश से भ्रष्टाचार का तांडव खत्म हो जाएगा। पति-पत्नी को साथ बैठकर कथा जोड़े से सुनना चाहिए। भक्ति भगवान की सखी है। पुण्य कार्यों से स्वर्ग मिल सकता है लेकिन भक्ति तो सीधे भगवान से ही मिलाएगी। भगवान को केवल एक तुलसी-जल ही अर्पित कर देंगे तो वे प्रसन्न हो जाएँगे। भगवान की कथा श्रवण करना भी भगवान की ही सेवा है।

 

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