तमोगुण और रजोगुण जैसी बुराइयाँ सिखने के लिए कहीं नहीं जाना पड़ता – – पं. प्रभुजी नागर
अन्नपूर्णा मंदिर के मैदान पर चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में धूमधाम से मना कृष्णा जन्मोत्सव- गौशाला के लिए 11 लाख रु. दान

युवा पीढ़ी को मोबाइल, इन्टरनेट और सोशल मीडिया के जहर से नहीं बचाया तो समाज के चाल-चलन को बचाना मुश्किल हो जाएगा – पं. प्रभुजी नागर
अन्नपूर्णा मंदिर के मैदान पर चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में धूमधाम से मना कृष्णा जन्मोत्सव- गौशाला के लिए 11 लाख रु. दान

इंदौर। दुर्लभ मनुष्य जीवन में विद्या सिखने के लिए हमें बहुत कुछ करना पड़ता है लेकिन अविद्या बिना कुछ करे ही मिल जाती है। तमोगुण और रजोगुण जैसी बुराइयाँ सिखने के लिए कहीं नहीं जाना पड़ता। आज समाज में सबसे बड़ी जरूरत है अपने चरित्र को सँभालने की। प्रभु राम को ताड़का और कृष्ण को पूतना जैसी अविद्या से ही सबसे पहले सामना करना पड़ा था। अविद्या को दूर किए बिना राम और कृष्ण के चरित्र को समझना संभव नहीं है। ताड़का को मारेंगे तभी विश्वामित्र का यज्ञ संपन्न होगा। आज हमारी युवा पीढ़ी कंप्यूटर, मोबाइल, इन्टरनेट, सोशल मीडिया और इंस्टाग्राम के ऐसे जहर में डूब रही है, जिससे यदि नहीं बचाया तो समाज के चाल-चलन और चरित्र को बचाना और संभालना मुश्किल हो जाएगा। इसे देखकर आने वाले समाज की कल्पना करने में भी डर लगता है। जिस दिन हमारे युवा बिना कहे मंदिर जाने लगें, बड़ों के चरण छूने लगें, कथाओं में आने लगें, उस दिन समझना कि हमारे बच्चे संस्कारवान बन गए हैं।
मालव माटी के सपूत, माँ सरस्वती के वरद पुत्र और प्रदेश में 200 से अधिक गौशालाओं के संचालक संत कमलकिशोर नागर के सुपुत्र तथा प्रख्यात भागवत मर्मज्ञ संत प्रभुजी नागर ने अन्नपूर्णा मंदिर परिसर में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ के दौरान गोवर्धन पूजा एवं नंद उत्सव सहित विभिन्न प्रसंगो की प्रभावी व्याख्या के दौरान उपस्थित जन सैलाब को आशीर्वचन देते हुए उक्त दिव्य एवं प्रेरक विचार व्यक्त किए। अन्नपूर्णा आश्रम ओंकारेश्वर के महामंडलेश्वर स्वामी सच्चिदानंद गिरि, स्वामी जयेंद्रानंद गिरि सहित अनेक संत भी प्रतिदिन आम श्रोताओं के बीच बैठकर कथा श्रवण कर रहे हैं। कथा शुभारंभ के पूर्व मुख्य यजमान सुरेश अग्रवाल के साथ मातृशक्ति की ओर से श्रीमती अनिता अग्रवाल, कृष्णा गर्ग, इंदिरा अग्रवाल, नेहा अग्रवाल, कृतिका अग्रवाल, सुनंदा लड्ढा, इंदुमती जैन एवं अलका गोयल ने अतिथियों का स्वागत किया। हिंदी और मालवी के मिलेजुले लहजे में मनोहारी भजनों के बीच प्रभुजी नागर की कथा श्रवण करने के लिए आज भी कथा पंडाल का विस्तार करना पड़ा। अन्नपूर्णा के इस परिसर में पं. प्रभुजी अपने श्रीमुख से 12 नवंबर तक प्रतिदिन दोपहर 12 से 3 बजे तक भागवत कथामृत की वर्षा करेंगे। पं. नागर के भजनों पर नाचने-गाने का सिलसिला तो पहले दिन से ही चल रहा है। आज भी उन्होंने पांच भजन सुनाए और इस दौरान मानो समूचा पंडाल थिरकता रहा। गोवर्धन पूजा के प्रसंग पर अन्नपूर्णा मंदिर में 56 भोग समर्पित किए गए। इस अवसर पर यजमान परिवार की ओर से रामबाबू-श्यामबाबू अग्रवाल, दिनेश बंसल, ओमप्रकाश बंसल, हेमंत गर्ग, राजेश अग्रवाल सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।
पं. नागर ने कहा कि जीवन में विद्या प्राप्त करने के लिए संयम, साधना और अनेक जतन करना होते हैं। हनुमानजी राम के दूत थे लेकिन उन्होंने भी रावण के दरबार में पहुँचने के बाद पहले सरस्वती का स्मरण किया। लक्ष्मी चाहे जितनी आ जाए, सरस्वती के बिना हमारी सम्पन्नता अधूरी ही रहेगी। चरित्र व्यक्ति के लिए सबसे बड़ी पूँजी होना चाहिए। चरित्र खो दिया तो समझो सबकुछ खो दिया। सरस्वती की कृपा और आशीर्वाद मिलने के बाद बुद्धि कुशाग्र और जीवन आनंदमय बन जाएगा। अपने बच्चों के पढ़ाई के कक्ष में सरस्वती का चित्र अवश्य रखें।
पं. नागर ने कथा सुन रहे श्रोताओं से आग्रह किया कि हमें भी यही प्रार्थना करना चाहिए कि हमारे बच्चों की बुद्धि ठीक रहे। आज समाज में मोबाइल और कंप्यूटर, इन्टरनेट जैसी आदतें बच्चों ने इस तरह पाल रखी हैं कि समाज का चाल-चलन बिगड़ रहा है। माँ अपने नवजात बच्चे को 6 माह में दूध पिलाना छुड़वा देती है लेकिन मोबाइल और इन्टरनेट की लत इस तरह लग गई है कि उसे छुड़ाना बहुत बड़ा काम हो गया है। यह जहर से भी ज्यादा खतरनाक है। भगवान कृष्ण का अन्नप्राशन संस्कार स्वयं अन्नपूर्णा ने किया था। जिसे स्वयं अन्नपूर्णा ने पहला अन्न दिया हो और जिसे महाकाल की कृपा मिली हो वह जीवन में कभी असफल नहीं हो सकता। अपने चरित्र को बचाकर रखना भी आज के युग में बहुत बड़ा काम है। पाप की शुरुआत दृष्टि से होती है। हमारी दृष्टि में पवित्रता होना चाहिए। भगवान ने हमारी आँखों के ऊपर पलकोंरुपी परदा भी दिया है। यह याद रखें कि पाप की शुरुआत भी दृष्टि से होती है और भक्ति की शुरुआत भी आँखों से ही होती है। हमारी बुद्धि ऐसी होना चाहिए जो हमें बुरी और अच्छी प्रवृत्ति का बोध करा दे। आज भी समाज में ऐसी अनेक प्रवृत्तियां हैं जो हमारे समूचे परिवेश को प्रभावित कर रही हैं। हमारी नजरें ही सबकुछ बयां कर देती हैं। ऑंखें भी बोलती हैं। दृष्टि में जिस दिन बहन-बेटियों के प्रति सम्मान और बुजुर्गों के प्रति मान का भाव आ जाएगा, उस जिन समझ लेना कि हमने संस्कार सीख लिए हैं।



