विविध

भक्ति के बीज बचपन में डालें, पचपन में नहीं – पं. ऋषभदेव

भक्ति में निष्काम भाव होना चाहिए। भक्ति में पाखंड या प्रदर्शन ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकते।

भक्ति के बीज बचपन में डालें, पचपन में नहीं – पं. ऋषभदेव

सुदामा नगर ए सेक्टर में चल रही भागवत कथा में उमड़ रहा भक्तों का सैलाब-

इंदौर, । भक्ति किसी भी रूप में हो, उसका प्रतिफल अवश्य मिलता है। विडम्बना है कि हमें वृद्धावस्था में ही भक्ति का जुनून चढ़ता है। यदि बाल्यकाल से ही भक्ति के संस्कार मिलें, तो वृद्धावस्था संवर जाएगी। भक्ति के बीज बचपन में डालें, पचपन की उम्र में नहीं। भक्ति में निष्काम भाव होना चाहिए। भक्ति में पाखंड या प्रदर्शन ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकते।
बालव्यास भागवताचार्य पं. ऋषभदेव महाराज बनारस वालों के, जो उन्होंने सुदामा नगर सेक्टर ए स्थित रामजी सदन, दत्त मंदिर के पास चल रहे संगीतमय भागवत ज्ञान यज्ञ के दौरान उपस्थित भक्तों को भक्ति की महिमा बताते हुए व्यक्त किए।

कथा शुभारम्भ के पूर्व अजय पांडे, श्रीमती मंजुला प्रशांत पांडे, विजय शर्मा, रेखा पूरे, श्रीमती प्रभा पांडे, श्रीमती सोना संजय, प्रिंस पांडे आदि ने व्यास पीठ का पूजन किया।
– पं. ऋषभदेव ने कहा कि हम सबके जीवन में भी  सुरूचि और सुनीति  का संशय बना रहता है। इसी कारण हम सब अपने लक्ष्य से विमुख हो जाते है। भगवान की भक्ति का मतलब यह नहीं है कि हम हिमालय पर चले जाएं या गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारी से पलायन कर लें। भक्ति गृहस्थ होते हुए करना ज्यादा चुनौतीपूर्ण काम है। गृहस्थ जीवन तो सबसे बड़ा धर्म माना गया है। प्रेम, दया, करूणा, सत्य जैसे गुणों का सृजन भक्तिमार्ग से ही संभव है। भारत भूमि को दुनिया में सर्वश्रेष्ठ स्थान इसीलिए मिला क्योंकि यह भक्तों की ही भूमि रही है। जितने भक्त भारत में हुए, उतने कहीं और किसी भी देश में नहीं हुए।

Show More

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!