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रतलाम का महालक्ष्मी मंदिर, जहां दीपावली पर बंटते रुपए व सोना-चांदी जवाहरात से सजा।

करीब 300 वर्ष पुराना है और रियासतकालीन विरासत का प्रतीक है। पांच दिन तक शाही खजाने के सोने-चांदी के आभूषण मां लक्ष्मी को अर्पित।

आशीष यादव धार।

दीपोत्सव की रौनक के बीच रतलाम का मां महालक्ष्मी मंदिर इस बार भी अपनी अनोखी और भव्य सजावट के लिए चर्चा में है। मध्यप्रदेश के रतलाम शहर में मां महालक्ष्मी का ऐसा मंदिर है जहां लोगों को प्रसाद में हर साल आभूषण बांटे जाते है। जी हां, ये आपको मजाक लग सकता है, लेकिन ये सच है। मान्यता है कि यहां पर जो भी भेंट के रूप में भक्तों की तरफ से चढ़ाया जाता है वो उसी साल के अंत में दोगुनी हो जाती है। खासतौर पर दीपावली के समय इस मंदिर में खूब भीड़ होती है। दीपावली से पहले लोग यहां पर पूरी श्रद्धा के साथ नोटों की गड्डियां और आभूषण लेकर आते है। उस दौरान इन नोटों की गड्डियां और आभूषण को मंदिर में ही रख लिया जाता है। साथ ही इसकी बकायदा एंट्री भी की जाती है और टोकन भी दे दिया जाता है। भाई दूज के बाद टोकन वापस देने पर इसे वापस भी लिया जा सकता है। धनतेस के दिन ब्रह्म मुहूर्त में मंदिर के कपाट खोल दिए जाते हैं।

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दीपावली पर सजाया जाता है मंदिर…
रतलाम के माणकचौक में बने श्री महालक्ष्मी मंदिर को इस बार रुपयों व आभूषणों से सजाया गया है। जिसकी कीमत 2 करोड़ रुपए से अधिक है। यहां कि सजावट को देखकर लगता है कि इतना सारा धन मंदिर को दान में मिलता है, हकीकत यह है कि धन मंदिर को दान में नहीं बल्कि सजावट के लिए श्रद्धालु देते हैं, जो उन्हें बाद में वापस कर दिया जाता है।

प्रसाद में मिलती कुबेर की पोटली:
दीपावली बाद जो भी भक्त इस मंदिर में दर्शन के लिए जाता है उसे प्रसाद के रुप में पूर्व में दिए हुए आभूषण और रुपए दे दिए जाते हैं। साथ ही जिसने नकदी दी है, उसको नकदी भी दी जाती है। भक्तों का कहना है कि वे इस प्रसाद को शगुन मानकर कभी भी खर्च नहीं करते हैं बल्कि संभालकर रखते हैं। साथ में कुबेर की पोटली भी दी जाती है। पोटली के लिए लंबी लाइन लगती है। मान्यता है कि इस मंदिर में जो भी अपने आभूषणों को महालक्ष्मी के श्रृंगार के लिए लाता है उसके घर में सुख समृद्धि बनी रहती है। महिलाओं को प्रसाद के रुप में श्रीयंत्र, सिक्का, कौड़ियां, अक्षत, कंकूयुक्त कुबेर पोटली दी जाती है, जिन्हें घर में रखना शुभ माना जाता है।

कहीं नहीं है ऐसा मंदिर…
पूरे भारत देश में ऐसा कोई भी मंदिर नहीं है जहां पर सोने-चांदी के आभूषणों, हीरों-जवाहरातों व नकद राशि से श्री महालक्ष्मी का श्रृंगार किया जाता है। इस मंदिर की खासियत ये है कि आज तक भक्तों के द्वारा लाए गए करोड़ों के आभूषण इधर से उधर नहीं हुए हैं। एक समय के बाद भक्तों को ये वापस कर दिए जाते हैं।

300 साल पुरानी परंपरा
महालक्ष्मी मंदिर के पुजारी अश्विनी पुजारी बताते हैं कि यह मंदिर करीब 300 वर्ष पुराना है और रियासतकालीन विरासत का प्रतीक है। रतलाम के संस्थापक महाराजा रतन सिंह राठौर ने जब शहर की स्थापना की थी, तभी से दीपावली यहां राजकीय भव्यता के साथ मनाई जाती रही है। राजा अपनी प्रजा की समृद्धि, सुख और निरोगी जीवन की कामना करते हुए पांच दिन तक शाही खजाने के सोने-चांदी के आभूषण मां लक्ष्मी को अर्पित करते थे। इसी परंपरा ने समय के साथ स्वरूप बदला और अब श्रद्धालु अपने आभूषण, नकदी और नोट सजावट के लिए मंदिर में अर्पित करते हैं। पं. अश्विनी पुजारी बताते हैं कि दीपावली प्रकाश पर्व के साथ ही धन और वैभव का त्योहार है। विष्णु भगवान की अर्धांगिनी महालक्ष्मी की पूजा इस पर्व का प्रमुख अंग है। श्रद्धालु मानते हैं कि जिस व्यक्ति का धन महालक्ष्मी के श्रृंगार में इस्तेमाल होता है, उसके घर में सुख, संपन्नता और धन की वर्षा होती है। यही कारण है कि रतलाम ही नहीं, पड़ोसी राज्यों से भी भक्त यहां पहुंचते हैं ताकि उनका धन मां की आराधना में काम आए।

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