इंदौर

सीमाओं से परे माँ की ममता: संतान की खुशहाली के लिए माताओं ने रखा 36 घंटे का निर्जला महाव्रत

सीमाओं से परे माँ की ममता: संतान की खुशहाली के लिए माताओं ने रखा 36 घंटे का निर्जला महाव्रत

इंदौर: “माँ का व्रत भूख-प्यास की परीक्षा नहीं, बल्कि संतान की सुख शांति, खुशहाली की मौन प्रार्थना है।”आधुनिक युग में जहाँ संचार के साधन पलों में दूरियों को मिटा देते हैं, वहीं माँ की ममता एक रिश्ता ऐसा है जो सदा से अटूट और अमर है। इसी असीम ममता की पावन झलक शहर में देखने को मिली, जब मैथिल, भोजपुरी और अन्य पूर्वांचली समुदाय की सैकड़ों माताओं ने अपने बच्चों के दीर्घायु, सुख और समृद्धि के लिए कठिन जितिया महाव्रत रखा। 36 घंटे के निर्जला जितिया महाव्रत का समापन सोमवार सुबह पारण के साथ हुआ।

सुबह शहर का वातावरण श्रद्धा से सराबोर हो गया।  माताओं ने पवित्र स्नान कर भगवान जीमूतवाहन की पूजा-अर्चना की और खीरा, अंकुरित अनाज, पान के पत्ते, मखाना, फल और मिठाई का नैवेद्य अर्पित किया। इसके बाद ही 36 घंटे की कठोर तपस्या पूर्ण कर माताओं ने प्रसाद ग्रहण कर पारण किया।

तुलसी नगर निवासी शारदा झा, जो पिछले 30 वर्षों से जितिया व्रत कर रही हैं, उपवास तोड़ने से पहले उन्होंने अमेरिका के शिकागो में रह रहे अपने बेटे-बहू, कोलकाता, दरभंगा, फरीदाबाद, दोहा तथा अबू धाबी में रह रहे परिवार की बेटियों, बहनों, बेटों, परिजनों के साथ वीडियो कॉल के माध्यम से जुड़कर सभी को भगवान जीमूतवाहन के चरणों में आशीर्वाद लेने का अवसर दिया। ममता से भरी नम आखों से हाथ जोड़कर उन्होंने परिवार के बच्चों की सुख-समृद्धि और दीर्घायु जीवन की प्रार्थना की। आभासी माध्यम से देश, विदेश में रह रहे अपने बच्चों को उनके दीर्घ एवं स्वस्थ्य जीवन का आशीर्वाद देने का यह भावुक दृश्य साबित कर गया कि माँ की ममता, उनका आशीर्वाद सरहदों और महासागरों से कहीं अधिक शक्तिशाली होती है।

शहर के मैथिल-बिहारी एवं पूर्वोत्तर समाज के वरिष्ठ के.के. झा ने कहा— “जैसे छठ पर्व अपनी कठोरता और आस्था के लिए प्रसिद्ध है, वैसे ही जितिया मिथिला की परंपरा का अनमोल रत्न है। यह केवल उपवास नहीं, बल्कि अपार प्रेम और त्याग का प्रतीक है। 36 घंटे तक माताएँ भूख-प्यास भुलाकर सिर्फ एक संकल्प के साथ रहती हैं—अपने बच्चों की भलाई के लिए।”

इस वर्ष जितिया महाव्रत कर रही मैथिल समाज के परिवारों में शहर के मैथिल समाज की संस्था – मैथिल सामाजिक मंच द्वारा आवश्यक सामग्री वितरित की गई, ताकि सभी माताएँ ‘नहाय-खाय’ की परंपरा पूरी श्रद्धा और गरिमा के साथ निभा सकें।

इस वर्ष का जितिया महाव्रत इंदौर में केवल एक धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं रहा, बल्कि उस सार्वभौमिक सत्य का सशक्त प्रमाण बना कि चाहे कितनी भी दूरियाँ क्यों न हों, माँ का प्रेम और आशीर्वाद हर सरहद को लाँघ जाता है। इंदौर से लेकर अमेरिका तक, अबू धाबी से कोलकाता तक—हर ओर एक ही धागा बुना गया, आस्था और ममता का।

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