
सेंधवा: माता-पिता और गुरु का हमारे जीवन में सबसे अधिक उपकार होता है, प्रतिकूलता की आंधी हो या विषम परिस्थितिया माता-पिता सदैव हमारे साथ खड़े रहते हैं इसलिए जीवन में इनके उपकार को कभी नहीं भूलना चाहिए
उक्त उद्गार प्रवर्तक जिनेंद्र मुनि जी महाराज साहब की आज्ञानुवरती सुव्रताजी म.सा. ने जैन स्थानक में व्यक्त किए। आपने कहा कि माता की ममता और पिता की क्षमता ही बालक के भाग्य को तैयार करती है, माता-पिता की शीतल छाया हमें जीवन की कड़ी धूप से बचाती है, माता अपने अपने बच्चों को 9 माह जो गर्भ में रखती है और जो पीड़ा सहन करती है उसका अनुभव नहीं कर सकते हैं, परंतु इसके बाद भी वर्तमान में कुछ बच्चे माता-पिता को बोझ समझते हैं और कुछ तो ऐसे होते हैं जो उनको अपने साथ रखकर एहसान जताते हैं पर ध्यान रखना कि हमारा माता-पिता के प्रति यह गलत व्यवहार हमारे पतन का कारण है। आपने कहा कि पुण्य की प्रबलता और शक्ति के नशे में साथ ही बुद्धि के अहंकार में माता-पिता का तिरस्कार कभी मत करना । सदैव ध्यान रखना की जो घना वृक्ष चाहे फल ना देता हो पर छाया तो सदैव प्रदान करता है उसी प्रकार माता-पिता चाहे बूढ़े हो जाए पर उनका आशीर्वाद हमारे लिए सदैव रहता है।
अपने कटाक्ष करते हुए कहा कि माता-पिता दो बार अपने जीवन काल में जरूर रोते हैं एक बार जब बेटी की विदाई होती है तब और दूसरा बेटा जब मुंह मोड़ लेता है तब , सदैव ध्यान रखना की उम्र के हिसाब से माता-पिता चिड़चिड़ा हो सकते हैं पर उनका वात्सल्य और आशीर्वाद कभी काम नहीं होता है। बड़ी विडंबना है कि आज हम जीते हुए तो माता-पिता की सेवा करते नहीं ओर उनका तिरस्कार करते हैं पर मृत्यु के पश्चात उनके फोटो को धूप बत्ती करते हैं और उनको श्रद्धांजलि देकर उनके नाम से भोजन करवाते हैं पर स्वयं चिंतन करें कि जीते जी हमने यदि सेवा नहीं की तो इसका कोई अर्थ है क्या ?
इसके पूर्व शीतल जी म.सा ने कहा कि हम चिंतन करें कि आज हम प्रसन्न ज्यादा रहते हैं या उदास ? हमारे चेहरे पर मुस्कान अधिक रहती है या उदासी। जिसके चेहरे पर सदैव मुस्कान रहती है और जिसका मन प्रसन्न रहता है वह उनकी आधी बीमारी तो ऐसे ही ठीक हो जाती है । इसलिए प्रसन्नता को हमारा स्वभाव बनाएं। आपने कहा कि जीवन में जब भी सेवा का अवसर मिले तब हम प्रसन्नता से और हो भाव से वह सेवा कार्य करें, निस्वार्थ भाव से की गई सेवा से हमारी अनंत अशुभ कर्मों की निर्जरा होती है। आपने कहा कि जब भी हमारे जीवन में कष्ट और बीमारी आए तब यह चिंतन करेगी यह हमारे ही अशुभ कर्मों का उदय है और यह समय भी चला जाएगा ऐसे समय में हम मन में प्रसन्नता के भाव रखें , चेहरे पर मुस्कान एवं प्रसन्नता एक पेन किलर दवा का काम करता है।
श्रीसंघ के प्रेमचंद सुराणा ने बताया कि पर्युषण पर्व में बड़ी संख्या में धर्म ओर तप आराधना चल रही हैं आज केवल गर्म जल पर आधारित 26 उपवास के पच्खान दिक्षीता रिषभ सुराणा एवं 25 उपवास के पच्खान नीता बैन खोना ने लिए साथ ही सोनल ओस्तवाल ने सिद्धी तप आराधना करते हुए आज 9 उपवास के पच्खान लिए साथ ही आज 5 उपवास के पच्खान भुषण जैन, नीता जैन ने लिए। इसके अलावा अनेक श्रावक श्राविकाओं ने 3 उपवास के पच्खान लिए ओर भी अनेक तपस्याए पर्युषण पर्व सतत् गतिमान है।