बालकों को बचपन से दें अच्छे संस्कार : सुव्रता जी म.सा.

सेंधवा। बालक कच्ची मिट्टी के समान होता है, बचपन से हम बच्चों को जैसा ढालते हैं वे वैसे ढल जाते हैं। माता-पिता उनके समक्ष जैसा व्यवहार करते हैं वैसा व्यवहार वह भी सिखते हैं इसलिए बालकों के सामने माता-पिता का व्यवहार भी शालीन होना चाहिए। बचपन में जो संस्कार बालकों में पड़ जाते हैं उन्हें बदलना मुश्किल होता है इसलिए बच्चों में सदैव अच्छे संस्कार आए इसका प्रयास करना प्रत्येक माता-पिता का कर्तव्य है।
उक्त उद्गार प्रवर्तक जिनेंद्र मुनि जी की अज्ञानुवर्तनी पूज्य श्री सुव्रताजी म.सा. ने जैन स्थानक में कहें। आपने कहा कि बोलने में सदैव विवेक रखना चाहिए, हमारे शब्दों का चयन बहुत सोच समझकर करना चाहिए। हमारे वचन से कर्म निर्जरा भी हो सकती है और अशुभ कर्म का बंध भी हो सकता है इसलिए बोलने में बहुत सावधानी रखना चाहिए। व्यर्थ में हमारी वाणी से किसी का मन दुखे ऐसे वचन नहीं बोलना चाहिए, ज्ञानीजन फरमाते हैं कि वचन को अंगार नहीं श्रृंगार बनाइये। हम भाषा का विवेक रखकर पुण्य कर्म का बंध भी कर सकते हैं और यदि अविवेक भाषा का उपयोग किया जाए तो पाप का कर्म का बंध भी हो सकता है। आपने कहा कि जिस प्रकार बोलने में विवेक जरूरी है उसी प्रकार खाने में भी विवेक रखना चाहिए, क्या खाने योग्य है एवं क्या नहीं इस पर स्वयं को चिंतन करना चाहिए, हम स्वयं चिंतन करें कि हम जीने के लिए खा रहे हैं या खाने के लिए जी रहे हैं ?
श्री संघ के अध्यक्ष अशोक सकलेचा ने बताया कि आज सौ प्रभावती भट्टुलाल जैन ने केवल गर्म जल पर आधारित ५ उपवास की तपस्या के पच्खान लिए । इसके साथ ही अनेक श्रावक श्राविकाओं की तप आराधना चातुर्मास बैठने के दिन से सतत चल रही है। उक्त धर्म सभा में घेवरचंद बुरड़, बी.एल. जैन, छोटेलाल जोगड़, चंद्रकांत सेठ, प्रकाश सुराणा, महेश मित्तल, पंकज अग्रवाल, महावीर सुराणा, परेश सेठिया, अशोक लुणावत, तेजस शाह, अचिन जैन, मनिष बुरड सहित अनेक श्रावक श्राविकाएं उपस्थित थे।