सेंधवा। भूत-प्रेत संग निकली शिव बारात, नगर में गूंजे शिव-पार्वती विवाह के भजन
शिव विवाह महोत्सव में श्रद्धा-भक्ति का संगम, महिला मंडल और समाजसेवियों ने किया स्वागत

सेंधवा। नगर के प्राचीन श्री राजराजेश्वर मंदिर में चल रही शिव महापुराण कथा के चौथे दिन शिव-पार्वती विवाह महोत्सव की भव्य प्रस्तुति ने श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया। काशी बनारस से पधारे संत स्वामी 1008 श्री आशुतोषानंद गिरी महाराज ने देवी पार्वती की घोर तपस्या की कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि जहां नारी का सम्मान होता है, वहां देवता स्वयं वास करते हैं।
महाराज ने बताया कि देवी पार्वती, जो पूर्व जन्म में सती थीं, ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप किया। माता ने केवल पत्तों पर जीवित रहकर वर्षों तक साधना की, जिससे उन्हें ‘अपर्णा’ नाम मिला। शिवजी ने पार्वती की परीक्षा लेने कई रूप धारण किए, लेकिन माता अपने संकल्प पर अडिग रहीं। अंततः तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने विवाह के लिए स्वीकृति दी।
कथा में बताया गया कि शिवजी अपनी अनूठी बारात लेकर राजा हिमालय के द्वार पहुंचे। भूत, प्रेत, गण, देवी-देवताओं से सजी बारात में नगरवासी भी झूमते नजर आए। सप्तऋषियों ने शुभ मुहूर्त में शिव-पार्वती का विवाह सम्पन्न कराया। इस अवसर पर विवाह प्रसंग की सजीव झांकी ने माहौल को भक्तिमय बना दिया।
गंगा मैया की कथा का उल्लेख करते हुए महाराज ने कहा कि ब्रह्मा के साथ स्वर्ग जाने पर गंगा को माता का श्राप मिला, जिससे उन्हें धरती पर आना पड़ा। महाराज ने कलयुग की दुर्दशा पर कटाक्ष करते हुए कहा कि “आज गली-गली रावण सीता को चुरा रहा है और माता-पिता दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं।” साथ ही उन्होंने काशी को तीनों लोकों में प्रिय बताया।
नगर एवं बड़ी बिजासन मंदिर के विद्वान पंडितों, मारवाड़ी ब्राह्मण समाज, ब्राह्मण महिला मंडल एवं आरएसएस की बहनों ने व्यास पीठ का पुष्पमालाओं से स्वागत कर चरण वंदना की। कथा के समापन पर स्वामी आशुतोषानंद गिरी महाराज ने नगरवासियों और आयोजक मंडल द्वारा मिले स्नेह और सम्मान की सराहना की। आरती के उपरांत प्रसाद वितरण किया गया।