इंदौर

समय पर की गई सर्जरी से बचाया जा सकता है जटिल हर्निया” — डॉ. अमिताभ गोयल*

हर्निया एसेंशियल्स डिडैक्टिक्स

*हर्निया एसेंशियल्स डिडैक्टिक्स*

विशेष जुपिटर हॉस्पिटल में हर्निया सर्जरी वर्कशॉप का पहला दिन

“समय पर की गई सर्जरी से बचाया जा सकता है जटिल हर्निया” — डॉ. अमिताभ गोयल

इंदौर, । स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में एक और उपलब्धि दर्ज करते हुए, विशेष जुपिटर हॉस्पिटल, इंदौर में  आयोजित “हर्निया एसेंशियल्स डिडैक्टिक्स” वर्कशॉप के पहले दिन का सफल समापन हुआ। दो दिवसीय इस कार्यक्रम में देशभर से आए सर्जनों, मेडिकल छात्रों और पोस्टग्रेजुएट ट्रेनीज़ ने हिस्सा लिया, जहां उन्हें हर्निया रोग की बारीकियों, नवीनतम सर्जिकल तकनीकों और उपचार के आधुनिक तरीकों की गहन जानकारी दी गई। इस ट्रेनिंग प्रोग्राम में हर्निया के विभिन्न प्रकारों, विशेषकर इनगुइनल, वेंट्रल और इनसिजनल हर्निया, के निदान, थ्योरी से लेकर थ्री-डायमेंशनल लैप्रोस्कोपी और नवीनतम eTEP, MILOS, TARM तकनीकों तक की विस्तृत चर्चा की गई। प्रतिभागियों को केस-आधारित चर्चाओं, वीडियो केस स्टडीज़, लाइव डेमोन्स्ट्रेशन और फीडबैक सेशनों के माध्यम से व्यावहारिक ज्ञान भी प्राप्त हुआ।

केयर सीएचएल हॉस्पिटल, इंदौर के सीनियर कंसल्टेंट सर्जन, डिपार्टमेंट ऑफ जनरल सर्जरी, जीआई सर्जरी एंड एडवांस्ड लैप्रोस्कोपिक सर्जरी डॉ. सी. पी. कोठारी ने कार्यशाला के पहले दिन ‘क्लासिफिकेशन ऑफ हर्निया, हर्निया रिपेयर, लेप्रोस्कोपिक बनाम ओपन रिपेयर तकनीक, टीईपी/टीएपीपी जैसे विषयों पर बात की एवं हर्निया के प्रकारों की वैज्ञानिक वर्गीकरण पद्धति को सरल और व्यावहारिक ढंग से प्रस्तुत किया। उनका ज़ोर इस बात पर था कि हर रोगी के लिए उपचार का निर्णय व्यक्तिगत जाँच और आवश्यकता पर आधारित होना चाहिए।

विशेष जुपिटर हॉस्पिटल, इंदौर के डायरेक्टर, रोबोटिक, लैप्रोस्कोपिक, थोरेको-वैस्कुलर एंड जनरल सर्जरी, और इस वर्कशॉप के कन्वीनर डॉ. अमिताभ गोयल ने कहा, “विशेष जुपिटर हॉस्पिटल, इंदौर में आयोजित यह दो दिवसीय कार्यशाला ‘हर्निया एसेंशियल्स डिडैक्टिक्स’ हर्निया सर्जरी की बुनियादी और आधुनिक तकनीकों पर आधारित एक व्यावहारिक प्रशिक्षण कार्यक्रम है। यह कोर्स उन सभी युवा सर्जनों, मेडिकल ट्रेनीज़ और पोस्टग्रेजुएट छात्रों के लिए है जो हर्निया के क्षेत्र में अपनी समझ और सर्जिकल कौशल को मजबूत करना चाहते हैं। यह कार्यशाला इंटरनेशनल गाइडलाइन्स पर आधारित है और इसमें हर्निया की एनाटॉमी से लेकर क्लासिफिकेशन, सर्जरी के प्रकार, सही निर्णय लेने की प्रक्रिया और एडवांस्ड लैप्रोस्कोपिक अप्रोच तक हर जरूरी पहलू को कवर किया जा रहा है। आज पहले दिन हमने मुख्य रूप से इनगुइनल हर्निया पर फोकस किया, जिसमें TEP और TAPP तकनीकों, Mesh बनाम Non-Mesh अप्रोच, ओपन वर्सेस लैप्रोस्कोपिक सर्जरी और केस बेस्ड निर्णय लेने की प्रक्रिया पर विस्तार से चर्चा की गई। साथ ही, प्रतिभागियों को लाइव केस डिस्कशन, रेडियोलॉजी एनालिसिस और सर्जिकल पोजिशनिंग जैसी बारीक चीजें भी सिखाई गईं। कल यानी 5 जुलाई को हम वेंट्रल और इनसिजनल हर्निया की एडवांस तकनीकों जैसे eTEP, SCOLA, MILOS और TARM पर फोकस करेंगे। साथ ही, कंपोनेंट सेपरेशन, हाइब्रिड सर्जरी, जटिल केस हैंडलिंग और प्रैक्टिकल डेमोन्स्ट्रेशन भी होंगे। मेरा मानना है कि यह वर्कशॉप सर्जनों के लिए एक ऐसी बुनियाद तैयार कर रही है, जो उन्हें तकनीकी रूप से दक्ष और निर्णयात्मक रूप से मजबूत बनाएगी।”

दिल्ली से आए एशिया पैसिफिक हर्निया सोसाइटी (एपीएचएस) के प्रेसिडेंट डॉ. राजेश खुल्लर ने कहा, “कार्यक्रम की शुरुआत हर्निया की मूल समझ और उसकी शारीरिक बनावट (एनाटॉमी) से हुई। इसमें यह बताया गया कि हर्निया तब होता है जब पेट की दीवार में कमजोरी के कारण आंत या वसा का भाग बाहर की ओर उभर आता है। इस स्थिति को सही समय पर पहचानना और उसका सटीक निदान करना बेहद जरूरी होता है। वर्कशॉप में यह समझाया गया कि हर्निया के विभिन्न प्रकार होते हैं — जैसे इनगुइनल, वेंट्रल और इनसिजनल हर्निया — और हर प्रकार की सर्जरी की योजना उसके स्थान, आकार और मरीज की स्थिति के अनुसार बनती है। जनमानस को भी हम यह संदेश देना चाहते हैं कि अगर पेट, कमर या जांघ के आसपास कोई उभार दिखाई दे जो खांसी करने या खड़े होने पर और अधिक स्पष्ट हो जाए, तो इसे नज़रअंदाज़ न करें और तुरंत डॉक्टर से परामर्श लें। हर्निया कोई मामूली परेशानी नहीं है, लेकिन समय पर की गई सर्जरी न सिर्फ सुरक्षित होती है, बल्कि रोगी को जल्दी स्वस्थ होने में भी मदद करती है। आज के दौर में हर्निया की सर्जरी अत्याधुनिक तकनीकों से की जाती है, जिससे मरीज को कम दर्द होता है, रिकवरी तेज़ होती है और परिणाम अधिक बेहतर व स्थायी होते हैं। जागरूक रहें, समय पर निर्णय लें और स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें।”

हैदराबाद से आई सीनियर कंसल्टेंट, रोबोटिक, जीआई, एमएएस (मिनिमल एक्सेस सर्जरी) एंड बैरिएट्रिक सर्जन डॉ. कोना लक्ष्मी ने कहा, “यह प्रशिक्षण कार्यक्रम हर्निया की सर्जरी से जुड़ी गहराई और बारीकी को समझने का एक उत्कृष्ट माध्यम है। जब हम शरीर की एनाटॉमी की बात करते हैं, तो यह केवल ऑर्गन्स की स्थिति जानने भर तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह समझना होता है कि किस हिस्से में, किस प्रकार की सर्जरी सबसे उपयुक्त और सुरक्षित होगी। हर्निया की सर्जरी अब एक माइक्रो-स्पेशलाइज्ड फील्ड बन चुकी है, जिसमें तकनीक की सूक्ष्म जानकारी, संभावित कठिनाइयों की पहचान और उनके सटीक समाधान का अनुभव बेहद आवश्यक है। इस कोर्स में हमने न केवल सर्जरी की विभिन्न तकनीकों को समझाया, बल्कि यह भी सिखाया कि शरीर के किस हिस्से में, किस आकार और प्रकार का हर्निया है, उसके आधार पर सर्जरी कैसे की जाए। यह सब कुछ केवल टेक्स्टबुक से नहीं सीखा जा सकता, इसके लिए वैज्ञानिक शोध, क्लिनिकल अनुभव और लगातार अभ्यास जरूरी है। मेरा मानना है कि जब सर्जन को यह समझ आ जाती है कि ‘कहां’, ‘कैसे’, और ‘किस तकनीक’ से सर्जरी करनी है, तभी वह एक मरीज के शरीर में सटीक, सुरक्षित और सफल हस्तक्षेप कर सकता है। यही इस कोर्स का उद्देश्य भी है — सटीकता के साथ-साथ समझ की गहराई बढ़ाना।”

बेंगलुरु से आए डायरेक्टर, डिपार्टमेंट ऑफ सर्जिकल गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी, मिनिमल एक्सेस, जनरल, बैरिएट्रिक एंड रोबोटिक सर्जरी डॉ. गणेश शेनॉय ने कहा, “हर्निया की जटिलताओं को हम जितनी जल्दी पहचानें, परिणाम उतने ही बेहतर होते हैं। यह कार्यक्रम इस सोच पर आधारित था कि हर सर्जन को न केवल तकनीकी ज्ञान हो, बल्कि उसे यह भी पता हो कि कब और क्यों किसी विशेष प्रक्रिया को अपनाना है। हमने निर्णय-निर्माण की प्रक्रिया, मरीज के एसेसमेंट और हर केस में सर्जरी के अनुकूलतम विकल्पों पर गहन प्रशिक्षण दिया। आज की हर्निया सर्जरी में रेडियोलॉजी, इमेजिंग और तकनीकी निर्णय का बहुत बड़ा योगदान है। हम केवल ऑपरेट नहीं करते, हम पहले समझते हैं कि क्या ऑपरेट करना है और क्यों। सर्जरी के बाद की जटिलताओं और संक्रमण को कैसे कम किया जाए, यह भी एक अहम हिस्सा रहा। यह वर्कशॉप इसलिए खास रही क्योंकि इसमें छात्रों को सिर्फ तकनीक नहीं, बल्कि निर्णय लेने की समझ और मरीज की कंडीशन के अनुसार ट्रीटमेंट मोड को अपनाने की रणनीति भी सिखाई गई। साथ ही यह भी ज़रूरी है कि आम जनता भी यह समझे कि हर्निया को नजरअंदाज करना खतरनाक हो सकता है। यदि समय पर सर्जरी की जाए, तो यह पूरी तरह ठीक किया जा सकता है।”

एम. जी. एम. मेडिकल कॉलेज, इंदौर के कंसल्टिंग सर्जन एवं प्रोफेसर, डिपार्टमेंट ऑफ सर्जरी डॉ. अंकुर महेश्वरी ने कहा, “हर्निया एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर के अंदर का कोई अंग या ऊतक कमजोर मांसपेशियों या ऊतकों की दीवार से बाहर की ओर निकलने लगता है, आमतौर पर यह पेट के निचले हिस्से में होता है। यह अधिक वजन उठाने, पुरानी खांसी, कब्ज, सर्जरी के बाद की कमजोरी या उम्र बढ़ने के कारण हो सकता है। हर्निया के प्रमुख लक्षणों में किसी हिस्से में सूजन या उभार, चलने-फिरने या खांसने पर दर्द, भारीपन का अहसास और कभी-कभी कब्ज शामिल हैं। अगर समय पर इलाज न किया जाए, तो हर्निया जटिल रूप ले सकता है, इसलिए इसका इलाज आवश्यक है। अधिकांश मामलों में इसका स्थायी समाधान सर्जरी होता है, जिसमें उभरे हिस्से को सही स्थान पर लाकर मेश लगाई जाती है। आधुनिक तकनीक से की गई लेप्रोस्कोपिक सर्जरी अब कम समय और दर्द के साथ सफल इलाज का सुरक्षित विकल्प बन चुकी है।”

Show More

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!