सेंधवा। वक्ताओं ने वर्ष 1975 में लागू आपातकाल को भारतीय लोकतंत्र का काला अध्याय बताया

सेंधवा। भारत में लागू हुए आपातकाल को 25 जून 2025 को पूरे 50 वर्ष पूरे हो गए। इस मौके पर नगर पालिका जनसंपर्क कार्यालय में एक गोष्ठी आयोजित की गई, जिसमें वक्ताओं ने वर्ष 1975 में लागू आपातकाल को भारतीय लोकतंत्र का काला अध्याय बताया।
गोष्ठी को संबोधित करते हुए पूर्व जिला अध्यक्ष एस. वीरा स्वामी ने कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लागू किया गया आपातकाल तानाशाही का परिचायक था। उन्होंने आरोप लगाया कि इंदिरा गांधी ने अपनी राजनीतिक स्थिति बचाने के लिए देश की लोकतांत्रिक और संवैधानिक व्यवस्था को कुचल दिया।
स्वामी ने कहा कि आपातकाल लगाकर नागरिकों और पत्रकारों की स्वतंत्रता छीन ली गई, हजारों लोगों को जेलों में ठूंसा गया और सत्ता का दुरुपयोग चरम पर पहुंच गया। उन्होंने कहा, “यह कालखंड अंग्रेजों के शासन से भी अधिक भयावह था। आज भी जब आपातकाल की बात होती है, उस दौर की पीड़ा मन को झकझोर देती है।”
भाजपा प्रवक्ता सुनील अग्रवाल ने कहा कि 25 जून 1975 को जो निर्णय लिया गया, उसने संविधान की आत्मा को चोट पहुंचाई। 21 महीनों तक देश में नागरिक अधिकारों का दमन हुआ, प्रेस की स्वतंत्रता समाप्त कर दी गई, विपक्ष के नेताओं को जेल में डाल दिया गया और लोकतंत्र को पूरी तरह कुचल दिया गया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस का यह निर्णय केवल सत्ता बचाने के लिए था, न कि देश हित में।
नगर मंडल अध्यक्ष राहुल पवार ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी आपातकाल के उस काले दौर से अनजान है, लेकिन उन्हें यह जानना जरूरी है कि देश को सत्ता के मोह में किस प्रकार गिरवी रखा गया। उन्होंने कहा कि भाजपा इस ऐतिहासिक त्रासदी को जन-जन तक पहुंचाएगी ताकि लोकतंत्र की रक्षा के प्रति जनजागरूकता बनी रहे।
गोष्ठी में सुरेश गर्ग और श्याम पाटिल ने भी विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि आपातकाल सिर्फ एक राजनीतिक फैसला नहीं था, बल्कि यह जनता के अधिकारों की निर्मम हत्या थी।