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नाबालिग, महिला और बच्चों का सरेआम बेख़ौफ़ अपहरण कई प्रश्न खड़ा करता है

रंजन श्रीवास्तव; पहला दृश्य एक वीडियो क्लिप में दिन के उजाले में ग्रामीण क्षेत्र में एक हाट का। रास्ते के दोनों तरफ दुकानों के दो लाइनों के बीच सैकड़ों लोग आते जाते और खरीददारी करते दिख रहे हैं। तभी एक नाबालिग लड़की उस भीड़ में भागती हुई दिख रही है। उसके पीछे दो लड़के जिनमें से एक के हाथ में एक धारदार हथियार दिख रहा है उस लड़की का पीछा करते दिख रहे हैं।
लड़की का बचने का प्रयास असफल होता है और वे दोनों उस लड़की को उठाकर एक बाइक पर ले जाते हैं जिसपर एक तीसरा व्यक्ति बैठा हुआ दिखता है। बाइक चलाने वाला और लड़की को उठाकर ले आने वालों में से एक के बीच लड़की को बाइक पर जबरदस्ती लादकर दोनों बदमाश वहां से आराम से चले जाते हैं और हथियार लेकर चलने वाला युवक बाजार के बीच से पैदल कहीं और निकल जाता है।

ये सारी घटना कुछ मिनटों की है।

इस पूरी घटना का सबसे आश्चर्यजनक पक्ष है बाजार में उपस्थित सैकड़ों लोगों में से किसी एक व्यक्ति का भी घटना होते समय उसका प्रतिकार नहीं करने का।
ऐसा नहीं कि यह घटना किसी मेट्रो सिटी में घटित हो रही थी जहाँ अमूमन ऐसी घटनाओं का प्रतिकार नहीं देखा जाता है बल्कि यह घटना मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्र में आदिवासी बाहुल्य अलीराजपुर में घटित हो रही थी जहाँ के लोग समुदाय के तौर पर संगठित माने जा सकते हैं।
आगे ट्रैफिक जाम होने का फायदा नाबालिग को मिला और वह अपहरणकर्ताओं के चंगुल से भागने में कामयाब रही। अगर ट्रैफिक जाम नहीं होता तो उस लड़की के साथ अपराध का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया।

दृश्य दो: अलीराजपुर की नाबालिग के अपहरण की घटना से दो दिन पूर्व बुंदेलखंड के छतरपुर जिले में एक महिला और उसके दो बच्चों का अपहरण बोलेरो जीप तथा कई बाइक पर आये एक दर्जन से ज्यादा हथियारबंद लोगों द्वारा किया गया।
इस घटना में भी महिला और उसके बच्चों को पूरे गांव के लोगों के सामने हथियार की नोंक पर और हवा में फायरिंग करते हुए बदमाशों द्वारा किया गया।
गांव में इतने ज्यादा हथियारबंद लोगों के सामने प्रतिकार करने की हिम्मत महिला के पति के अतिरिक्त किसी की नहीं हुई। महिला के पति ने विरोध किया तो उसे मारपीट कर घायल कर दिया गया जिसे बाद में अस्पताल में गंभीर अवस्था में भर्ती करना पड़ा।
पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए महिला और उसके बच्चों को हरियाणा के भिवंडी से बचाया तथा आधे दर्जन से ज्यादा आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया।
जहाँ अलीराजपुर की घटना में एकतरफा प्रेम प्रसंग का मामला बताया जाता है वहीँ छतरपुर की घटना के बारे में बताया जाता है कि महिला और मुख्य आरोपी जो कि एक हिस्ट्रीशीटर का बेटा है दोनों एक रिलेशनशिप में रह चुके हैं पर पिछले कुछ समय से महिला के पति द्वारा विरोध के बाद मुख्य आरोपी की उद्दंडता बढ़ती जा रही थी और वह कई बार महिला और उसके पति को धमकी दे चूका था।
ये कोई फ़िल्मी सीन नहीं हैं बल्कि सिर्फ दो दिनों के अंतराल में मध्य प्रदेश में दो विभिन्न जगहों पर ग्रामीण परिवेश में घटित ये वास्तविक आपराधिक घटनाएं हैं जैसी हम फिल्मों में देखते हैं।
दोनों घटनास्थल की दूरी एक दूसरे से लगभग 900 किलोमीटर है और दोनों समुदाय भी एक दूसरे से भिन्न हैं जिनके बीच घटनाएं हुईं पर दोनों घटना में समानता यह है कि दोनों में आरोपियों ने अपने पुरुष दम्भ का परिचय देते हुए अपने महिला शिकार को सेक्स ऑब्जेक्ट समझा बिना किसी डर और भय के और दोनों ही जगह समाज और समुदाय चुपचाप इन घटनाओं को मूक दर्शक बनकर देखता रहा जबकि ग्रामीण परिवेश का समाज शहर के मुकाबले ज्यादा संगठित और ऐसी घटनाओं के विरुद्ध प्रतिकार करने में तुलनात्मक रूप से सक्षम माना जाता रहा है।
यह सरकार और पुलिस के लिए भी आत्मचिंतन का समय है की कैसे ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जाए।
चूँकि आज का समय सोशल मीडिया का है और लगभग हर हाथ में स्मार्ट फ़ोन है अतः ऐसी घटनाओं का वीडियो तुरंत बनता है तथा वह सोशल मीडिया पर वायरल हो जाता है। पुलिस अगर त्वरित कार्रवाई करनी चाहे तो ऐसे वीडियो से सहायता मिलती है ।
यह भी सत्य है कि ऐसी घटनाओं से सरकार की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह खड़े होते हैं।
यह संभव नहीं है कि सरकार हर घटना को रोकने में सफल हो पर ऐसे घटनाएं पुलिस की कमजोर बीट सिस्टम, कमजोर होता हुआ मुखबिर नेटवर्क, स्टाफ में भारी कमी, प्रॉसिक्यूशन की कमजोरी और ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने में इच्छा शक्ति की कमी भी दर्शाता है।
वस्तुतः समूचे सरकारी तंत्र के लिए ऐसी घटनाएं बार बार चुनौती बनकर आती हैं अतः अगर ऐसी घटनाओं को रोकना है तो सिर्फ पुलिस नहीं बल्कि सरकारी तंत्र के हर स्तर पर महिलाओं के विरुद्ध अपराधों को कैसे रोका जाए इस पर संवेदनशील होना पड़ेगा तथा प्रभावी कदम उठाना पड़ेगा।

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