रामकथा जीवन का वह थर्मामीटर, जो बताता है कि हमारे अंदर कितने दुर्गुण या सदगुण भरे पड़े हैं – उत्तम स्वामी
नवलखा अग्रवाल संगठन के रामकथा महोत्सव में बोले महामंडलेश्वर ‘ बच्चों को सम्पत्ति के साथ साधना और संस्कार भी दें ’

अग्रवाल संगठन नवलखा क्षेत्र इंदौर
रामकथा जीवन का वह थर्मामीटर, जो बताता है कि हमारे अंदर कितने दुर्गुण या सदगुण भरे पड़े हैं – उत्तम स्वामी
नवलखा अग्रवाल संगठन के रामकथा महोत्सव में बोले महामंडलेश्वर ‘ बच्चों को सम्पत्ति के साथ साधना और संस्कार भी दें ’
इंदौर। पवित्र तीर्थों में स्नान करते हुए और ऋषि-मुनियों तथा संतों के सानिध्य में राम कथा का श्रवण करना मोक्ष और सुख की प्राप्ति का सहज साधन माना गया है। भले ही मंदिर में एक माला कम फेर लें, चारों धाम की यात्रा न करें, किसी तीर्थ के दर्शन भी नहीं करें, किसी पवित्र नदी में स्नान भी नहीं करें, लेकिन यदि माता-पिता की सेवा में कमी कर दी या उनका मन दुखा दिया तो नर्क की यात्रा से बच नहीं पाएंगे। अपने बच्चों को सम्पत्ति के साथ साधना और संस्कार देने का भी प्रयास करें। शब्द से स्वयं को समाधि में स्थापित करने का नाम है रामकथा । सीधे कहें तो रामकथा हमारे जीवन का वह थर्मामीटर है, जो बताता है कि हमारे अंदर कितने दुर्गुण और कितने सदगुण भरे पड़े हैं। हम केवल एक माला फेरकर जीवन भर के लिए भगवान से संसार का सुख और ऐश्वर्य प्राप्त करना चाहते हैं। केवल दस मिनट की पूजा कर शेष 23 घंटे 50 मिनट के कर्मों की खाता-बही को संतुलित बनाना चाहते हैं, यह कैसे संभव है।
प्रख्यात मानस मनीषी महामंडलेश्वर प.पू. उत्तम स्वामी महाराज ने सोमवार को अग्रवाल संगठन नवलखा की मेजबानी में आनंद नगर खेल परिसर मैदान पर चल रहे रामकथा महोत्सव के दौरान दिव्य विचार व्यक्त किए। विधायक गोलू शुक्ला, जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट, भाजपा अध्यक्ष समित मिश्रा, संगठन के अध्यक्ष महेश अग्रवाल, यजमान समूह के दुर्गेश गर्ग, रामप्रकाश गुप्ता, पिंकी गोयल, प्रमुख संयोजक संदीप गोयल आटो, पार्षद मृदुल अग्रवाल, संजय अग्रवाल हाई-वे, विमल बंसल, सुरेश रामपीपल्या,राजू बंसल सहित आसपास की कालोनियों के प्रमुख प्रतिनिधियों ने व्यासपीठ की पूजा एवं आरती में भाग लिया।
संयोजक संदीप गोयल के अनुसार आनंद नगर खेल परिसर में रामकथा महोत्सव का यह प्रवाह 21 अप्रैल तक प्रतिदिन सायं 4 से 7 बजे तक जारी रहेगा। कथा स्थल पर भक्तों की सुविधा के समुचित प्रबंध किए गए हैं।
प.पू. उत्तम स्वामी ने कहा कि कृष्ण आए भगवान बनकर और गए मनुष्य बनकर, जबकि राम आए इंसान बनकर और गए भगवान बनकर। राम का चरित्र वंदनीय और निर्दोष कहा गया है। गणेशजी ने केवल एक बार माता-पिता की परिक्रमा की तो प्रथम पूजनीय देव बन गए। रामजी ने माता-पिता की आज्ञा मानकर राज सत्ता छोड़कर वनवास की आज्ञा मानी तो आज भी वंदनीय होकर पूजे जाते हैं। माता-पिता की सेवा करते रहेंगे तो फिर चाहे मंदिर में माला फेरने जाएं या नहीं, किसी तीर्थ में स्नान करें या नहीं, किसी की पूजा और प्रार्थना करें या नहीं – मोक्ष के मार्ग में कहीं रुकावट नहीं आएगी। कर्म की गति टाली नहीं जा सकती। जीवन में जितने दुख हैं, वे हमारे पापों का प्रमाण है या यूं कहें कि हमारे कर्मों का प्रसाद है। कर्मों का प्रतिफल ही सुख और दुख के रूप में मिलता है। ईश्वरीय सत्ता को स्वीकार करना ही परमात्मा के प्रति समर्पण का प्रमाण है।
संसार में संदेह बहुत सस्ता है। बार-बार संदेह करना विनाश का कारण बनता है, लेकिन विश्वास की सुदृढ़ता होगी तो भगवान के चरित्र का वर्णन हृदय में पैठ कर जाएगा। भगवान के चरित्र का श्रवण करना सुखों के सागर में तैरने जैसा है। हमारे श्रवण में स्वानंद होना चाहिए। कथा सुनते समय आलस्य नहीं, अनुभूति की जरूरत है। विडम्बना यह है कि कलियुग में हमारे हाथों में मोबाईल तो बहुत हैं, पर माला नहीं है। दूसरों की निंदा, चुगली अथवा झूठ बोलने में हमारी कोई बराबरी नहीं। दुनिया में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं होगा, जो दावा करे कि मैंने कभी झूठ नहीं बोला। चिंतन यह होना चाहिए कि परमात्मा के प्रति हमारे प्रेम का प्राकट्य कैसे हो। परमात्मा वस्तु प्रधान नहीं, विश्वास प्रधान है। शिवजी चावल चढ़ाने से प्रसन्न नहीं होंगे, उन्हें तो हमारे कर्मों और आचरण की पवित्रता का समर्पण चाहिए । भगवान से यदि कुछ प्राप्त करना है तो पहली शर्त यही है कि हमारे मन में छल छिद्र और कपट नहीं होना चाहिए। कोबरा सांप के मुंह से मणि लेना और सोए हुए शेर की मूंछ का बाल निकालने से भी ज्यादा कठिन है स्वयं को छल छिद्र और कपट से दूर रखना । जिस दिन हमारे अंदर का छल छिद्र और कपट खत्म हो जाएगा, उस दिन मान लीजिए कि परमात्मा से साक्षात्कार का मार्ग भी खुल जाएगा।