सेंधवा। हम स्वयं को जगाये और धर्म मार्ग पर आगे बढ़े, हम कितना जिए ये महत्त्वपूर्ण नहीं है, हम कैसा जिए ये महत्त्वपूर्ण है- चंपाजी मसा

सेंधवा। कालचक्र तो अविरत गति से चल रहा है। हम उसे रोक तो नहीं सकते, पर उस समय को सफल तो बना सकते हैं, धर्म युक्त आचरण से ही हमारे जीवन को सफल बना सकते हैं। इसलिए हम स्वयं को जगाये और धर्म मार्ग पर आगे बढ़े।
उक्त उद्गार पुज्य कानमुनीजी मसा की आज्ञानुवर्तनी चंपाजी मसा ने जैन स्थानक में कहें। उन्होंने कहा कि हमारा भविष्य अंधकारमय होगा या प्रकाशमय ये हमारे स्वयं के कर्मों पर निर्भर है। पैसा, पति-पत्नी, परिवार, पद, प्रतिष्ठा इन पांचों के पीछे हमने अनंतकाल से अपना जीवन लगा रखा है। पर ध्यान रखना केवल पाप व पुण्य ही हमारे साथ जाने वाला है। हम कितना जिए ये महत्त्वपूर्ण नहीं है, हम कैसा जिए ये महत्त्वपूर्ण है। धर्ममय एवं आचरण युक्त जीवन जीने वाला व्यक्ति ही ज्ञानियों की दृष्टि में श्रेष्ठ है।
मैं जो जानता हूं, उसे नहीं जानता
मसा ने शास्त्र के उदाहरण को समझाते हुए कहा कि एक बार एक विद्वान बालक ने कहा कि मैं जो जानता हूं, उसे नहीं जानता और जो नहीं जानता हूं उसे जानता हूं। अर्थात् मैं यह जानता हूं कि जिसने जन्म लिया उसकी मृत्यु निश्चित है। पर यह नहीं जानता कि मृत्यु कब आयेगी, और मैं यह नहीं जानता कि कब कौन से कर्म उदय में आने से जीवन में सुख दुख, अनुकुलता -प्रतिकुलता आयेंगी। पर यह जरूर जानता हूं कि स्वयं के कर्म से सुख -दुख व अनुकुलता – प्रतिकुलता आती है।
4 बातें जीवन में वापस नहीं लौटती
मसा ने कहा कि 4 बातें जीवन में वापस नहीं लौटती है। धनुष से निकला बाण, वचन, हाथ से निकला हुआ समय और देह से निकले हुए प्राण। इसलिए इनका जीवन में उपयोग बहुत सावधानी और समझदारी से करे। समय बीतने के पहले अपना जीवन सुधार लेना चाहिए और यह तभी संभव है, जब देश, गुरु व धर्म के प्रति हमारी भक्ति दृढ़ हो ओर मन में अहोभाव हो।