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आत्मनिर्भर भारत के लिए सोया वैल्यू चेन को मिला नया दृष्टिकोण

सोया को फसल से आगे बढ़ाकर विकास का माध्यम मानने की जरूरत

आत्मनिर्भर भारत के लिए सोया वैल्यू चेन को मिला नया दृष्टिकोण

· पोषण, प्रोसेसिंग और प्रगति पर केंद्रित रही चर्चाएं

· सोया को फसल से आगे बढ़ाकर विकास का माध्यम मानने की जरूरत

· प्रोसेसिंग यूनिट्स और स्टार्टअप्स की साझेदारी से आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम

· कृषि से लेकर उपभोक्ता तक मजबूत वैल्यू चेन की आवश्यकता

· हाई-प्रोटीन, प्लांट-बेस्ड इनोवेशन ने खोले स्वास्थ्य और व्यापार के नए द्वार

 

इंदौर, । भारत की खाद्य सुरक्षा, पोषण जरूरतों और सतत कृषि प्रणाली को ध्यान में रखते हुए, इंदौर में आयोजित ‘सोया इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस 2025’ के दूसरे दिन विचार-विमर्श का दायरा और भी विस्तृत रहा। दो दिवसीय इस अंतरराष्ट्रीय आयोजन ने न केवल सोया आधारित उत्पादों की उपयोगिता को रेखांकित किया, बल्कि इससे जुड़े व्यापक सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय पहलुओं को भी विमर्श का हिस्सा बनाया। कॉन्फ्रेंस के अंतिम दिन का फोकस मुख्यतः सोयाबीन के चुनाव, उत्पादन, प्रोसेसिंग और व्यापार से संबंधित जागरूकता फैलाने और संपूर्ण वैल्यू चेन को विकसित करने की दिशा में रहा।

सीएसआईआर सीएफटीआरआई की डायरेक्टर डॉ.श्रीदेवी अन्नपूर्णा सिंह ने कहा “आज भारत कई सोया उत्पादों और प्रोसेस्ड सामग्री के लिए अन्य देशों पर निर्भर है। यदि हम अपने देश में ही पर्याप्त मात्रा में प्रोसेसिंग सुविधाएं विकसित करें, किसानों को बाजार से सीधे जोड़ें और स्टार्टअप्स को प्रोत्साहित करें, तो भारत एक आत्मनिर्भर सोया अर्थव्यवस्था की दिशा में मजबूती से आगे बढ़ सकता है। अब समय आ गया है कि हम सोया को सिर्फ एक फसल नहीं, बल्कि समग्र विकास का माध्यम समझें। इसके माध्यम से न केवल पोषण, बल्कि रोज़गार, महिला सशक्तिकरण और निर्यात अवसर भी पैदा हो सकते हैं।”

आईसीएआर-नेशनल सोयाबीन रिसर्च इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर डॉ. कुंवर हरेन्द्र सिंह के अनुसार, “किसानों के लिए तकनीकी मार्गदर्शन और गुणवत्ता युक्त बीजों का चयन उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि उपभोक्ताओं के लिए सुरक्षित और पोषणयुक्त उत्पादों की उपलब्धता। किसानों में अब जागरूकता बढ़ रही है और वे बेहतर खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं। साथ ही, उपभोक्ता भी अब यह जानना चाह रहे हैं कि वे जो खा रहे हैं वह उनके स्वास्थ्य के लिए कितना लाभकारी है और किस स्रोत से आया है। हालांकि, यह केवल कृषकों की जिम्मेदारी नहीं मानी जा सकती। प्रोसेसिंग यूनिट्स, फूड इंडस्ट्री, वैज्ञानिक समुदाय और नीति निर्माताओं की साझा भागीदारी ही इस पूरे इकोसिस्टम को सफल बना सकती है। सोया से जुड़ी एक समर्पित ‘वैल्यू चेन’ का निर्माण अत्यंत आवश्यक है जिसमें उत्पादन से लेकर उपभोक्ता तक की प्रत्येक कड़ी मजबूत और पारदर्शी हो।”
एसएफपीडब्लूए के चेयरमैन डॉ. सुरेश इतापू ने कहा, “भारत को सोया क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व हासिल करने के लिए अपनी पूरी वैल्यू चेन, बीज से लेकर बाजार तक को सुदृढ़ बनाना होगा। इसमें प्रोसेसर, डिस्ट्रीब्यूटर और इनोवेटर्स की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस कॉन्फ्रेंस में प्रस्तुत हाई-प्रोटीन शुगर-फ्री ड्रिंक्स, सोया-स्नैक्स, प्लांट-बेस्ड मीट और इंस्टेंट फूड सॉल्यूशंस जैसे इनोवेशन इस बात का प्रमाण हैं कि सोया आधारित उत्पाद न केवल स्वास्थ्य का समाधान प्रस्तुत करते हैं, बल्कि वे व्यापारिक संभावनाओं के नए द्वार भी खोल रहे हैं।”

समापन अवसर पर एसएफपीडब्लूए के कन्वीनर  राज कपूर ने सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद देते हुए कहा, “कॉन्फ्रेंस के अंतिम सत्र में ‘सोया से सम्बन्धी अपने विज़न प्रस्तुत कर दिया गया था, जिसमें आगामी वर्षों के लिए सोया के माध्यम से कृषि, उद्योग और पोषण के क्षेत्र में बदलाव लाने की रूपरेखा तैयार की गई है। यह कॉन्फ्रेंस एक नई सोच और सहयोग की शुरुआत है। हम सब मिलकर इस मिशन को भारत के कोने-कोने तक पहुंचाएंगे, जहाँ सोया केवल प्रोटीन नहीं, बल्कि समृद्धि, स्वास्थ्य और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बनेगा।”

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