मातृशक्ति महिला मंडल ने निकाला गणगौर का बाना

सेंधवा। मातृशक्ति महिला मंडल ने शुक्रवार शाम गणगौर का बाना निकाला।इसमें सेंधवा की सभी मातृ शक्तियों सम्मिलित हुई। मंडल की अंतिम वाला शर्मा ने बताया कि शाम 5:00 बजे वेलोसिटी कॉलोनी से बाना प्रारंभ होकर एबीरोड , इंदिरा कॉलोनी, से शगुन गार्डन पहुंचा। गाजे बाजे के साथ निकले बाने में ईशर के रूप में भगवान शिव और गणगौर के रूप में माता पार्वती की दिव्य, अलौकिक जीवंत झांकी चल रही थी। बाने में रास्ते भर मातृशक्ति नृत्य करते हुए आगे बढ़ रही थी। शगुन गार्डन में पहुंचकर सभी मातृशक्तियों ने गणगौर माता के झालरिए गाये।हिंदू धर्म में गणगौर व्रत को विशेष महत्व दिया जाता है। यह व्रत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। और इसे भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित किया गया है। इस तृतीया तीज के नाम से भी जाना जाता है। गणगौर में गण का अर्थ होता है भगवान शिव ।और गौर का अर्थ होता है देवी पार्वती । जिन्हें गोरी भी कहा जाता है। इस प्रकार गणगौर का अर्थ है शिव और पार्वती का दिव्य मिलन। जो प्रेम, समर्पण ,अखंड सौभाग्य का प्रतीक है। देवी गोरी ही संसारको सुहाग और सौभाग्य प्रदान करती है ।इसलिए सुहागन महिलाएं शिव और देवी गोरी की पूजा करती है । ऐसी मान्यता है की गोरी तृतीया यानी चैत्र शुक्ल तृतीया तिथि को देवी पार्वती ने संपूर्ण महिलाओं को सौभाग्य का आशीर्वाद दिया था ।इसी कारण से महिलाएं सौभाग्य प्राप्ति की कामना से भगवान शिव के साथ देवी गोरी की पूजा करती है।गणगौर की शुरुआत माता पार्वती ने की थी ।माना जाता है कि उन्होंने भगवान शिव को अपना पति मानने के लिए कठोर तपस्या की थी। इसी तपस्या के फल स्वरुप भगवान शिव ने माता पार्वती को अपनी पत्नी माना था ।इसी घटना के बाद से गणगौर व्रत की परंपरा शुरू हुई। विवाहित महिलाएं अगर भगवान शिव और माता पार्वती के प्रतीक ईश्वर और गणगौर की पूजा अर्चना करती है तो उनके पति की उम्र लंबी होती है। वहीं अगर अविवाहित महिलाएं यह त्यौहार मनाती है तो उन्हें भगवान शिव जैसा पति प्राप्त होता है। बाने में कृष्णा शर्मा, लक्ष्मी शर्मा, गीता कानूनगो, वैशाली मंडलोई ,कोमल कानूनगो ,अर्चना गुले ,रेनू भार्गव, रानी सोनी, पूजा सोनी, पूजा ठक्कर, मेघा सोनी एवं सेंधवा की सभी मातृशक्ति उपस्थित थी।