चीता प्रोजेक्टः खाने के इंतजाम के प्रयास चीतों के लिए नीलगाय और काले हिरणों की व्यवस्था करने में जुटे।
अफ्रीका के विशेषज्ञों की टीम इस पूरे ऑपरेशन को अंजाम देगी। देश में ऐसा पहली बार होगा।

आशीष यादव धार
गांधी सागर में चीता प्रोजेक्ट पर काम तेजी से चल रहा है। चीतों का घर तैयार होने के बाद खाने के इंतजाम किए जा रहे हैं। पहले कान्हा नेशनल पार्क से चीतल शिफ्ट किए जा रहे थे। अब प्रदेश के अन्य क्षेत्रों से नीलगाय और काले हिरणों को हेलीकॉप्टर की मदद से हांका लगाकर कंटेनर में भरा जाएगा और गांधीसागर पहुंचाया जाएगा। अफ्रीका के विशेषज्ञों की टीम इस पूरे ऑपरेशन को अंजाम देगी। देश में ऐसा पहली बार होगा।
चीतों को खाने की कमी न हो इसलिए अक्टूबर 2024 में कान्हा नेशनल पार्क से 18 नर और 10 मादा चीतल गांधी सागर अभ्यारण्य शिफ्ट किए गए थे। अब वन विभाग जो तरीका अपनाने जा रहा है, उसमें अफ्रीकी एक्सपर्ट टीम हेलीकॉप्टर की मदद से कम समय में इससे कई गुना अधिक वन्य जीवों का ट्रांसलोकेशन कर देगी। प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) सुभरंजन सेन बताते हैं कि इस प्रक्रिया में एक्सपर्ट की टीम बिना किसी वन्य जीव को नुकसान पहुंचाए, मात्र 20 दिन में 400 ब्लैक बक यानी काले हिरण और 100 नीलगायों को ट्रांसलोकेट कर देगी।
हेलीकॉप्टर की मदद ली जा रही:
वन्य प्राणियों की शिफ्टिंग कितनी बड़ी चुनौती है, यह इससे भी पता चलता है कि 90 के दशक में अमेरिका की टीम तमाम कोशिशों के बावजूद इसमें फेल हो चुकी है। वन विभाग के अधिकारी बताते हैं कि 90 के दशक के मध्य में अमेरिका की टीम आई। वे अपने साथ उस समय के सबसे एडवांस इक्यूपमेंट लिए हुए थे। जाल फेंकने की मशीनों सहित तमाम उपकरणों के बावजूद टीम एक भी काले हिरण को नहीं पकड़ पाई। पुराने अनुभवों को देखते हुए सफल और सुरक्षित शिफ्टिंग के लिए इस बार हेलीकॉप्टर की मदद ली जा रही है।
ऑपरेशन शुरू करने 15 दिन की टाइम लिमिट:
कूनो और गांधीसागर में हेलीकॉप्टर से वन्य जीवों के स्थानांतरण के लिए प्रदेश की एविएशन मिनिस्ट्री ने ईओआई (एक्सप्रेशन ऑफ इंट्रेस्ट) जारी कर राबिंसन आर 44/आर 66 हेलीकॉप्टर की सर्विस देने के लिए प्रस्ताव मांगे हैं। ईओआई के अनुसार, एविएशन कंपनी को वर्क ऑर्डर मिलने के 15 दिन के अंदर ऑपरेशन शुरू करना होगा। कंपनी को सभी जरूरी एनओसी के साथ हेलीकॉप्टर की व्यवस्था करनी होगी। साथ ही उड़ान के लिए दो पायलट भी रखने होंगे, जो ट्रांसलोकेशन का काम कर सकें। हेलीकॉप्टर के मेंटेनेंस के लिए भी व्यवस्था करनी होगी।
बोमा और एरियल तकनीक से होगा ट्रांसलोकेशन:
हिरणों और नीलगायों के ट्रांसलोकेशन के लिए अफ्रीका की टीम हेलीकॉप्टर की मदद से बोमा तकनीक का उपयोग करेगी। यह हिरणों, चीतल आदि वन्य प्राणियों को पकड़ने के लिए अफ्रीका की अजमाई हुई तकनीक है, जिसे भारत में भी एनटीसीए (राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण) मान्यता दे चुका है। इसके तहत वन्य प्राणियों के तीन ओर से घास और हरी नेट की दीवार खड़ी की जाती है। प्राणियों को हरी दीवार से घेरते हुए इसी तरह की नेट से ढंके हुए वाहन में पहुंचा दिया जाता है। इस तरह किसी इंसान के दिखे बिना वन्य प्राणी की शिफ्टिंग हो जाती है। अफ्रीका की टीम इस प्रक्रिया के साथ एरियल हेरडिंग तकनीक का इस्तेमाल भी करेगी। इसके तहत हेलीकॉप्टर से वन्य प्राणियों की लोकेशन देखेगी। इसके बाद हेलीकॉप्टर की मदद से हांका भी लगाएगी, पर्याप्त दूरी रखते हुए इस मिशन को अंजाम दिया जाएगा