इंदौरधर्म-ज्योतिष

शिव पुराण की कथा का श्रवण करना प्रयागराज के कुंभ मेले में स्नान करने जैसा ही पुण्यशाली है।

शिव से ही मुक्ति, शिव से ही गति और शिव से ही भक्ति, माया के मोहपाश से शिव ही बचाएंगे

छोटा बांगड़दा पटेल परिसर में चल रही शिव पुराण कथा में पहुंचे विद्याधाम के महामंडलेश्वर स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती, हुई गणेश जन्म की कथा

इंदौर,। शिव पुराण की कथा का श्रवण करना प्रयागराज के कुंभ मेले में स्नान करने जैसा ही पुण्यशाली है। शिव ऐसे देव हैं, जो हमें मुक्ति, गति और भक्ति भी प्रदान करते है। शिव पुराण की कथा मन पर पड़े माया के आवरण को हटाती है। माया का मकड़जाल मनुष्य को जीवनभर भटकाता रहता है। माया के मोहपाश से मुक्ति के लिए भगवान शिव की आराधना सबसे श्रेष्ठ मानी गई है क्योंकि शिव पुराण भी स्वयं भगवान द्वारा रचे गए शब्दों की ही ऐसी जन कल्याणकरी कृति है, जो दुर्लभ मनुष्य जीवन को सही दिशा में ले जाने का मार्ग प्रशस्त करती है।
श्री श्रीविद्याधाम के महामंडलेश्वर स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती ने छोटा बांगड़दा, लक्ष्मीबाई नगर मंडी के पास स्थित पटेल परिसर में आचार्य पं. राहुल कृष्ण शास्त्री के श्रीमुख से चल रहे शिव पुराण कथा महोत्सव में आशीर्वचन देते हुए व्यक्त किए। महामंडलेश्वरजी के कथा स्थल आगमन पर ग्रामीणों ने उनका गरिमापूर्ण स्वागत किया। कथा व्यास आचार्य पंडित शास्त्री ने व्यास पीठ से महामंडलेश्वरजी का सम्मान किया।
         आचार्य पं. राहुल कृष्ण शास्त्री ने कहा कि हमें अपने आत्मस्वरूप का बोध होना चाहिए। इस बोध को भूल गए तो भटकना तय है। यह भटकाव परमात्मा की भक्ति और सत्संग से ही दूर हो सकता है। भगवान गणेश जन्म के पूर्व से ही विलक्षण रहे। पिता और माता के विवाह में पुत्र के पूजन का अनूठा उदाहरण मिलता है। माता पिता की परिक्रमा को तीर्थ यात्रा का दर्जा देने वाले भगवान गणेश ही हैं। उनके द्वारा स्थापित परंपरा भारतीय समाज में आज भी प्रासंगिक और शास्वत मानी जाती है। देश में जितने मंदिर राम और कृष्ण के हैं, उससे भी अधिक गणेशजी के हैं। हमारी भक्ति में दृढ़ता होना चाहिए। जिस दिन हम इस दृढ़ता के साथ भक्ति में लीन हो जाएंगे, उस दिन हमें भगवान के आनंद सिंधु होने की बात भी अनुभूत हो जाएगी।
जीवन में संयोग के साथ वियोग और सुख के साथ दुख जुड़ा हुआ है। भगवान आनंद के सिंधु हैं और हम संसार के एक बिन्दु बराबर सुख को पाते ही अपने आप को धन्य समझने लगते हैं। भगवान गणेश प्रथम वंदनीय है। विघ्नहर्ता के रूप में देवता भी उन्हें मान्यता देते हैं। बिना गणेशजी की पूजा आराधना के किसी भी शुभ संकल्प की पूर्ति नहीं हो सकती। गणेशजी सबसे सहज और सरल देवता माने जाते हैं। भगवान शिव और पार्वती के पुत्र तो वे हैं ही, भारतीय समाज के जन-जन में भी स्थापित हैं। विदेशों में भी गणेशजी के मंदिर बने हुए हैं। ज्ञान और बुद्धि के साथ विवेक देने वाले गणेश ही हैं। उनकी आराधना कभी निष्फल नहीं होती।

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