इच्छाओं की पूर्ति होने या नहीं होने से होता है सुख और दुख का सृजन-पं. व्यास
मानस, गीता और भागवत जैसे धर्मग्रंथ यदि इस पीढ़ी के अंतर्मन में उतर जाएं तो देश का गौरव फिर लौट सकता है

गणेश नगर स्थित रघुवंशी धर्मशाला में चल रहे रामकथा महोत्सव में में उत्साह के साथ मना राम- सीता विवाहोत्सव
इंदौर । जीवन में एक विचार भी हमारी दृष्टि बदल देता है, जरूरत है श्रद्धा और विश्वास की। ज्ञान की गहराई असीमित है। ज्ञान को मापने का कोई यंत्र नहीं है। हम भौतिक प्रगति पर तो सारा धन खर्च कर रहे हैं, लेकिन आध्यात्मिक प्रगति को पीछे धकेल रहे हैं। नैतिक मूल्यों के पतन का यही मुख्य कारण है। भजन से इच्छाओं की पूर्ति नहीं, उनका नाश होता है। इच्छाएं ही हमें अध्यात्म से विमुख कर पतन की ओर ले जाती हैं। कामनाओं की पूर्ति होने या नहीं होने से ही सुख और दुःख का सृजन होता है। राम का चरित्र अदभुत, अनुपम और अनुकरणीय है।
आचार्य पं. वीरेन्द्र व्यास के, जो उन्होने बर्फानी धाम के पीछे स्थित गणेश नगर में माता केशरबाई रघुवंशी धर्मशाला परिसर के शिव-हनुमान मंदिर की साक्षी में चल रहे दिव्य श्रीराम कथा महोत्सव में व्यक्त किए। क्षत्रिय महासभा की और से पंडित व्यास एवं तुलसी रघुवंशी का सम्मान भी किया गया।
भगवान राम को मर्यादा पुरूषोत्तम कहा गया है। उनके समूचे जीवन चरित्र में कहीं भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं हुआ है। वे एक आदर्श पुत्र, पति, भाई और शासक के साथ ही योद्धा भी रहे। चरित्र मनुष्य की सबसे बड़ी पूंजी होता है। आज हमारी युवा पीढ़ी चरित्र के मामले मंे भटक रही है। नैतिक मूल्यों और संस्कृति से विमुखता के कारण समाज में अनेक विकृतियां आ रही है। कलियुग में यह सब हो रहा है लेकिन हमें विश्वास रखना चाहिए कि मानस, गीता और भागवत जैसे धर्मग्रंथ यदि इस पीढ़ी के अंतर्मन में उतर जाएं तो देश का गौरव फिर लौट सकता है।