भारतीय सनातन धर्म और संस्कृति में कुछ भी कपोल-कल्पित नहीं है
हमारी पूजा पद्धति भी शास्त्र सम्मत होना चाहिए।

छोटा बांगड़दा पटेल परिसर में चल रही कथा में आचार्य पं. राहुल कृष्ण शास्त्री ने बताई शिव महापुराण की खूबियां
इंदौर । भारतीय सनातन धर्म और संस्कृति में कुछ भी कपोल-कल्पित नहीं है। हमारे सभी धर्मशास्त्र प्रामाणिक और सत्य तथा तथ्य की नींव पर टिके हैं। सनातनत धर्म में ज्ञान भी हैं, विज्ञान भी है, भक्ति भी है और भाव भी है। हमारी सभी परंपराएं जीव मात्र के प्रति कल्याण के भाव से स्थापित की हुई है। हमारी पूजा पद्धति भी शास्त्र सम्मत होना चाहिए। घर के पूजा घर में किन देवताओं की कितनी प्रतिमाएं रखना या नहीं रखना, पूजा करते समय अक्षत और बिल्व पत्र या भभूत को कैसे समर्पित करना चाहिए, शिवजी के पहले नंदी की पूजा क्यों करना चाहिए, नंदी और गाय की पूजा में क्या अंतर है- इस तरह के अनेक सवालों का समाधान शिव पुराण कथा में मिलता हैं। यह याद रखें कि और कोई साथ दे या न दें, ईश्वर और धर्म मृत्यु के बाद भी हमारा साथ देते हैं।
श्री श्रीविद्याधाम के आचार्य पं. राहुल कृष्ण शास्त्री ने छोटा बांगड़दा, लक्ष्मीबाई नगर मंडी के पास स्थित पटेल परिसर में आयोजित महाशिवपुराण कथा में व्यक्त किए। प्रारंभ में वैदिक मंगलाचरण के बीच कुंवर चंद्रशेखर सिंह ‘राजा’ ने सपत्नीक व्यास पीठ की पूजा- अर्चना की। इस
कथा के दौरान मथुरा-वृंदावन से आए भजन गायकों ने अपने मनोहारी भजनों से कथा पांडाल में ऐसा समां बांधा कि हर कोई थिरक उठा। संयोजक पंकज सिंह चौहान ने बताया कि आचार्य पं. शास्त्री यहां प्रतिदिन दोपहर 1 से4 बजे तक शिव महापुराण कथा की संगीतमय प्रस्तुति दे रही है।
आचार्य पं. राहुल कृष्ण शास्त्री ने कहा कि शिवजी की सवारी नंदी के चार पैर सत्य, दया, तप और शुचिता के प्रतीक हैं। नंदी शिवजी के सामने जिस तरह से प्रतीक्षा, ब्रह्मचर्य, आसन और शांति की मुद्रा में विराजे हुए हैं, तो यह भी शास्त्र सम्मत माना गया है। शंकरजी धर्म के संस्थापक हैं तो नंदी उस धर्म के संवाहक। कुछ शास्त्रों में तो नंदी की परिक्रमा से धर्म और गाय की परिक्रमा से पृथ्वी की परिक्रमा के समान पुण्य मिलने की बात कही गई है। इसी तरह बिल्व पत्र, भभूत और अन्य तरह की पूजन सामग्री का उपयोग कब, कैसे और कहां करना या नहीं करना चाहिए, इसका भी उल्लेख हमारे धर्मग्रंथों में मिलता है। बिल्व पत्र के वृक्ष के नीचे सर्प नहीं आता, यह भी मान्यता है। बिल्व पत्र पर चंदन से राम का नाम लिखकर शिवजी को अर्पित किया जाए तो भगवान जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। शिवजी को बिल्व पत्र उल्टा समर्पित करना चाहिए। भभूत के बारे में भी कहा गया है कि शरीर के 32 स्थानों पर भभूत का प्रयोग करना चाहिए। शास्त्रों की माने तो पाप का श्रीगणेश बालों से होता है। यही कारण है कि हमारे जितने भी संस्कारी कर्म होते हैं, तब केश मुंडन की परंपरा का निर्वाह किया जाता है। बालों में भस्म लगाने से उनका मुंह बंद होकर पाप के प्रवेश का मार्ग बंद हो जाता है। इस तरह हमारे धर्मग्रंथों, विशेषकर शिवपुराण में ऐसी अनेक परंपराओं, मान्यताओं और पद्धतियों का उल्लेख मिलता है।