रामचरित मानस में जीवन जीने की कलाके अनेक मंत्र मौजूद –दीदी मां मंदाकिनी

गीता भवन में चल रही श्रीराम कथा में जीवन से जुड़े प्रसंगों पर महत्वपूर्ण मार्गदर्शन
इंदौर । संत की वाणी पर विश्वास रखेंगे तो बेड़ा पार होकर रहेगा ही। कलियुग में संत मिलन को सर्वोच्च सुख माना गया है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में जीवन जीने की कला के ऐसे अनेक मंत्र दिए हैं, जिन्हें हम अपने जीवन में आत्मसात कर जीवन को सार्थक बना सकते हैं। सनातन और हिन्दू धर्म के लोगों को प्रतिदिन मानस के एक दोहे या चौपाई का अध्ययन जरूर करना चाहिए। अपने जीवन को परिवर्तन की दिशा में मोड़ने के लिए सत्संग और भक्ति जरूरी है।
ये प्रेरक विचार हैं प्रख्यात मानस मर्मज्ञ श्रीराम किंकर की कृपापात्र शिष्य ‘ मंदाकिनी दीदी मां के, जो उन्होंने शुक्रवार शाम गीता भवन सत्संग सभागृह में गीता भवन ट्रस्ट, एकल हरि सत्संग समिति एवं राधे सत्संग महिला मंडल के सहयोग से आयोजित पांच दिवसीय श्रीराम कथा के दिव्य अनुष्ठान में व्यक्त किए प्रारंभ में गीता भवन ट्रस्ट की ओर से महेशचंद्र शास्त्री, रामविलास राठी, एकल हरि सत्संग समिति की ओर से श्रीमती कमल राठी, वीणा चौखानी, राजकुमारी मंत्री, उमा अग्रवाल, रीता राठी, कृष्णा माहेश्वरी तथा राधे सत्संग महिला मंडल की ओर से संस्थापक कांता अग्रवाल, सुशीला मोदी, साधना गोयल, सुमन अधिकारी, उषा बंसल, उमा गर्ग आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। दीदी मां के प्रवचन 15 सितम्बर तक प्रतिदिन अपरान्ह साढ़े 4 से 7 बजे तक होंगे।
दीदी मां ने जीवन से जुड़े विषयों पर मार्गदर्शन करते हुए कहा कि रामचरित मानस ऐसा क्रांतिकारी ग्रंथ है, जिसने तत्कालीन समय में सामाजिक चेतना जैसा बड़ा काम किया है। युग तुलसी श्रीराम किंकर ने कलियुग में इस ग्रंथ की व्याख्या को घर-घर तक पहुंचाया है। आज भी सनातनधर्मियों को प्रतिदिन इस ग्रंथ की एक चौपाई या दोहे का नियमित रूप से मंथन करना चाहिए। अपने जीवन को धर्म और भक्ति की ओर मोड़ने की दिशा में रामचरित मानस की चौपाईयां और दोहे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।