इंदौरधर्म-ज्योतिष

सेवा सुरभि ने हरियाली ,हवा और पानी की सलामती के लिए किया विचार मंथन

अब  इंदौर को  सब मिलकर बनाएं हरियाली का हब

इंदौर ।   किसी समय इंदौर के एक ही क्षेत्र में 9 लाख पेड़ थे, इसलिए  नाम पड़ गया नवलखा।   पलासिया, लालबाग, पीपली बाजार,
इमली  बाजार, बड़वाली चौकी  आदि जगहों के नाम भी  बाग बगीचो के कारण ही पड़े, लेकिन अब विकास के नाम पर यहाँ  बड़ी संख्या में पेड़ काटे जा रहे है। 70 के दशक में शहर में हरियाली 30 प्रतिशत थी, जो अब घटकर मात्र 9 प्रतिशत रह गई  है। इस वजह से शहर का तापमान  भी बढ़ा , इसकी एक वजह है बड़ी संख्या में पेट्रोल जनित वाहनो की संख्या में वृद्धि होना। आज 35 लाख की आबादी  वाले इंदौर मे 27 लाख वाहन है। इंदौर को हमने साफ -सफाई मे तो नंबर वन बना दिया,   शिक्षा में भी हब बना दिया और अब आवश्यकता है कि यह शहर हरियाली में भी हब बने।  इसके लिए पुराने पेड़ों को कटने से बचाना होगा और  बड़ी संख्या मे नये पौधे भी लगाने होंगे ।
         ये विचार है विभिन्न पर्यावरणविदो और  प्रबुद्धजनों के  जो उन्होंने  विश्व पर्यावरण दिवस की पूर्व बेला मे संस्था ‘सेवा सुरभि ‘ द्वारा हरियाली, हवा  और पानी की सलामती  के लिए आयोजित कार्यक्रम मे व्यक्त किये। यह कार्यक्रम  इंदौर प्रेस क्लब  सभागार  मे हुआ।
            प्रारंभ में स्वागत भाषण देते हुए कुमार सिद्धार्थ ने कहा कि इंदौर कही बेंगलूरु और चेन्नई नही बन जाए इस पर ध्यान देने की जरूरत है।  इस  मौके पर सेवा  सुरभि की ओर से सामाजिक कार्यकर्ता अनिल त्रिवेदी और कमलेश सेन ने देवी अहिल्या बाई होलकर  का चित्र प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविंद तिवारी को भेंट किया।  सामाजिक  कार्यकर्ता  डॉ. रजनी भंडारी और मेघा बर्वे ने पर्यावरण पोस्टर का विमोचन किया। अतुल सेठ,  हरेराम वाजपेई,  मोहन अग्रवाल ने  पर्यावरण मित्र मुकेश वर्मा का सम्मान किया, जिन्होंने  पिछले 10 वषों में 100 से अधिक पेड़ो को कटने से बचाया। अतिथि स्वागत ओमप्रकाश नरेड़ा, नरेंद्र सिंघल, गोविंद मंगल, रामेश्वर गुप्ता,  डॉ.  भोलेश्वर् दुबे, दीपक अधिकारी ,मुरली धामानी ,पवन अग्रवाल आदि ने किया। अतिथियों को  प्रतीक चिन्ह  समाजसेवी मुकुंद कुलकर्णी, अनिल गोयल, कमल कलवानी और पंकज कासलीवाल ने प्रदान किये।प्रारंभ मे सेवा सुरभि के  सयोजक ओम प्रकाश नरेडा, अजीत सिंह नारंग, डॉ ओ पी जोशी , अनिल त्रिवेदी आदि ने दीप  प्रज्वलन  कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। संचालन किया संस्कृतिकर्मी  संजय पटेल ने। राष्ट्रगीत के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। इस मौके पर  बड़ी संख्या में नागरिक उपस्थित थे।
   पहले वक्ता के रूप में सामाजिक  कार्यकर्ता अजीतसिंह नारंग ने कहा कि किसी भी शहर का विकास हवा, पानी और हरियाली के आधार पर होना चाहिए।  दुर्भाग्य से हमारे  नीति निर्माताओं ने ऐसा नही किया । इस वजह से वर्ष
2023 बीते 122 वर्षो में सर्वाधिक गर्म रहा। वर्ष 1851 से 1900 के मध्य तापमान मे मात्र दशमलव चार फीसदी की बढ़ोतरी हुई जबकि  पिछले  20 वर्षो में इससे डेढ़ गुणा अधिक वृद्धि हुई। अब हिट वेव के दिन भी बढ़ गए और ठंड के दिन कम होते जा रहे हैं । देश में छोटी बड़ी मिलाकर 113 नदियाँ है और एक हजार सहायक नदियाँ है। देश मे एवरेज  46 इंच वर्षा होती है इसके बावजूद देश के 630  जिलों में से  आधे जिलों में जल संकट बना हुआ है।
अकेला इंदौर शहर हर वर्ष 70 से 90 करोड़ रुपये का  नर्मदा का पानी बर्बाद कर रहा है। वर्ष 2017 मे कुछ शहर ही प्रदूषित थे,आज  टॉप 50 शहरों में देश के 42 शहर प्रदूषित है।  हमें मास्टर प्लान में सबसे अधिक पर्यावरण का ध्यान रखने की जरूरत है लेकिन हमने पेड़ो को काटकर सीमेंट कांक्रीट के जंगल खड़े कर दिये हैं ,जो गलत है।
पर्यावरणविद् डॉ. ओ .पी.  जोशी ने कहा कि हमने हरियाली की  समाप्ति के साथ साथ  इस इंदौर शहर की पहचान ही समाप्त कर दी।बाग -बगीचो का शहर था  इंदौर। कोठारी मार्केट और  नंदलालपुरा में  भी बगीचे थे, जो अब नहीं है। होल्करो के राज में पर्यावरण के प्रति इतनी अधिक संवेदनशीलता थी कि यदि कोई व्यक्ति एक पेड़ की डाली भी काट लेता तो  वह दंडनीय अपराध था। आज तो  पूरे के पूरे पेड़ काटे जा रहे और कोई बोलने वाला नही है। अकेले एम ओ जी लाइन में 500 पेड़ काट दिये गए ।   कपड़ा मिलो की जमीनों पर कई पेड़  डेड  घोषित हो  गए।  अन्नपूर्णा  रोड पर 150 पेड़ काट दिये।  आज भी बड़ी संख्या में  पेड़ो की अवेध कटाई जारी है। विकास की आड़ में पेड़ों को काटा जा रहा है। इस वजह से  जहाँ हरियाली मे भी कमी आई वही तापमान में वृद्धि हुई है। आवश्यकता है  वर्षो पुराने पेड़ो को कटने से बचाऐं। निगम  प्रशासन उन्हे  हरित धरोहर घोषित करे। ऐसी योजनाएं बनाये जिसमे हरियाली बनी रहे। जब 2022 में  हेद्राबाद शहर  ग्रीन हब बन सकता है तो इंदौर क्यो नही।  आज ग्रीन फारेस्ट,  अहिल्या वन जैसी योजना को  साकार करने की जरूरत है।
          पर्यावरणविद डॉ. दिलीप  वाघेला ने कहा कि हवा ही सबसे अच्छी  दवा है। आवश्यकता है कि हमारी  आबोहवा शुद्ध रहे। 1983 में भोपाल गेस कांड के बाद  वायु  शुद्धिकरण पर  सबका ध्यान गया।   वर्ष 1985  मे वायु  प्रदूषण निवारण नियम बने। कपड़ा मिले बंद होने का एक कारण यह भी रहा कि  वहा वायु प्रदूषण बहुत होता था। वर्ष 1986 में ऐसे उपकरण खरीदे गए जिससे वायु प्रदूषण की मानिटरिंग की जा सके।वर्ष 1987 में प्रदेश मे सबसे पहले इंदौर मे परिवेशीय वायु गुणवत्ता मापन केंद्रो की स्थापना हुई, तब 4 केंद्रो पर सप्ताह मे दो दो दिन 24 घंटे मानिटरिंग कार्य किया जाता था। अब इंदौर मे कुल 10 परिवेशीय वायु मापन केंद्र है।  वर्ष 2013 के बाद से प्रशासन ने वायु प्रदूषण के चलते बड़े उद्योगों को चलाने की अनुमति देना बंद किया एवं कचरे  को जलाना प्रतिबंध किया क्योकि इससे हवा प्रदूषित होती है। धूल के महीन कणों से शरीर मे रोग बड़ने लगे।
जल विशेषज्ञ  एवं पर्यावरणविद  डॉ.सुधींद्र  मोहन शर्मा ने कहा कि  जितना भूजल का दोहन अमेरिका और चीन करते है उतना अकेला भारत करता है लेकिन  भूजल बड़ाने ने के लिए हम प्रयास कम करते है यानी जितना  जल का हम दोहन करते है उतना उसका  सरंक्षण नही करते, इस मामले में इंदौर अलग है। वह जितना जल भूमि से ले रहा है उससे अधिक  का सरंक्षण कर रहा है। हमारे यहाँ जल का सबसे अधिक उपयोग खेती मे होता है ।उसके बाद घरेलू कार्यो मे  और उससे कम उद्योगों मे।  सांवेर और देपालपुर जल के अतिदोहन  क्षेत्र है।

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