विविध

राम कृपा के बिना कुछ भी संभव नहीं – दीदी मां


स्कीम 51 के माता मंदिर बगीचे में रामकथा महोत्सव में बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक लिख रहे राम का नाम

इंदौर, । भगवान राम ने राम राज्य की स्थापना के बाद जनता के नाम अपने पहले संदेश में कहा है – बड़े भाग मानुष तन पावा… रामचरित मानस की सभी चौपाईयां कल्याणकारी हैं, जिनमें मनुष्य जीवन को विवेकपूर्ण और सार्थक बनाने के लिए अनेक मंत्र दिए गए हैं, लेकिन सबका सार यही है कि रामकृपा के बिना कुछ भी संभव नहीं है। मनुष्य की योनि हमें चौरासी लाख योनियों के बाद मिली है और इसको इसलिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है कि यह कर्म प्रधान योनि है। स्वर्ग में भी देवताओं को कर्म करने की स्वतंत्रता नहीं है। सत्संग की पात्रता भी केवल मनुष्यों को ही प्राप्त है। इसी सत्संग से हमें विवेक की प्राप्ति होती है, जो सुख के आनंद को समझने में मददगार बनता है।
युग तुलसी रामकिंकर महाराज की उत्तराधिकारी, रामायणम अयोध्या की प्रमुख दीदी मां मंदाकिनी ने मंगलवार को स्कीम 51 स्थित माता मंदिर बगीचे में पांच दिवसीय राम कथा महोत्सव के तृतीय दिवस उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। कथा शुभारंभ के पूर्व आयोजन समिति की ओर से वरिष्ठ समाजसेवी प्रेचमंद गोयल, वैष्णव सहायक ट्रस्ट के वरिष्ठ न्यासी राधाकिशन सोनी, विजय –कृष्णा गोयल, पूर्व महापौर कृष्णमुरारी मोघे, गोपाल नेमानी, न्यायाधीश सत्येन्द्र जोशी, महेश गोयन चायवाले, पार्षद पराग कौशल, गगन यादव, दीपक लिम्बा, योगेश अग्रवाल, अखिलेश जोशी, ब्रजेश जोशी आदि ने व्यासपीठ एवं रामचरित मानस का पूजन किया। संयोजक अनूप जोशी एवं अरविंद गुप्ता ने बताया कि दीदी मां के सानिध्य में संगम नगर स्थित संत निवास पर प्रतिदिन राम नाम लेखन का अभियान भी जोर-शोर से चल रहा है।
दीदी मां ने कहा कि राम राज्य एक विचारधारा और जीवन दर्शन है। किसी राजा के केवल सिंहासन पर बैठ जाने से ही राम राज्य नहीं आ जाएगा। देश में नैतिक मूल्य घट रहे हैं। क्लेश , चिंता और राग-द्वेष की प्रवृत्ति बढ़ रही है। इस स्थिति में राम राज्य की पुनर्स्थापना के लिए हम सबको विवेक की जरूरत है। विवेक की प्राप्ति सत्संग से ही संभव है। यदि भगवान हमें सुख पहले दे दें और विवेक नहीं दें तो हमें उस सुख का आनंद ही नहीं मिल पाएगा। हमें जो मनुष्य शरीर मिला है, वह सभी योनियों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। विवेक की पात्रता केवल मनुष्य को ही मिली है, देवताओं को भी यह सुलभ नही है। जब राम राज्य की स्थापना हुई तब प्रभुराम ने अपने पहले संदेश में कहा था कि बड़े भाग मानुष तन पावा। यह इसीलिए कहा गया है क्योंकि मनुष्य और पशुओं में यही अंतर है कि हम कर्म करने में स्वतंत्र हैं, लेकिन पशु नहीं। स्वर्ग में भी कर्म करने की स्वतंत्रता नहीं है। राम कथा इसी मनुष्य जीवन को सार्थक और धन्य बनाने का रास्ता खोलती है।

Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!