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समाज और सत्ता को कुंभकर्णी नींद से जागृत एवं चैतन्य बनाने का काम करती है रामकथा

समाज और सत्ता को कुंभकर्णी नींद से जागृत एवं चैतन्य बनाने का काम करती है रामकथा
बर्फानी धाम के पीछे गणेश नगर में चल रही रामकथा में मानस मर्मज्ञ डॉ. सुरेश्वरदास के आशीर्वचन

इंदौर । किसान जिस तरह अच्छी फसल के लिए श्रेष्ठ किस्म के बीच बोता है, हमें भी भक्ति की फसल पाने के लिए केवट और शबरी की तरह सात्विक बुद्धि के बीज बोना पडेंगे। कथा बेचने के लिए नहीं, बांटने के लिए होती है। राम कथा वह पुण्यसलिला है जो हर सूखाग्रस्त मन को तृप्त कर जीवन की मजबूरियों को मौज में बदलने की ताकत रखती है। यह कथा नही, रसधारा है जो भारत भूमि की सर्वश्रेष्ठ और अनमोल धरोहर है। निष्काम भक्ति में भाव के साथ प्रेम भी जरूरी है। कुंभकर्णी नींद से समाज और सत्ता को जागृत एवं चैतन्य बनाने का काम भी यही रामकथा करती है।
बर्फानी धाम के पीछे स्थित गणेश नगर में माता केशरबाई रघुवंशी धर्मशाला परिसर के शिव-हनुमान मंदिर की साक्षी में चल रही रामकथा में उक्त दिव्य विचार मानस मर्मज्ञ आचार्य डॉ. सुरेश्वरदास रामजी महाराज ने भगवान राम के वननवास से जुड़े विभिन्न प्रसंगों की व्याख्या करते हुए व्यक्त किए। कथा शुभारंभ के पूर्व अ.भा. क्षत्रिय महासभा के उपाध्यक्ष सिद्धार्थसिंह सिसौदिया, समाजसेवी रुक्मणी चौकसे, भानूप्रतापसिंह मौर्य के साथ तुलसीराम-सविता रघुवंशी, राजेन्द्र पजरे, सुरेश वाघ, अनिल पटेल, ठा. गजेन्द्रसिंह चंदेल, कुं. सचिनसिंह राजपूत, नाना यादव, करणसिंह रघुवंशी आदि ने व्यासपीठ एवं रामचरित मानस का पूजन किया। संयोजक रेवतसिंह रघुवंशी ने बताया कि रामकथा का यह संगीतमय दिव्य अनुष्ठान पुष्प दंतेश्वर महादेव मंदिर एवं स्वाध्याय महिला भजन मंडली के तत्वावधान में 9 जनवरी तक प्रतिदिन दोपहर 1 से सायं 5 बजे तक होगा। कथा में सोमवार, 8 जनवरी को शबरी चरित्र एवं राम सुग्रीव मित्रता तथा 9 जनवरी को रावण वध एवं रामराज्याभिषेक प्रसंगों की कथा के साथ समापन होगा ।
डॉ. सुरेश्वरदास ने कहा कि ज्ञान और भक्ति की कोई सीमा नहीं होती। मन की चंचलता इन दोनों को प्रभावित करती है। भगवान राम राजा और युवराज होते हुए भी 14 वर्ष के वनवास पर चल दिए। माता-पिता की आज्ञा के पालन से बड़ा कोई धर्म नहीं माना जा सकता। राम के साथ लक्ष्मण और सीता भी जंगल में साथ देने के लिए गए, यह भी त्याग का बड़ा उदाहरण है। सीताजी जनकपुरी की राजकुमारी थी। जंगल में रहते हुए भी उन्होंने अपने वैभव और राजपाट का प्रदर्शन कतई नहीं किया। इन्हीं सब कारणों से राम और सीता का चरित्र वंदनीय बन गया । भाईयों की जोड़ी को इसीलिए राम और लक्ष्मण की जोड़ी कहा जाता है। वनवासियों के बीच प्रेम और स्नेह बांटने में प्रभु राम ने कहीं भी उदासीनता नहीं बरती। अपने वनवास के दौरान प्रभु राम ने अपनी प्रजा को जो स्नेह और प्यार दिया है, वही राम राज्य की आधारशिला माना जाता है।

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