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संत सम्मेलन में सैकड़ों बालिकाओं ने धर्मांतरण एवं लव जिहाद का प्रतिकार करने की शपथ ली


बिजासन रोड के अखंड धाम पर चल रहे 56वें अ.भा. अखंड वेदांत संत सम्मेलन में शंकराचार्यजी के सानिध्य में हुआ आयोजन

इंदौर । बिजासन रोड स्थित प्राचीन अखंड धाम आश्रम पर चल रहे 56वें अ.भा. अखंड वेदांत संत सम्मेलन में गुरुवार को सैकड़ों बालिकाओं ने धर्मातरण एवं लव जिहाद खिलाफ जोरदार प्रतिकार करने और आत्म सुरक्षा के लिए तत्पर रहने की शपथ ग्रहण की। जगदगुरू शंकराचार्य, भानपुरा पीठाधीश्वर स्वामी ज्ञानानंद तीर्थ के सानिध्य, चार धाम मंदिर उज्जैन के संस्थापक स्वामी शांति स्वरूपानंद, वृंदावन के महामंडलेश्वर स्वामी जगदीश्वरानंद सहित एक दर्जन से अधिक संतों की मौजूदगी में बालिकाओं को विहिप की नगर उपाध्यक्ष श्रीमती माला सिंह ठाकुर एवं सारंगपुर से आई साध्वी अर्चना दुबे ने उक्त शपथ दिलाई। इस मौके पर संत सम्मेलन में शंकराचार्यजी ने कहा कि आज देश में नैतिक मूल्यों का संकट कायम है। जब तक राष्ट्र का चरित्र ऊंचा नहीं उठेगा, तब तक सामाजिक और व्यक्तिगत चरित्र में भी श्रेष्ठता नहीं आ पाएगी। व्यक्ति से ही परिवार, परिवार से समाज और समाज से राष्ट्र का निर्माण होता है। धर्म – संस्कृति के लिए हम सबको संगठित होने की जरूरत है।
अखंड धाम आश्रम पर चल रहे 56वें अ.भा. संत सम्मेलन में वृंदावन के महामंडलेश्वर स्वामी जगदीश्वरानंद, उज्जैन चार धाम मंदिर के संस्थापक स्वामी शांति स्वरूपानंद, जगदगुरू शंकराचार्यजी के उत्तराधिकारी स्वामी वरूणानंद, डाकोर से आए स्वामी देवकीनंदन दास, उज्जैन से आए स्वामी रामकृष्णाचार्य, स्वामी केशवाचार्य, स्वामी राजानंद, हरिद्वार से आए स्वामी महेशानंद आदि ने भी अपने ओजस्वी और प्रेरक विचार व्यक्त किए। अतिथि संतों का स्वागत आश्रम के महामंडलेश्वर डॉ. स्वामी चेतन स्वरूप, संयोजक किशोर गोयल, अध्यक्ष हरि अग्रवाल, महसचिव सचिन सांखला, सचिव भावेश दवे, सीएसपी राजेश जायसवाल, आदि ने किया। मंच का संचालन डाकोर से आए स्वामी देवकीनंद दास रामायणी ने किया।
किसने क्या कहा – महामंडलेश्वर स्वामी शांति स्वरूपानंद ने कहा कि भजन और भक्ति के स्वर समाज को जगाने के लिए होते हैं। संत-महात्मा हमें मोह-माया की नींद से जगाते हैं। जागते हुए को जगाना मुश्किल काम है। संत तो उसे जगाते हैं, जो सोया हुआ हो। संसार का सुख शाश्वत नहीं होता। वेदांत के उद्देश्य और संदेश जीवन को सदगुणों से संवारते हैं। जीवन को सहज और सरल बनाने में वेदांत की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वृंदावन से आए स्वामी केशवाचार्य ने कहा कि हमारे जीवन में शक्ति की महत्ता और भूमिका महत्वपूर्ण होती है। बिना शक्ति के न तो घर चल सकता है और न ही दुनियादारी। डाकोर से आए देवकीनंदन दास रामायणी ने कहा कि वेदांत में उपनिषदों का सार है। ब्रह्म ही परमात्मा है, लेकिन हम कभी रस्सी के सांप होने का भ्रम पाल लेते हैं। वेदांत हमारे मन के इसी भ्रम को मिटाता है। संसार की धन-संपत्ति हमारी नहीं है। हमें सब कुछ यहीं छोड़कर जाना पड़ेगा। हमारे चित्त में आसक्ति के स्थान पर भक्ति होना चाहिए। साध्वी अर्चना दुबे ने कहा कि समाज में विकृतियां बढ़ रही हैं। हमारी मातृशक्ति में धर्म, संस्कृति और संस्कारों का कवच जरूरी है। अपनी ‘श्रद्धा’ को पैंतीस टुकड़ों में खंडित होने से बचाने के लिए समाज को जागरुक होना पड़ेगा। जगदगुरू शंकराचार्य स्वामी ज्ञानानंद तीर्थ ने कहा कि इन दिनों वैचारिक प्रदूषण भी बढ़ रहा है। हमारे युवा पश्चिम की राह पर चलने लगे हैं। राष्ट्र चरित्र के मामले में हम अभी बहुत पीछे हैं। व्यक्तिगत और सामाजिक चरित्र तभी बचेंगे, जब राष्ट्र का चरित्र ऊंचा होगा। संत जहां भी जाते हैं समाज को निर्मल और निश्चल बनाने का प्रयास करते हैं। इस तरह के वेदांत सम्मेलन समाज की विसंगतियों और विकृतियों को दूर करने में मददगार बनेंगे।

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