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समाज को मर्यादा और शालीनता में बांधे हुए है भारतीय विवाह पद्धति -कृष्णानंद

समाज को मर्यादा और शालीनता में बांधे हुए है भारतीय विवाह पद्धति -कृष्णानंद

इन्दौर । धन का सबसे बड़ा सदुपयोग यही है कि वह जरूरतमंद लोगों की आंखों के आंसू पोंछने के काम आए। हमारे जीवन में दया, करुणा और परमार्थ जैसे गुण होना चाहिए। परमात्मा अक्रूर अर्थात जो क्रूर नहीं है, उन्हीं को मिलते हैं। समाज में कंस की प्रवृत्ति तब भी थी और आज भी है। रुक्मणी का विवाह भगवान के मन में नारी के प्रति मंगलभाव का सूचक है। हमारी भारतीय विवाह पद्धति सारी दुनिया में सबसे श्रेष्ठ मानी गई है अन्यथा पश्चिमी देशों में तो विवाह सात दिन और सात माह में ही टूट जाते हैं। भारतीय संस्कृति में विवाह ही वह व्यवस्था है, जो समाज को मर्यादा और शालीनता में बांधे हुए है।

    कथा शुभारंभ के पूर्व समाजसेवी प्रेमचंद-कनलकता गोयल एवं विजय-कृष्णा गोयल ने अतिथियों के साथ व्यासपीठ का पूजन किया। संध्या को आरती में सैकड़ों श्रद्धालुओं  भाग लिया। साध्वी कृष्णानंद ने आज भी अपने भजनों से सभागृह को थिरकाए रखा। भजन पहले दिन से ही भक्तों को भाव विभोर किए हुए हैं।

        साध्वी कृष्णानंद ने कहा कि ज्ञान और भक्ति ऐसे अनमोल खजाने हैं, जिन्हें कोई चुरा नहीं सकता। सोना, चांदी और पैसा तो चुराया जा सकता है। मनुष्य जीवन परमात्मा की ओर से हमें दिया गया सर्वश्रेष्ठ उपहार है। अपनी जिम्मेदारियों से पलायन करना कतई उचित नहीं है। समाज में कंस प्रवृत्ति द्वापर युग में भी थी और आज भी है। कंस अभिमान का प्रतीक है। हम सब भी किसी न किसी कारण से कई बार अभिमानी बन जाते हैं, लेकिन याद रखें कि अभिमान में आ कर किसी का अपमान नहीं करना चाहिए। रुक्मणी विवाह भगवान का नारी के प्रति मंगल भाव का सूचक है।

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