अब तक हम बाहर ही झांकते रहे हैं, अब थोड़ा अपने अंदर भी देख लें : साध्वी कृष्णानंद
अभिमान-अहंकार ऐसा भ्रम है जो कहीं से भी घुसपैठ बना लेता है। व्यक्ति को धन, वैभव पद के साथ कई बार शरीर का भी अहंकार हो जाता है।
इन्दौर । चारों धाम की यात्रा कर लेने पर भी आपको भगवान नहीं मिले, क्योंकि आपने अब तक बाहर की ही यात्रा की है, अंदर की नहीं। भगवान इन तीर्थों में मिलता होता तो सबसे पहले उस पुजारी को मिलते जो 24 घंटे उनके पास रहता है। भगवान कही बाहर नहीं, आनंद स्वरूप में हमारे अंदर ही मौजूद है। विडंबना है कि हम अब तक बाहर ही झांकते रहे हैं। अंदर का कुछ देखने का हमें वक्त ही नहीं मिला। संसार की वस्तुएं थोड़ी देर के लिए आनंद दे सकती है, लेकिन परमात्मा का आनंद स्थायी आनंद होता है। परमात्मा तो हर क्षण आने के लिए तैयार बैठे हैं, लेकिन हम या तो उन्हें बुलाते नहीं या हमारे अंदर उनको बुलाने की पात्रता ही नहीं है।
कथा शुभांरभ में पूर्व गोयल ट्रस्ट की ओर से प्रेमचंद गोयल एवं विजय गोयल ने व्यासपीठ एवं भागवत जी का पूजन किया। कथा में दिनों दिन भक्तों का सैलाब उमड़ रहा है। साध्वी कृष्णानंद के श्रीमुख से कथा के साथ भजनों का जादू भी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध बनाए हुए हैं। आज कथा मे गोवर्धन् पूजा , छप्पन भोग का उत्सव धूम धाम से मनाया गया।
साध्वी कृष्णानंद ने गोवर्धन पूजा, छप्पन भोग प्रसंग की व्याख्या के दौरान कहा कि कंस अभिमान का प्रतीक है। अभिमान-अहंकार ऐसा भ्रम है जो कहीं से भी घुसपैठ बना लेता है। व्यक्ति को धन, वैभव पद के साथ कई बार शरीर का भी अहंकार हो जाता है। भगवान का प्रेम पाना है तो खुद को अहंकार से मुक्त बनाने की जरूरत है।