विविध

संसार से केवल क्षणिक सुख मिलता हैं और परमात्मा से पक्का आनंद- स्वामी व्यासानंद

इंदौर, । प्रत्येक जीव हमेशा अपने लिए सुख चाहता है। सुख कुछ अवधि के लिए मिल भी जाता है, लेकिन सुख के साधन हटते ही वह व्यक्ति फिर से दुखी हो जाता है, जबकि परमात्मा की शरण में पहुंचने पर सुख में कोई कमी नहीं आती है । सुख और आनंद के अंतर को हमें समझना होगा। संसार के साधनों से हमें जो कुछ मिलता है, वह सुख होता है, लेकिन भगवान से मिलने वाला सुख आंनद होता है । परमात्मा से मिलने वाला आनंद न तो कम होता है न ही नष्ट, बल्कि निरंतर बढ़ता जाता है । जब तक व्यक्ति आत्मज्ञान से वंचित बना रहता है, उसे किसी तरह के आनंद की अनुभूति नहीं हो सकती । आत्मज्ञान की प्राप्ति में भी संसार की विषय वासनाएं सबसे बड़ी बाधक होती है ।

     ये प्रेरक विचार है संतमत सत्संग समिति हरिद्वार के संस्थापक प्रख्यात संत स्वामी व्यासानंद महाराज के, जो उन्होंने आज सुबह- शाम ,दो सत्रों में अपने प्रवचनों के दौरान उपस्थित जन सैलाब को संबोधित करते हुए बिजासन रोड स्थित अखंड धाम आश्रम पर चल रही प्रवचनमाला में व्यक्त किए । आदि शंकराचार्य द्वारा रचित ग्रंथ ‘विवेक चूड़ामणि ’और उसके आत्मज्ञान विषय पर आधारित यह प्रवचन माला 26 नवंबर तक जारी रहेगी । आज सत्संग शुभारंभ के पूर्व सी ए विजय गोयनका, यशवंत पंजवानी, विजय शादीजा, राजेन्द्र मित्तल, राजेश अग्रवाल, आर एस ठाकुर, ओ पी शर्मा, श्रीमती स्नेह गोयनका, विद्या भारणी, आर एस गोयल, नरेंद्र सोनी, कमल किशोर शर्मा आदि ने विद्वान वक्ता का स्वागत किया । अखंड धाम के महामंडलेश्वर डॉ. स्वामी चेतन स्वरूप की अध्यक्षता में शनिवार, 25 नवंबर को भी सुबह 9 से 10.30 बजे और शाम 4.30 से 6 बजे तथा 26 नवंबर रविवार को सुबह 9 से 10.30 बजे तक स्वामीजी के प्रवचनों की अमृत वर्षा होगी । संचालन संजय गोयनका ने किया। प्रवचनमाला में आज भी बड़ी संख्या में प्रबुद्ध श्रोता उपस्थित थे।

    स्वामी जी ने कहा कि गूगल पर सर्च कर लीजिए कि दुनिया में एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं होगा जिसने जन्म तो लिया पर अब तक मरा नहीं। ऐसा व्यक्ति भी नहीं मिलेगा जिसका धन, वैभव हमेशा एक जैसा रहा हो। ऐसा व्यक्ति भी कहीं नहीं मिलेगा जो शुरू से अंत तक सुंदर बना रहा हो और ऐसा भी कोई व्यक्ति नहीं मिलेगा जो जन्म से मृत्यु तक सुन्दर बना रहा हो। आशय यह है कि संसार का सुख घटता- बढ़ता रहता है। संसार की चीजे परिवर्तनशील है, लेकिन एकमात्र परमात्मा ऐसा तत्व है जो कभी नहीं बदलता, जिसका रूप, सौंदर्य, गुण, वैभव आदि कभी नहीं बदलते। यदि हम अपने अंदर मौजूद आत्म ज्ञान के व्यवहारिक स्वरूप को नहीं जान पाए हैं तो हमें इन सारी सच्चाइयों की अनुभूति नहीं हो सकती। हम संसार के विषयों में उलझ कर अपने आत्मज्ञान से वंचित बने हुए हैं। जिस दिन हमें यह आत्मज्ञान मिल जाएगा उस दिन हम भी ब्रह्म ज्ञानी नहीं, बल्कि स्वयं ब्रह्म ही बन सकते हैं।

Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!