शहर सहित देश भर में आवारा कुत्तों की आक्रामकता बन गई है बड़ी समस्या
स्टेट प्रेस क्लब द्वारा आयोजित परिचर्चा में शामिल हुए राजनीति, प्रशासन और समाज से जुड़े महत्वपूर्ण लोगों की राय
इंदौर। शहर सहित देश भर में कुत्तों के काटने के मामलों और रैबीज़ से मौत के मामलों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। कुत्तों किस संख्या के साथ उनकी आक्रामकता में भी वृद्धि हुई है और आवारा कुत्तों के पीछे लपकने से आम नागरिक – वाहन चालक न सिर्फ़ परेशान हैं बल्कि एक्सीडेंट भी हो रहे हैं। इस विकराल होती समस्या के सम्भावित उपायों के लिए प्रशासन के साथ नागरिकों के साथ सवर्दलीय – सर्वपक्षीय गम्भीर विचार विमर्श कर निदान की सख़्त ज़रूरत है।
यह निष्कर्ष है स्टेट प्रेस क्लब द्वारा आयोजित “आवारा कुत्तों के आतंक से परेशान नागरिक और प्रशासन की मजबूरियाँ” विषय पर परिचर्चा में। परिचर्चा में प्रशासन, राजनैतिक दलों, विभिन्न सामाजिक संगठनों के अलावा बड़ी संख्या में आम नागरिक एवं कुत्तों की रक्षा के लिए कार्यरत एनजीओ संचालक भी शामिल हुए। हुकुमचंद पॉलीक्लीनिक या लाल अस्पताल के प्रभारी डॉ. आशुतोष शर्मा से स्थिति की भयावहता बताते हुए कहा कि सिर्फ़ पिछले आठ सालों में ही इंदौर में कुत्ता काटने के शिकार लोगों की संख्या में तीन गुना वृद्धि हुई है। इनमें से लगभग सत्तर प्रतिशत पीड़ितों की ग्रेड टू या ग्रेड थ्री के घाव होते हैं। इसके अलावा कुत्तों के काटने से होने वाली लाईलाज बीमारी रैबीज़ के मामलों में भी वृद्धि है जबकि इसके अधिकांश मामले बिना रिपोर्ट के ही रह जाते हैं। शहर के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी श्री बी.एल. सेतिया ने कहा कि कुत्तों के काटने के अलावा उनके पीछे भागने से घबराहट में होने वाले एक्सीडेंटों की संख्या भी बढ़ी है। मॉर्निंग वौक के लिए भी थोड़ा सम्भलकर निकलने की या छड़ी लेकर निकलने की ज़रूरत महसूस होने लगी है। कुत्तों के डीप बाईट या गहरे ज़ख़्मों के मामलों में पीड़ितों को अन्य प्रकार के उपचार की आवश्यकता भी पड़ रही है। उन्होंने बताया कुत्ते काटने के बाद इंजेंक्शन शहर की सभी 38 सरकारी अस्पतालों – डिस्पेंसरियों में भी नि:शुल्क लगाए जा सकते हैं और कभी भी इंजेक्शन की कमी के कारण किसी को ईलाज से वंचित नहीं होना पड़ता। पूर्व प्रशासनिक अधिकारी एवं अभ्यास मंडल के अध्यक्ष श्री रामेश्वर गुप्ता ने स्वीकारा कि पूरे देश में आवारा कुत्तों की रोकथाम की मुहिमों के ठप्प होने के पीछे एक बड़ा कारण पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीमती मेनका गांधी हैं। उन्होंने याद करते हुए बताया कि जब एक जिले के निगम आयुक्त रहने के दौरान जब एक बार कुत्तों को नसबंदी के लिए पकड़ा जा रहा था तब तुरंत सीधे उनके पास मेनका गांधी का फ़ोन आया एवं उन्होंने सीधा पूछा, “कमिश्नर साहब, क्या आपको अपने ऊपर एफ़आईआर करवाना है ?” फिर उन्होंने भी माक़ूल जवाब दिया और इसकी काफ़ी चर्चा भी हुई। ऐसा ही दबाव लगभग हर शहर में अधिकारियों पर श्रीमती गांधी एवं उनसे जुड़े लोग बनाते हैं। ऐसे में कोई उपाय करना मुश्किल हो जाता है और कुत्तों की आबादी लगातार बढ़ रही है। उन्होंने इस दावे से असहमति जताई कि कुत्ते भूखे रहने से आक्रामक हो गए हैं। उन्होंने सवाल किया कि यदि ऐसा है तो भरपेट खाने वाले घरों के पालतू कुत्ते भी अन्य लोगों को क्यों काट रहे हैं ? वहीं मौजूद एक पीड़ित ने बताया कि उनकी कॉलोनी में ज़्यादातर काले कुत्ते हैं तथा धार्मिक कारणों से रहवासी उन्हें इतना खिलाते हैं कि कई बार वे छोड़कर चल देते हैं, लेकिन इतना भरा पेट होने के बाद भी कभी कभार काट लेते हैं।
नगर निगम की ओर से कुत्तों की नसबंदी अभियान के प्रभारी श्री उत्तम यादव ने बताया कि इंदौर नगर निगम इस तरह की रोकथाम करने वाला पहली निगम है तथा शहर में अभी तक 1.72 लाख कुत्तों की नसबंदी की जा चुकी है। उन्होंने स्वीकारा कि पालतू कुत्तों के रजिस्ट्रेशन या उनके द्वारा गंदगी फैलाने पर चालान तथा प्रतिबंधित प्रजाति के ख़तरनाक कुत्तों के पाले जाने पर रोक की दिशा में नगर निगम को अभी और गम्भीर प्रयास करने हैं। उन्होंने कुत्तों की नसबंदी एवं अन्य समस्याओं के लिए नगर निगम के जोनवार दो नम्बर – 8770915741 तथा 9713697796 एवं हेल्पलाइन नम्बर 7974573094 उपलब्ध कराया। उन्होंने बताया कि शहर में कचरा पेटियाँ हटने से कुत्तों को भोजन मिलने में समस्या हुई थी लेकिन कोविड काल तक में कुत्तों के पेट भरने की चिंता नगर निगम द्वारा की गई थी। प्रदेश कांग्रेस महामंत्री एवं म.प्र. दवा विक्रेता संघ के अध्यक्ष श्री विनय बाकलीवाल ने बताया कि दवा बाज़ार से कुत्तों से काटने के ईलाज की जितनी दवाइयाँ बिकती हैं उससे स्पष्ट है कि सरकारी अस्पतालों के मुक़ाबले दो से तीन गुना पीड़ित निजी चिकित्सकों से ईलाज करवाते हैं तथा यह समस्या बहुत भीषण हो गई है। उन्होंने सुझाव दिया कि जैसे शहर से बाहर गायों के लिए गौशालाएँ बनाई गयीं हैं वैसे ही कुत्तों के लिए भी शेल्टर हाउस बनने चाहिए जहाँ श्वान प्रेमी उनका लालन पालन कर सकें। हर वार्ड में भी कुत्तों के पालन केंद्र बनाए जा सकते हैं जहाँ कुत्तों को इलाज एवं भोजन मिले। इससे कुत्तों को भी अच्छा स्थान मिलेगा और शहर से भी आवारा कुत्तों का आतंक समाप्त होगा। उन्होंने कहा कि आज माता-पिता अपने बच्चों की बाहर खेलने गार्डन भेजने से भी डरने लगे हैं तथा इस समस्या के लिए सर्वदलीय – सर्वपक्षीय गंभीर प्रयास ज़रूरी हैं। परिचर्चा में कई पीड़ित भी आए जिन्होंने अपनी पीड़ा सुनाई तो कुत्तों के लिए काम करने वाली संस्थाओं के कई पदाधिकारी भी आए जिन्होंने कुत्तों के ख़िलाफ़ किसी भी अभियान के प्रति विरोध जताया। उनका कहना था कि इंसान के बुरे व्यवहार के कारण कुत्ते आक्रामक हो रहे हैं। इस तरह की और चर्चाओं के माध्यम से इस विषय में सुझावों पर बात करने की आवश्यकता भी महसूस की गई।
परिचर्चा का कसा हुआ प्रभावी संचालन पत्रकार एवं संस्कृतिकर्मी आलोक बाजपेयी ने किया। अतिथियों का स्वागत नवनीत शुक्ला, शीतल रॉय, राकेश द्विवेदी, मीना राणा शाह, विवान सिंह राजपूत, सोनाली यादव एवं दीपक असीम ने किया। जबकि अतिथियों को स्मृति चिन्ह रवि चावला, आकाश चौकसे, नेहा जैन, संदेश गुप्ता एवं बँसी लालवानी ने प्रदान किए। अंत में आभार प्रदर्शन स्टेट प्रेस क्लब, मध्यप्रदेश के अध्यक्ष श्री प्रवीण कुमार खारीवाल में किया।