ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का अदभुत समन्वय है भागवत–डॉ. मनोज मोहन शास्त्री
भगवान कब किसके लिए किस रूप में अवतार लेंगे और कैसे मदद करेंगे यह कोई नहीं बता सकता
छावनी अनाज मंडी परिसर में वृंदावन के के श्रीमुख से चल रहे ज्ञान यज्ञ में भजनों पर थिरक रहे श्रद्धालु
इंदौर, । श्रीमद भागवत किसी एक धर्म, पंथ, जाति या समुदाय के लिए नहीं, बल्कि जीव मात्र के कल्याण के लिए की गई भगवान की ऐसी रचना है, जो हर युग में शाश्वत और प्रासंगिक है। भागवत ज्ञान, भक्ति और वैराग्य के समन्वय का अदभुत और अनुपम ग्रंथ है। जहां परमात्मा का ज्ञान और संसार से वैराग्य हो जाए, यही भक्ति की सार्थकता होती है। भागवत वेदव्यास के असंतोष के धरातल पर सृजित हुई ऐसी रचना है, जो आज पूरे विश्व को संतोष प्रदान कर रही है। भागवत केवल ग्रंथ नहीं, स्वयं भगवान की वाणी है।
वृंदावन के प्रख्यात भागवतचार्य डॉ. मनोज मोहन शास्त्री ने इंदौर अनाज तिलहन व्यापारी संघ द्वारा छावनी अनाज मंडी प्रांगण में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। कथा श्रवण के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आसपास के गांवों और शहरों से भी आए है। कथा शुभारंभ के पूर्व अनाज तिलहन व्यापारी संघ की ओर से संजय अग्रवाल, वरुण मंगल, आशीष मूंदड़ा, रामेश्वर असावा, प्रकाश वोहरा, गोपालदास अग्रवाल, सुकुमाल सेठी, नंदकिशोर अग्रवाल, शिवनारायण गोयल एवं मुकेश माहेश्वरी आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। कथा में वृंदावन के मनोहारी भजन गायकों के सुर एवं स्वर लहरियों पर महिला-पुरुषों के समूह झूमने लगे हैं। जहां जब भजन की शुरुआत होती हैं।
डॉ. शास्त्री ने इंदौर के धर्म और अध्यात्म प्रेम की खुले मन से प्रशंसा करते हुए कहा कि यहां के श्रोता सजग और समर्पित भाव से पुण्य लाभ उठा रहे हैं। भागवत ऐसा ग्रंथ है, जो सत्य से साक्षात्कार करा सकता है। सत्य और परम सत्य में अंतर है। जो आज सत्य है, वह कल देश, काल और परिस्थिति के अनुसार बदल सकता है, लेकिन परम सत्य नहीं बदलता। आज का पुत्र कल का पिता हो सकता है। भागवत वह पका हुआ फल है, जो खाने के लिए नहीं बल्कि कानों से पीने के लिए है। शुकदेव की चोंच लग जाने पर यह फल मीठा बन जाता है। भागवत में मूल रूप से 6 प्रश्न पूछे गए हैं। इन प्रश्नों पर ही भागवत की अवधारणा टिकी हुई है। इनमें जीव के कल्याण का उपाय, अवतारों का प्रयोजन, भगवान की कौन-कौन सी लीलाएं हुई और उन लीलाओं में कृष्ण जन्म और अन्य लीलाओं का विस्तार से वर्णन, भगवान कृष्ण के जाने के बाद पृथ्वी पर धर्म की रक्षा किसने की जैसे प्रश्न ही भागवत के मूल तत्व हैं। इन प्रश्नों में सबसे अनुत्तरित प्रश्न यही है कि भगवान के अवतारों का प्रयोजन क्या है। इस प्रश्न का उत्तर स्वयं अवतार भी नहीं दे पाए हैं। भगवान कब किसके लिए किस रूप में अवतार लेंगे और कैसे मदद करेंगे यह कोई नहीं बता सकता। भगवान को जब जिसकी मदद करना होती है, वे किसी भी रूप में पहुंच जाते हैं। मरीज की जान बचाने वाला डाक्टर हो या अन्य किसी रूप में किसी की मदद करने वाला, भगवान के अवतार ही कहे जाएंगे।