नर में नारायण के दर्शन का भाव जब तक नहीं आएगा, हमारी पूजा-तीर्थयात्रा अधूरी ही होगी
भागवत ज्ञान यज्ञ फूलों की होली के साथ हुआ समापन
इंदौर, । हमारे कर्मों में सदाचार, संस्कार और परमार्थ का चिंतन ही सच्चा भागवत धर्म है। साधना और भक्ति के मार्ग पर चलने वालों को अनेक परीक्षाएं देना होती है। केवल पूजा-पाठ कर लेने से ही धर्म-कर्म नहीं हो जाता, धर्म के साथ सदगुणों को भी आत्मसात करना होगा। नर में नारायण के दर्शन का भाव जब तक हमारे अंतर्मन में नहीं आएगा, हमारी पूजा और तीर्थ यात्रा अधूरी ही होगी। भगवान भोग के नहीं भाव के भूखे हैं।
वृंदावन के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद महाराज ने गीता भवन सत्संग सभागृह में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में समापन दिवस पर कृष्ण सुदामा मैत्री प्रसंग के दौरान उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। प्रारंभ में समाजसेवी प्रेमचंद गोयल, सेवाधाम उज्जैन के प्रमुख सुधीर भाई, बालाजी ट्रस्ट के डॉ. आर. के गौड़, पी.के. झंवर, राजेश महाजन, अशोक बूबना, प्रकाश मोमबत्ती, देवीलाल अग्रवाल, ओमप्रकाश पसारी, एस.एन. गोयल, सुमित मंत्री, अनिल मोदी आदि ने व्यास पीठ का पूजन किया। समापन अवसर पर श्रद्धालुओं ने राधा कृष्ण संग खेली फूलों की होली के उत्सव का भी आनंद लिया। सभी भक्तों ने भगवान राधा कृष्ण के साथ फूलों की होली खेली और एक दूसरे को शुभ कामनाएं समर्पित की।
स्वामी भास्करानंद ने कहा कि हमारी हिन्दू संस्कृति किसी का अनादर और अपमान नहीं करती इसीलिए भारतीय संस्कृति को सनातन कहा गया है। धर्म के क्षेत्र में जिन्हें क्रांति करना हो वे हमारे वेदों का आश्रय लेकर अपनी संस्कृति की गहराई को समझ सकते हैं। सुदामा तीन मुट्ठी चावल के लिए चार घरों में याचना करने जाते थे, लेकिन उन्हें भगवान के वैभव एवं राजमहल से कोई द्वेष नहीं था। भगवान चाहते तो अपने बाल सखा को एक क्षण में ही अमीर बना सकते थे, लेकिन उन्होंने पहले सुदामा को निर्धनता प्रदान की। भगवान एक दार्शनिक और चिंतक भी हैं। उनके कर्मों को आज इसीलिए सारी दुनिया पूजती और याद रखती है। भागवत का पहला सूत्र यही है कि बहुत कम समय के जीवन में हम संतुष्ट और प्रसन्न रहने का पुरुषार्थ करें। सुख-दुख आते-जाते रहते हैं, लेकिन अपनी पूर्ति के बाद भी हम नर में नारायण के दर्शन की अनुभूति करते रहें, धर्मसभा के साथ गृहसभा की जिम्मेदारी भी निभाएं और परमार्थ, सदभाव, अहिंसा एवं सहिष्णुता का विवेकपूर्ण इस्तेमाल करें यही धर्म का सही स्वरूप होगा।