भक्ति में पवित्रता और श्रेष्ठता का भाव रखें – पंडया
अमरेली (गुजरात) से आए प्रख्यात भागवताचार्य नितिन भाई पंड्या के, जो उन्होंने आज स्नेहलतागंज स्थित गुजराती समाज अतिथि गृह में श्री गुजराती विश्वकर्मा समाज के तत्वावधान में आयोजित भागवत ज्ञान यज्ञ के दौरान व्यक्त किए। कथा शुभारंभ के पूर्व सैकड़ों युगलों ने श्रीमद भागवत के मूल पारायण में भाग लिया। कथा शुभारंभ के पूर्व दिलीप भाई बाबू भाई परमार, इंद्रकुमार मनसुखलाल परमार, भरत भाई महेन्द्र भाई परमार, भरत भाई दामजीभाई पंचासरा, संजय भाई मनू भाई परमार एवं देवेन्द्र विनोद भाई परमार आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। महिला मंडल की ओऱ से हीना बेन परमार, तेजस्वी बेन एवं साक्षी बेन आदि ने भागवताचार्य की अगवानी की। कथा श्रवण के लिए बड़ी संख्या में गुजराती एवं अन्य समाज के श्रद्धालु आ रहे हैं। अध्यक्ष दिलीप भाई बाबू भाई परमार ने बताया कि गुरुवार 27 जुलाई को दोपहर 3 से सायं 6 बजे तक नृसिंह जन्मोत्सव एवं वामन अवतार की संगीतमय कथा होगी। शहर में आठ वर्षों के बाद पूरी तरह गुजराती भाषा में यह आयोजन हो रहा है। यहां तक कि हारमोनियम पर नीलेश भाई पंड्या, तबले पर विकास भाई श्रीवास और की-बोर्ड पर नवीन मालवीया संगत कर रहे हैं, जो तीनों ही गुजरात से आए हैं। आज भी संगीतज्ञों के मनोहारी भजनों का जादू देखने को मिला

इंदौर से विनोद गोयल की रिपोर्ट:-
इंदौर, । भगवान और भक्ति की प्राप्ति के तीन साधन बताए गए हैं। इनमें श्रवण, कीर्तन और नाम स्मरण प्रमुख हैं। इन तीनों साधनों में हमारा कोई धन खर्च नहीं होता। हमारी भक्ति भगवान के साथ छल करने जैसी है। हम भगवान को या मंदिर में अनुपयोगी वस्त्र या सड़े-गले फल चढ़ाकर स्वयं को भक्त और दानी मान लेते हैं। याद रखें कि जैसे धरती में हम जैसा बोएंगे, वैसा ही फल मिलता है, उसी तरह भगवान के यहां भी हम जैसा अर्पित करेंगे, वैसा ही हमें वापस मिलेगा। कभी यह नहीं समझें कि हमारे पाप कर्म अथवा गलतियां कोई नहीं देख रहा, सूर्य , चंद्रमा, तारे और नक्षत्र हमारे कर्मों पर निगरानी रखते हैं। इसलिए हमारे कर्मों में, विशेषकर भक्ति में पवित्रता और श्रेष्ठता का भाव रखना चाहिए।
कपिल जन्मोत्सव प्रसंग की कथा के दौरान पं. पंड्या ने कहा कि भगवान के चरित्र और कथा का श्रवण सावधानी से करना चाहिए। हम कथा में तो रोज आकर बैठते हैं, लेकिन हमारा मन संसार और अन्य विषयों में मचलता रहता है। मंदिर में दर्शन करने जाते हैं, लेकिन मन कहीं और अटका रहता है। कथा श्रवण करते समय श्रद्धा का भाव जरूरी है। हम रोज मंदिर जाने के बाद भी यदि भक्ति का सृजन नहीं कर सकें तो ऐसा मंदिर जाना व्यर्थ है। कलियुग में भागवत कथा को भक्ति का सबसे सहज और सरल माध्यम माना गया है। धर्म वही है, जिसमें भगवान की भक्ति प्राप्त हो। कथा श्रवण के बाद हम अपने कर्मों में थोड़ा सा भी सुधार कर सकें तो हमारा श्रवण सार्थक हो जाएगा। भागवत वैचारिक पवित्रता और निर्मलता का संदेश देने वाला ग्रंथ है। यह केवल ग्रंथ नहीं, अपने जीवन को श्रेष्ठ सदगुणों और संस्कारों से सजाने संवारने का खजाना है।