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विकारों को नष्ट करने के लिए मन को प्रयागराज बनाएं –जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज

जो व्यक्ति चतुर्विद साधना करते हैं उनसे बड़ा संसार में कोई और नहीं हो सकता

इंदौर से विनोद गोयल की रिपोर्ट:-

इंदौर।  मन में घुसे बैठे काम, क्रोध, लोभ, मोह जैसे विकारों को नष्ट करने के लिए जीवन में प्रत्येक क्षेत्र में सशक्त साधना करना चाहिए। चातुर्मास चतुर्विद साधना का ही नाम है। जो व्यक्ति चतुर्विद साधना करते हैं उनसे बड़ा संसार में कोई और नहीं हो सकता। जैसे प्रयागराज में स्नान के बाद हमारे पाप नष्ट होने की मान्यता है, उसी तरह मन के विकारों से मुक्ति के लिए हमें अपने मन को प्रयागराज बनाना होगा। रामद्वारा की पवित्र धरती पर आने के बाद हमारी साधना भी सशक्त हो उठेगी। आत्मनिर्भर साधना का आशय यही है कि हम प्रत्येक कर्म क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनकर साधना के पथ पर भी  स्वयं को आत्मनिर्भर बनाएं।

            अंतर्राष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के आचार्य, जगदगुरू  स्वामी रामदयाल महाराज ने आज छत्रीबाग रामद्वारा पर चल रहे आत्मनिर्भर चातुर्मास की धर्मसभा में उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि सुख-दुख, मान-अपमान, यश-अपयश और अपना-पराया जैसे हालात हर किसी के जीवन में आते ही हैं, लेकिन जिनके मन में अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठा और लगन होती है, उनके सामने तो मंजिल भी खुद खिसककर आगे आ जाती है। जीवन का आनंद उन्हीं को मिलेगा, जो अपना सब कुछ खोकर भी मस्त रहते हैं। जीवन में कई तरह के प्रयाग हैं – जैसे ज्ञान प्रयाग, विचार प्रयाग, विवेक प्रयाग।  यदि हमें अपने मन को प्रयागराज बनाना है तो व्यसनों और विकारों से स्वयं को मुक्त करना होगा। यह साधना के मार्ग से ही संभव होगा। जिस दिन हम इन विकारों से मुक्त हो जाएंगे, हमें भी त्रिवेणी स्नान का पुण्य मिल पाएगा। संत हमारी लुप्त प्राय सरस्वती को इस चातुर्मास में जगाने का काम करते हैं। जिनकी नियत डगमगाती है, उन्हें अवश्य परेशानियां आती हैं। व्यक्ति तभी सर्वगुण संपन्न और सर्व सुख संपन्न हो  सकता है, जब उसकी नियत में इमानदारी, निष्ठा और लगन हो। चातुर्मास के दौरान हम आत्मनिर्भर साधना के मार्ग पर चलकर अपने जीवन को धन्य बनाएंगे।  प्रारंभ में चातुर्मास समिति की ओर से रामनिवास मोढ़, कंचन गिदवानी, हेमंत काकाणी, सुभाष धनोतिया, गिरधर नीमा, टीटू पोरवाल एवं श्रीराम मांडलिया आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया।  धर्मसभा में देश-प्रदेश के विभिन्न रामद्वारों से आए संतों ने भी प्रवचन दिए। 

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