दीक्षा के पूर्व संसारी आभूषण मां की झोली में सौंपे

– लगभग चार घंटे चला दीक्षा का मुख्य महोत्सव
इंदौर, 8 जून। नवकार महामंत्र से अभिमंत्रित अक्षत वर्षा के बीच बॉस्केटबाल स्टेडियम पर श्वेताम्बर जैन समाज के सुरेन्द्र नगर, गुजरात से आए आटोमोबाइल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा जैसी उच्च शिक्षा प्राप्त 21 वर्षीय मोहित शाह को आज हजारों समाज बंधुओं ने तप, त्याग और वैराग्य की राह पर चलने के लिए आचार्यदेव विश्वरत्न सागर म.सा. को सौंप दिया। लगभग चार घंटे चली शास्त्रोक्त प्रक्रिया के दौरान बार-बार भगवान नेमीनाथ, महावीर स्वामी एवं मालवा भूषण नवरत्न सागर म.सा. के जयघोष तथा हर्ष-हर्ष के उदघोष गूंजते रहे। आचार्यदेव ने मोहित शाह को नया नाम केवल्य रत्न सागर मुनि दिया। इसके पूर्व मोहित शाह ने संसारी वेश, आभूषण एवं अपने केश त्याग कर साधु वेश के वस्त्र पहनकर सभागृह में प्रवेश किया तो उनकी एक झलक पाने के लिए हजारों समाजबंधु उमड़ पड़े। महोत्सव में भाग लेने कमलमुनि ‘कमलेश’ भी विशेष रूप से इस अवसर पर स्टेडियम पहुंचे।
पिछले तीन दिनों से शहर में नवरत्न परिवार एवं जैन श्वेताम्बर मालवा महासंघ तथा सकल जैन श्रीसंघ की मेजबानी में दीक्षा महोत्सव का दिव्य अनुष्ठान चल रहा था। महोत्सव समिति के मुख्य संयोजक ललित सी. जैन, प्रभारी प्रीतेश ओस्तवाल एवं दिलसुखराज कटारिया ने बताया कि बॉस्केटबाल स्टेडियम पर दीक्षा का मुख्य महोत्सव संपन्न हुआ। वल्लभ नगर स्थित श्वेताम्बर जैन मंदिर से दीक्षार्थी मोहित शाह अपने माता-पिता एवं अन्य परिजनों के साथ संसारी वेश में स्टेडियम पहुंचे तो स्वजनों ने गोदी में उठाकर उन्हें मंच तक पहुंचाया। सभागृह में मौजूद हजारों समाजबंधुओं ने अक्षत की वर्षा कर नाचते-गाते हुए अपनी खुशियां व्यक्त की।
आचार्यदेव विश्वरत्न सागर म.सा. एवं आचार्य मतिचंद्र सागर म.सा. से मोहित ने नीले रंग का साफा और हल्के नीले रंग की शेरवानी पहने दीक्षा की अनुमति प्राप्त की। आचार्यश्री ने उन्हें पिच्छी और आसन देकर मंत्र पढ़कर सिर पर वासक्षेप की वर्षा कर सुरक्षा कवच प्रदान किया। पिच्छी लेकर भगवान नेमीनाथ एवं समवशरण की साक्षी में मोहित ने नृत्य करते हुए अपनी प्रसन्नता व्यक्त की। हजारों समाज बंधु भी मोहित के साथ अपनी-अपनी जगह खड़े होकर थिरकते रहे। चैत्य वंदन, नंदी सूत्र के वाचन एवं सकल श्रीसंघ की अनुमति के बाद मोहित को अंतिम विजय तिलक लगाकर उन्हें अपना संसारी वेश बदलने के लिए अलग कक्ष में पहुंचा दिया गया। इसके पूर्व उन्होंने अपने हाथों में पहने स्वर्ण कड़े, गले में चेन, कानों में कर्ण फूल, हाथ घड़ी आदि अपने सभी आभूषण अपनी मां डिम्पल बेन एवं पिता योगेश भाई शाह को सौंप दिए। बॉस्केटबाल स्टेडियम में बने रेम्प के दोनों ओर जमा अपार जन समूह उनके इस प्रस्थान का साक्षी बना। अलग कक्ष में उनके केश लोचन की विधि संपन्न हुई और मुनि शौर्य रत्न सागर म.सा. ने उन्हें साधु वेश के वस्त्र पहनने में मदद की। मुनि शौर्य रत्न सागर की प्रेरणा से ही मोहित ने दीक्षा के मार्ग को आत्मसात किया है। इस बीच मंच से नूतन दीक्षार्थी के लिए विभिन्न बोलियों का क्रम भी चलता रहा। धर्मसभा को आचार्यदेव के साथ कमल मुनि, आचार्य मतिचंद्र सागर म.सा. ने भी संबोधित किया और दीक्षा जीवन की महत्ता बताई।
साधु जीवन में प्रयुक्त होने वाली सभी चीजें उनके कांधे एवं हाथों में सुशोभित थी। वे साधु वेश में उल्लासित होकर मंच पर पहुंचे और उपस्थित साधु-साध्वी भगवंतों से शुभाशीष प्राप्त किए। मंच पर पहुंचने के बाद साधु-साध्वी भगवंतों ने उनके बचे हुए केश लोचन कर उनकी माता की झोली में समर्पित कर दिए। ये केश ही अब डिम्पल बेन-योगेश भाई के पास मोहित की अंतिम निशानी होंगे। इधर, साधु वेश में आने के बाद रजोहरण, केशलोच, पचकांण आदि विधियां संपन्न होने पर आचार्यदेव विश्वरत्न सागर म.सा. ने उनके नए नाम की घोषणा एक पट्टिका पर लिखकर की, जिस पर केवल्य रत्न सागर म.सा. नाम लिखा हुआ था। इस दौरान भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय भी समारोह में पहुंचे और उन्होंने भी आचार्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद नूतन दीक्षित केवल्य रत्न सागर म.सा. के सन्यासी जीवन के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त की। उन्होंने आचार्यदेव से अगला चातुर्मास इंदौर में ही करने का आग्रह भी किया। दीक्षा समारोह में भाग लेने के लिए आचार्यदेव के साथ इंदौर आए साधु-साध्वी भगवंतों में प.पू. पदमलताश्री, प.पू. सौम्यवंदनाश्री, प.पू. लक्षितज्ञाश्री, प.पू. प्रीतिधराश्री, प.पू. सुधाशनाश्री, प.पू. मुक्तिनिलयाश्री, प.पू. मोक्षज्योतिश्री, प.पू. जितेशरत्नाश्री, प.पू. हर्षप्रियाश्री, प.पू. रितुदर्शनाश्री,प.पू. जिनेशकलाश्री एवं प.पू. नम्रव्रताश्री आदिठाणा सहित इस महोत्सव के साक्षी बने। साधु वेश ग्रहण करने के बाद केवल्य रत्न सागर म.सा. पुनः रेम्प पर आए तो हजारों समाजबंधुओं ने नवकार मंत्र से अभिमंत्रित अक्षत की वर्षा कर उन्हें सन्यास मार्ग के लिए शुभकामनाएं सौंपी। अब नूतन दीक्षित साधु केवल्यरत्न सागर उपाश्रय पहुंचेंगे और साधु की तरह दिनचर्या बिताएंगे। अभार माना ललित सी. जैन ने।
*बुद्धि, आचरण और विचार शक्ति को शुद्ध एवं निर्मल बनाएं*- आचार्यदेव विश्वरत्न सागर म.सा. ने अपने आशीर्वचन में कहा कि तप, त्याग और संयम का यह मार्ग बहुत चुनौती भरा हुआ है। अब केवल्य रत्न सागर को अपना संसारी जीवन छोड़कर गुरू आज्ञा को ही सर्वस्व, सर्वोत्तम और सर्वोपरि मानना होगा। उन्हें अपनी बुद्धि, आचरण और विचार शक्ति को इतना शुद्ध एवं निर्मल बनाना होगा कि देवता भी उनका पीछा करने पर बाध्य हो जाएं। संयम का जीवन तलवार की धार पर चलने जैसा है। गिरने वाला तो एक ही बार गिरता है, लेकिन संभलने वाला और उस मार्ग पर स्वयं को टिकाए रखने वाला ज्यादा प्रभावी और मजबूत होता है।