जीवन को प्रभावित करती है सज्जनों और दुर्जनों की संगति – आदित्य सागर महाराज
घट यात्रा व ध्वजारोहण के साथ पंच कल्याणक महोत्सव प्रारम्भ

इंदौर से विनोद गोयल की रिपोर्ट:—
इंदौर। संगत के असर से जीवन जरूर प्रभावित होता है। सज्जनों की संगति से जीवन में लाभ व सम्पत्ति बढ़ती है और दुर्जनों की संगति अलाभ व विपत्ति बढ़ाती है। संगति अच्छी होगी तो जीवन बचा रहेगा लेकिन एक गलत व्यक्ति की संगति पूरे जीवन को समाप्त कर देती है।
यह बात दिगंबर जैन आचार्य आदित्य सागर जी महाराज ने कही। वे शनिवार को हवाई अड्डा के पास 60 रोड पर जन शक्ति नगर में 20 से 24 मई तक आयोजित पंच कल्याणक महोत्सव के प्रथम दिन गर्भ कल्याणक उत्सव पर आयोजित धर्म सभा को सम्बोधित कर रहे थे। आपने पंच कल्याणक महोत्सव की महत्ता की जानकारी देते कहा कि जीवन में संगति का प्रभाव होता है। दुर्जन पुरुष की संगति और युवती के संग विलास दोनों ही अच्छे नहीं होते। मोक्ष के व न्याय के मार्ग पर स्थित होना है तो किसी अच्छे व्यक्ति का संग पकड़ लो। जिस व्यक्ति से मैत्री या संग करने से दुख की प्राप्ति हो ऐसे व्यक्ति से सावधान रहना चाहिए।
इसके पूर्व प्रातः अंजनी नगर पंचायती मंदिर से घट यात्रा के साथ जुलूस निकलकर जन शक्ति नगर कार्यक्रम स्थल पहुंचा। प्रचार सयोजक डॉ. अभिषेक सेठी ने बताया कि यहाँ ध्वजारोहण आजाद जैन (बीड़ीवाले ) परिवार, मंडप उदघाटन जय कुमार जैन (लोहारी वाला ) परिवार, मंगल कलश स्थापना राजेश उषा कानूगो परिवार व दीप प्रज्वलन के हंसमुख उर्मिला परिवार लाभार्थी थे। इस मौके पर दिगम्बर जैन समाज सामाजिक संसद के पूर्व अध्यक्ष कैलाश वेद, पुलक जन चेतना मंच के कमल राँवका, प्रदीप बड़जात्या, वैभव कासलीवाल, वीरेन्द्र बड़जात्या, दिगम्बर जैन समाज अंजनी नगर से श् देवेन्द्र सोगानी, ॠंषभ पाटनी, दिगम्बर जैन समाज छत्रपति नगर से निलेश जैन, नीरज जैन, डॉ. जैनेन्द्र जैन, राजेश जैन दद्दू, आदि समाज जन उपस्थित थे ।
चित्रेश टोंग्या, दिवेश जैन, पंकज कालाकुण्ड ने बताया कि शोभायात्रा पश्चात मण्डप में प्रतिष्ठाचार्य संजय जैन एवं नितिन झांझरी द्वारा सकलीकरण, इंद्र प्रतिष्ठा आदि के साथ मंडल शुद्धि, श्रीजी अभिषेक, शांति धारा तथा दोपहर में महायाग मंडल आराधना, तीर्थंकर माता की गोद भराई, सीमांतनी विधि आदि संपन्न हुई।
आशीष जैन, संदीप्त सावला ने बताया कि रात्रि में आरती, शास्त्र सभा, इन्द्र सभा, तत्व चर्चा सौधर्म इन्द्र का आसन कम्पायमान, अयोध्या नगरी की रचना सोलह स्वप्न, अष्टकुमारिकाओं द्वारा माता की सेवा, श्रृंगार स्वप्न फलादेशा एवं गर्भ कल्याणक की आंतरिक क्रियाएँ संपन्न हुई।