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भागवत कथा में जूठन नहीं छोड़ने, आसपास के क्षेत्र को साफ-सुथरा रखने और यातायात नियमों का पालन करने की शपथ

इंदौर, । भागवत का मनन और मंथन मानव को महामानव की दिशा में आगे बढ़ाने वाला होता है। कलयुग में धर्म के नाम पर पाखंड और प्रदर्शन का बोलबाला ज्यादा है। भारतीय संस्कृति परंपराओं और मर्यादाओं से जुड़ी हुई है। धर्म प्रदर्शन के लिए नहीं, सेवा और परमार्थ की बुनियाद पर टिका होना चाहिए। परमात्मा के साथ प्रकृति भी वंदनीय है। प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने का नतीजा हम आज भी भुगत रहे हैं। भागवत हमारे अंदर तभी पहुंचेगी, जब हृदय में भरा हुआ अज्ञान और छल-कपट का कचरा बाहर निकलेगा। अंदर बैठे परमात्मा के दर्शन तभी संभव होंगे।

        श्री श्रीविद्याधाम के आचार्य पं. राहुल कृष्ण शास्त्री ने अन्नपूर्णा रोड स्थित देवेन्द्र नगर के ‘पंचामृत सदन’ पर चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में सुदामा – कृष्ण मिलन प्रसंग के दौरान उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। कथा शुभारंभ के पूर्व  म.प्र. ज्योतिष एवं विद्वत परिषद के अध्यक्ष आचार्य पं. रामचंद्र शर्मा वैदिक, रमेश गुप्ता पीठेवाले, धीरज गर्ग, पवन गुप्ता यजमान, खाटू श्याम मंदिर के रामकुमार अग्रवाल, राजकुमार चितलांगिया, ओमप्रकाश नरेडा, हरि अग्रवाल आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। समापन अवसर पर आचार्य पं. शास्त्री के आव्हान पर उपस्थित भक्तों ने किसी भी मांगलिक प्रसंग में जूठन नहीं छोड़ने, अपने आसपास के क्षेत्र को साफ-सुथरा रखने और यातायात के नियमों का पालन करने के संकल्प भी व्यक्त किए। प्रारंभ  में आयोजन समिति की ओर से से.नि. प्राचार्य दामोदर गुप्ता, डॉ. वरूण नीखरा, मयंका गुप्ता, नीलेश गुप्ता, कृष्णकांत मेहता, रितेश गुप्ता आदि ने अतिथियों का स्वागत किया। महिला मंडल की ओर से संगीता नीखरा, डॉ. प्रियंका नीखरा, निर्मला गुप्ता, आध्या गुप्ता, सरोज मेहता, आरती जैन, पूजा सोडानी ने उत्सव की व्यवस्थाएं संभाली।

        आचार्य पं. शास्त्री ने कहा कि यदि गंगा में स्नान करने से हमारे पापों का नाश होता है तो इसका मतलब यह नहीं कि हम हर दिन पाप करें और गंगा में नहाकर उनसे मुक्ति पा लें। गंगा या अपने अंचल की नदियों को प्रदूषित करना भी पाप कर्म है। प्रकृति भी परमात्मा का ही अंश है। हमारे मन में काम, क्रोध, लोभ, मोह जैसे विकार भरे पड़े हैं। जब तक ये खाली नहीं होंगे, तब तक भागवत के संदेश अंदर नहीं उतरेंगे। भागवत का श्रवण और मंथन पाप से मुक्ति का ही मार्ग है। कृष्ण – सुदामा की मित्रता इस बात का संदेश देती है कि राजमहल और झोपड़ों का भी मिलन होना चाहिए। जिस दिन हमारे देश के राजभवनों के दरवाजे आम सुदामाओं के लिए खुल जाएंगे, उस दिन हमारा प्रजातंत्र भी सार्थक हो उठेगा।
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