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राम-कृष्ण भी किसी का भाग्य नहीं बदल सकते लेकिन ज्योतिषी सही मार्ग जरूर दिखा सकते हैं

विद्याधाम में चल रहे विद्वत सम्मेलन में वक्ताओं का मेला- रामानुजाचार्य जयंती के उपलक्ष्य में विद्वानों का सम्मान

इंदौर से विनोद गोयल की रिपोर्ट:——

इंदौर,। विमानतल मार्ग स्थित श्री श्रीविद्याधाम पर दो दिवसीय विद्वत सम्मेलन का समापन आज दिनभर चले विभिन्न सत्रों में ज्वलंत विषयों पर विद्वानों के विचार-मंथन एवं मुख्य रूप से ज्योतिष तथा वास्तु जैसे विषयों पर हुए व्याख्यान के साथ हुआ। राम और कृष्ण में भी किसी के ग्रह बदलने की ताकत नहीं है। ज्योतिषी किसी का भाग्य नहीं बदल सकते, लेकिन सही मार्ग जरूर दिखा सकते हैं। शंकराचार्य जयंती से शुरू हुआ यह सम्मेलन रामानुज जयंती पर संपन्न हुआ।

  श्री श्रीविद्याधाम के संस्थापक ब्रह्मलीन स्वामी गिरिजानंद सरस्वती ‘भगवन’ को समर्पित इस विद्वत सम्मेलन में सुबह महामंडलेश्वर स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती के सानिध्य में पहला सत्र वेद अध्ययन, गायत्री मंत्र की महिमा एवं संध्या वंदन  के महत्व पर केन्द्रित रहा, जिसमें आचार्य पं. लोकेन्द्र, आचार्य पं. शिवम जोशी, आचार्य पं. मोहित उदेनिया, बटुक अर्थ रावल, आचार्य पं. हरिओम शर्मा, आचार्य पं. बनवारी चौबे, आचार्य पं. प्रवीण शर्मा, आचार्य पं. नीलेश जोशी, आचार्य पं. कपिल शर्मा, आचार्य पं. अनुज जोशी, आचार्य पं. ऋषिकेश शर्मा आदि ने अपने प्रभावी विचार प्रस्तुत किए। संचालन आचार्य पं.  उत्तम ने किया। अतिथियों का स्वागत पं. दिनेश शर्मा, आचार्य पं. राजेश शर्मा, राजेन्द्र महाजन, सुश्री उमा शुक्ला, आचार्य पं. बनवारी पाराशर, नरेन्द्र तिवारी, मनीष शर्मा, अग्निवेश शुक्ल आदि ने किया। शुभारंभ बटुक दिव्यांश एवं रूद्रांश द्वारा स्वागत गीत से हुआ। दूसरे सत्र में ज्योतिष एवं वास्तु के महत्व तथा उपयोगिता पर शहर के तीन प्रमुख विद्वानों, आचार्य पं. जुगलकिशोर शास्त्री, आचार्य पं. कल्याणदत्त शास्त्री एवं आचार्य पं. रामचंद्र शर्मा वैदिक ने अपने ओजस्वी विचार रखे।

 *आचार्य पं. जुगलकिशोर शास्त्री* ने कहा कि केवल किताब पढ़कर ज्योतिषी नहीं बन सकते। ज्योतिष में सबसे ज्यादा काम विवाह कुंडली के मिलान के लिए आते हैं। अधिकतर लोग गुण मिलाने की ओर ज्यादा ध्यान देते हैं।  ज्योतिष का सिद्धांत देश, काल और परिस्थिति पर आधारित होता है। अब 21वीं सदी का युग है। अब गुणों की जगह कुंडली में कई बार गुण अच्छे मिलने के बावजूद दाम्पत्य जीवन ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाता। कुंडली में सप्तम भाव सबसे महत्वपूर्ण होता है। ऐसे कई योग हैं, जिनके कारण दाम्पत्य जीवन में रुकावटें आती रहती हैं। ज्योतिष का क्षेत्र अब आर्थिक युग से प्रभावित हो गया है। जगह-जगह ज्योतिष संस्थान और कार्यालय खुल गए हैं। सिद्धि पैसों के साथ बिक गई है। ज्योतिषियों ने अपनी विद्या बेच दी है। यह याद रखें कि ज्योतिष किसी ग्रह और नक्षत्र को नहीं बदल सकते। राम और कृष्ण में भी वह ताकत नहीं है कि किसी के ग्रह नक्षत्र बदल दे। हम भाग्य नहीं बदल सकते, लेकिन सही मार्ग जरूर दिखा सकते हैं। वर्षा होने पर जो काम छाता या रेनकोट करता है, वही काम ज्योतिषी करते हैं। वर्षा होगी तो छींटे तो उड़ेंगे ही, छाता होगा तो थोड़ी बचत हो जाएगी। *आचार्य पं. रामचंद्र शर्मा वैदिक* ने भी अपनी बात यह कहते हुए शुरू की कि आजकल ज्योतिषाचार्य, शास्त्री और पंडित की डिग्रियां बाजार में बिकने लगी हैं। अब समय बदल चुका है।  ज्योतिष एक विज्ञान है। पं. वैदिक ने हिन्दू पर्वों में तिथियों की भिन्नता और देश में पंचांगों की भिन्नता पर प्रकाश डाला और संतों से आग्रह किया कि वे एक ही पर्व की दो-दो तिथियों के कारण जन मानस में फैल रहे भ्रम को दूर करने की पहल करें। उन्होंने दावा किया कि गायत्री मंत्र और महामृत्युंजय जाप का पाठ किया जाए तो बहुत हद तक अनेक समस्याएं हल हो जाएंगी। *आचार्य पं. ऋषिकेश शर्मा* ने कहा कि आज घर-घर बच्चों के हाथों में माता-पिता ने मोबाईल बम थमा रखे हैं। यदि संस्कृति को बचाना है तो बच्चों को धर्म और संस्कृति से जोड़े रखना होगा। मोबाईल बम बच्चों को कहां ले जाकर छोड़ेगा, कहना मुश्किल है। आज ब्राह्मणों के बच्चे भी कान्वेंट स्कूलों में पढ़ रहे हैं। संस्कृति को बचाना है तो पिज्जा-बर्गर से अपने बच्चों को हटाना पड़ेगा। गुरू कृपा हो तो कौवा भी हंसों की सभा में बोलने लायक बन जाता है।   *पं. कपिल शर्मा* ने वैदिक पाठशाला संचालकों से आग्रह किया कि वे ज्योतिष की नियमित कक्षाएं शुरू करें ताकि ज्योतिष के नाम पर हो रही ठगी बंद हो सके। चिंतन करना चाहिए कि ज्योतिष पर ठगी का ठप्पा क्यों लगा ?  *आचार्य हरिओम शर्मा* ने कहा कि जिस ज्ञान को आचरण में नहीं लाएं, वह ज्ञान व्यर्थ है। अध्यात्म के बिना संसार की स्थिति वैसी ही है, जैसी प्राण के बिना शरीर की। *आचार्य पं. कल्याणदत्त शास्त्री* ने जटा और घन महामंत्र का सस्वर जाप सुनाया। *महामंडलेश्वर स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती*  ने कहा कि केन्द्र में बृहस्पति हो तो सभी विषय अनुकूल हो जाते हैं। ग्रहों के स्वभाव अनुकूल या प्रतिकूल हों तो भगवत आराधना एवं कर्मकांड से सुधार हो सकता है, लेकिन ग्रह नहीं बदले जा सकते। ज्योतिष  को ज्योति अर्थात प्रकाश का हिस्सा माना जाता है। हमारी आंखें अच्छा और बुरा, दोनों बातें देखती हैं, लेकिन जब ग्रहण करते हैं तो वेदानुकूल जीवन होने पर अच्छा ग्रहण करेंगे और प्रतिकूल जीवन होगा तो बुरा ग्रहण करेंगे। बिना परिश्रम के धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति संभव नहीं है।

आध्यात्मिक आत्मबोध, ईश्वर कृपा और सहज समाधि की आत्मानुभूति जैसे विषयों पर विचार मंथन हुआ। राज्य के जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट, महंत ब्रह्मचारी पवनानंद , आचार्य पं. किशोर शास्त्री, आचार्य पं. कल्याणदत्त शास्त्री, आचार्य पं. वैदिक के आतिथ्य में इस अवसर पर विद्वत सम्मेलन में भाग लेने आए देश के विभिन्न शहरों के उन विद्वानों का शाल-श्रीफल एवं स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मान भी किया गया, जिन्होंने विद्याधाम स्थित गिरिजानंद सरस्वती वेद वेदांग विद्यापीठ में रहकर विद्यार्जन किया है। सम्मेलन में आए वक्ताओं और विद्वानों का सम्मान भी किया गया। सभी अतिथियों ने रामानुज जयंती की शुभकामनाएं देते हुए आयोजकों को इस सुंदर और प्रेरक आयोजन के लिए बधाई एवं शुभकामनाएं व्यक्त की। संचालन किया पं. दिनेश शर्मा ने और आभार माना पं. राजेश शर्मा ने।

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