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राजधानी दिल्ली में आयोजित हुआ लघुकथा मन्थन, कई राज्यों के लघुकथाकार हुए शामिल

लघुकथा के क्षेत्र में संभावनाएं अनंत- सुभाष चन्दर
लघुकथा की स्पष्टता अनिवार्य- सुभाष नीरव

दिल्ली। विनोद गोयल
हिन्दी साहित्य की महनीय विधा लघुकथा के लिए मातृभाषा उन्नयन संस्थान द्वारा रविवार को हिंदी भवन, दिल्ली में लघुकथा मन्थन आयोजित किया गया। इंटिग्रेल प्रोजेक्ट्स द्वारा प्रायोजित लघुकथा मन्थन में वरिष्ठ लघुकथाकार बलराम अग्रवाल, सुभाष नीरव, अतुल प्रभाकर, सुभाष चन्द्र, संदीप तोमर, आलोक त्यागी व डी के शर्मा का आतिथ्य मिला। दीप प्रज्ज्वलन के उपरांत अतिथियों का स्वागत संस्थान द्वारा किया गया।
कार्यक्रम अध्यक्ष सुभाष चंदर ने वक्तव्य में कहा कि ‘साहित्यिक मूल्यों का निर्वहन लघुकथा में होना चाहिए। लेखक का दायित्व है पाठक की की साहित्यिक क्षुधा को शांत करना। लघुकथा के लिए यदि कुछ करना चाहते हैं और मातृभाषा उन्नयन संस्थान का ये दायित्व बनता है कि जब तक लघुकथा के लिए कार्यशाला नहीं करेंगे तब तक लघुकथा के विषय में अधूरापन रहेगा।’
उन्होंने यह भी कहा कि ‘जो विधाएं सबसे ज़्यादा पढ़ी जा रही हैं, उनमें लघुकथा सबसे ऊपरी पायदान पर है। आप चाहते हैं सामान्य पाठक और सजग पाठक के बीच की दूरियां एक साथ तय हों उसके लिए इन बातों पर काम करना होगा जैसे लघुकथा के विन्यास, शिल्प और कथ्य की विविधता पर चर्चा और कार्यशाला हो।’
विशिष्ट अतिथि बलराम अग्रवाल ने सभी लघुकथाकारों की समीक्षा की और उन्होंने कहा कि ‘लघुकथा में किस बात की ज़रूरत है, कौन सी बात छूट रही है, इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है, साथ ही समय के निरंतरता बनाए रखने की आवश्यकता है क्योंकि समय छूट गया तो सब छूट गया।
लघुकथा को छोटा करने के चक्कर में याद रखें भावनाओ को न छोड़ें। जब तक पूर्ण अभिव्यक्ति न हो लेखन छोड़ना मत, साथ ही कहन में बातों को खींचने से बचें।
लोकभाषा के शब्दों को पकड़ कर रखें, इससे लोक में आप बने रहेंगे और अपनी संस्कृति को जीवित रखेंगे। विशिष्ट अतिथि सुभाष नीरव ने अपने वक्तव्य में कहा कि ‘जो लघुकथा बेशक कमज़ोर हो पर उसमे संभावना की किरण नज़र आती है, स्पष्टता नज़र आती है वो ज़रूर पसंद की जाती है। उन्होंने यह भी कहा कि ‘लघुकथा एक तंग गली में से गुज़र कर ही अपने गंतव्य तक पहुंचती है। कहानी का दायरा बड़ा होता है और उपन्यास विशाल मैदान है जो चारों दिशाओं में विचर सकती है। किंतु लघुकथा की सीमाएं तय हैं और जब आप इसकी सीमाएं समझ जायेंगे, आपकी रचना स्वयं आकार लेकर बता देंगी कि यह कहानी है या लघुकथा। विशिष्ट अतिथि संदीप तोमर ने लघुकथा के विभिन्न तत्त्वों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ‘वन लाइनर लघुकथा भी लघुकथा होती है, यदि उसमें पूरी बात आ रही है तो।’

आयोजन में चयन मण्डल द्वारा चयनित लघुकथाकार पुनीता सिंह, शोभना श्याम, अंजू निगम, सुरेन्द्र अरोड़ा, सुशील शैली, नीता सैनी, सरिता गुप्ता, निशा भास्कर, अंजू खरबंदा, कामना मिश्रा, तरूणा पुंडीर, प्रणिता प्रभात, बाल कीर्ति, दिव्या सक्सेना, रीता कुमार, गौरव दत्त, सुनील कुमार, विनय कुमार मिश्रा, रीता शर्मा, मनोज कुमार कर्ण, जिन्होंने लघुकथा पढ़ी अपनी स्वरचित लघुकथा का पाठ किया, जिसमें से प्रथम सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा, द्वितीय स्थान शोभना श्याम, तृतीय स्थान अंजू खरबंदा व चतुर्थ स्थान कामना मिश्रा ने अर्जित किया।

आयोजन में संस्मय प्रकाशन की विवरणिका का विमोचन किया गया। सभी लघुकथा कारों को चंद्रमणि मणिका व सुरभि सप्रू ने दीं। संचालन भावना शर्मा ने किया व आभार गिरीश चावला ने माना।
लघुकथा जैसी विधा पर एक विमर्श और मन्थन की दरकार रही है, उसी तारतम्य में यह महनीय कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इसके साथ संस्थान इस विमर्श को स्थापित कर लघुकथा विधा एवं हिन्दी के प्रचार के लिए एक सकारात्मक हल प्रदान करेंगे, जो निकट भविष्य में साहित्य व लघुकथा की दृष्टि से कारगार हुआ। मन्थन में कई राज्यों से लघुकथाकार सम्मिलित हुए एवं उन्होंने विमर्श स्थापित करने में भूमिका निभाई। इन्दौर में पहला लघुकथा मन्थन आयोजित हुआ और फिर दिल्ली में किया गया। आगामी समय में संस्थान लघुकथा की कार्यशालाएँ भी आयोजित करेगा।

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