सेंधवा; मन के स्वस्थ होते ही शरीर स्वस्थ होने लगता है-योग गुरू

सेंधवा यदि व्यक्ति सोच लें कि मैं रोगी हू , समझ ले कि वह रोगों से घिर जायेगा। यदि वह सोच लें कि मैं निरोगी हू। वह रोगों से दूर होने लगेगा।सोच ही औषधि है। और उसके मन में संतुलन,चित में प्रसन्नता, और हदय से डर समाप्त हो जायेगा। फिर उसका साहस धीरे धीरे बढता जायेगा।मन और प्राण में घनिष्ठ संबंध है। अतः मन के स्वस्थ होते ही शरीर भी स्वस्थ होने लगता है। उक्त विचार योग गुरु कृष्णकांत सोनी ने उप जेल सैधवा के कैदियों को निःशुल्क योग शिविर में कहे। योग ने आगे बताया कि ग़लती सभी से हों सकतीं हैं। लेकिन उसे निरन्तर दोहराने से व्यक्ति अपराधी बन जाता है।रोग हमेशा व्यक्ति को शक्ति हीन,करने के लिए आता है। अतः शक्ति बनी रहे,सोच लगातार सकारात्मक बनी रहे, जीवन रोग मुक्त, तनाव मुक्त हो, इसके लिए हमें भ्रामरी प्राणायाम, टकं मुद्रा, जलनेति, आईवास, विट्ठल आसन, सुपड़ा आसन, ध्यान आसन आदि योग कि विभिन्न क्रियाओं का अभ्यास करना होगा। निशुल्क योग शिविर में योग गुरु ने कैदीयों को योग गुर सिखाए। साथ ही जलनेति, आईवास, साहित्य,निवाड के पट्टे का निशुल्क बांटे। इस अवसर पर जेलर महेंद्र सिंह रघुवंशी, सरदार डावर,ईनामसिह डावर, आदि जेल कर्मी उपस्थित थे।